वो बड़े कारण क्या था जिसके चलते हुई थी कारगिल की लड़ाई?

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जम्मू-कश्मीर के कारगिल-द्रास सेक्टर में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मिली जीत की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है।

जम्मू-कश्मीर के कारगिल-द्रास सेक्टर में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मिली जीत की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इस दिन ऑपरेशन विजय के तहत भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों द्वारा कब्जा की गई चौकियों को सफलतापूर्वक वापस ले लिया था। 60 दिन तक चले इस युद्ध में भारतीय सैन्य बलों के 500 से ज्यादा जवानों ने अपनी जान कुर्बान की थी।

आज की पीढ़ी ने 1965 और 1971 की भारत पाकिस्तान लड़ाई के बारे में सिर्फ पढ़ा और सुना ही है लेकिन 1999 में कारगिल युद्ध को होते हुए देखा है इसलिए लोगों के जेहन में इसके दृश्य आज भी ताजा हैं। युद्ध से पहले के हालात पर नजर डालें तो देखने को मिलता है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जब परमाणु परीक्षण किया तो पाकिस्तान ने भी जवाबी परीक्षण किया जिससे दोनों देशों के संबंध काफी तनावपूर्ण हो गये थे। वाजपेयीजी ने पाकिस्तान से संबंध सुधारने का निर्णय लिया और बस से यात्रा कर पाकिस्तान पहुँचे जहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उनका भव्य स्वागत भी किया। इसके बाद दोनों देशों ने लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये और संबंध बेहतर बनाने का निर्णय किया। लेकिन पाकिस्तान के तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल परवेज मुशर्रफ को यह रास नहीं आया कि भारत के साथ संबंध सुधारे जाएं इसीलिए उन्होंने बड़ी संख्या में अपने सैनिकों और अर्धसैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजा। पाक सेना ने यह घुसपैठ 'ऑपरेशन बद्र' के तहत करवाई थी और उसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था। मुशर्रफ ने यह घुसपैठ इतने गुपचुप तरीके से करवाई थी कि पाक वायुसेना प्रमुख और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री तक को इसकी खबर बाद में पता चली थी।


ऑपरेशन विजय का ऐलान

कश्मीर में सीमापार से घुसपैठ कोई नयी बात नहीं थी लेकिन भारत को यह नहीं पता था कि इस बार आतंकवादी नहीं पाकिस्तानी सेना घुसपैठ कर रही है। भारतीय सेना को जैसे ही पाकिस्तान की सुनियोजित साजिश का पता चला 'ऑपरेशन विजय' का ऐलान कर दिया गया। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाली जगहों पर हमला किया और पाकिस्तानी सेना को भारतीय चोटियों को छोड़ने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इस दौरान भारतीय सेना के 500 से ज्यादा जवान शहीद हुए। आखिरकार 26 जुलाई को वह दिन आया जिस दिन सेना ने इस ऑपरेशन का पूरा कर लिया।
 

आइए डालते हैं एक नजर कारगिल युद्ध से जुड़ी कुछ बड़ी बातों पर

-कारगिल युद्ध की शुरुआत 8 मई 1999 से हुई थी। दरअसल उस दिन पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखे जाने की पुष्टि हुई थी।

-पाकिस्तानी सेना की ओर से 5000 से ज्यादा सैनिक कारगिल पर चढ़ाई के लिए भेजे गये थे।

-पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मुख्यतः उन भारतीय चौकियों पर कब्जा जमा लिया था जिनको भारतीय सेना की ओर से सर्दियों के मौसम में खाली कर दिया जाता था।

-परवेज मुशर्रफ की सोच यह थी कि कारगिल पर कब्जे से सियाचिन की सप्लाई कट जायेगी और हिंदुस्तानी सेना को सियाचिन से बाहर निकलने पर मजबूर किया जा सकेगा। 

-भारतीय सेना के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बात यह थी कि दुश्मन ऊँची पहाड़ियों पर बैठा था और वहां से गोलियां बरसा रहा था। भारतीय जवानों को आड़ लेकर या रात में चढ़ाई कर ऊपर पहुँचना पड़ रहा था जोकि बहुत जोखिमपूर्ण था।

-अकसर राजनीति का शिकार बनती रहीं बोफोर्स तोपें कारगिल लड़ाई में सेना के खूब काम आयीं। बोफोर्स तोपें दुश्मनों पर कहर बनकर ढाई थीं।

-भारतीय जवान बड़ी संख्या में शहीद होते जा रहे थे जिससे सरकार को भी आलोचना झेलनी पड़ रही थी। तब 25 मई 1999 को दिल्ली में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की एक अहम बैठक हुई जिसमें तय किया गया कि पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ हवाई हमले किये जाएं।

-भारतीय वायुसेना की ओर से 30 वर्षों बाद 1999 में हवाई हमले किये गये थे। कारगिल युद्ध में वायुसेना के 300 विमानों को शामिल किया गया था।

-वायुसेना की मदद मिलने से भारतीय सेना की स्थिति काफी मजबूत हो गयी थी। भारतीय सेना ने जाँबाजी दिखाते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार गिराया और तोलोलिंग तथा टाइगर हिल जैसी महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया।

-यह आजादी के बाद से पहली ऐसी लड़ाई थी जिसकी तसवीरें टीवी के माध्यम से घर-घर तक पहुँच गयी थीं और भारतीयों में पाकिस्तान के विरोध में गुस्सा उबाल ले रहा था।

-कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 2700 से ज्यादा सैनिक मारे गये थे। इस लड़ाई में पाकिस्तान को 1965 और 1971 से भी ज्यादा नुकसान हुआ था।

कारगिल युद्ध के अमर शहीदों की सूची तो काफी बड़ी है लेकिन उक्त कुछ नाम मीडिया में काफी प्रमुखता से छाये रहे और कारगिल युद्ध पर आधारित फिल्मों में भी इन नामों का जिक्र रहा।


-कैप्टन विक्रम बत्रा

-लेफ्टिनेंट विजयंत थापर

-लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया

-कैप्टन अनुज नैय्यर

-ग्रे‍नेडियर योगेंद्र सिंह यादव

बहरहाल, यह अच्छी बात है कि पूरा देश एकजुट होकर कारगिल के शहीदों को श्रद्धांजलि देता है और उन्हें याद करता है लेकिन शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि तब होगी जब प्रत्येक भारतीय के मन में भारत माता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने का भाव पैदा होगा। इसी के साथ ही हमें शहीदों के परिवारों की भी सुध लेने की आवश्यकता है। यह अकसर देखने में आता है कि किसी जवान के शहीद होने के तत्काल बाद तो परिवार को खूब पूछा जाता है, मीडिया के आगे बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं लेकिन सप्ताह भर बाद ही इन परिवारों की सुध लेने वाला कोई नहीं होता। यह हालात बदलने की जरूरत है।

-नीरज कुमार दुबे

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