राहुल की वो गलतियाँ जो कर्नाटक में कांग्रेस को पड़ गयीं भारी

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कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक विजय दर्शाती है कि देश में अभी मोदी लहर बरकरार है और जनता में नेतृत्व के प्रति स्वीकार्यता और विश्वसनीयता के मामले में कांग्रेस अभी बहुत पीछे है।

कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक विजय दर्शाती है कि देश में अभी मोदी लहर बरकरार है और जनता में नेतृत्व के प्रति स्वीकार्यता और विश्वसनीयता के मामले में कांग्रेस अभी बहुत पीछे है। कर्नाटक के चुनाव परिणाम का विश्लेषण करने से पहले चुनाव प्रचार का विश्लेषण करें तो देखने को मिलता है कि वहां हो तो विधानसभा चुनाव रहे थे लेकिन भाजपा और कांग्रेस इसे लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिहाज से लड़ रही थीं। भाजपा नेताओं के चुनावी भाषणों में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार कम और कांग्रेस नेतृत्व ज्यादा निशाने पर रहता था इसी प्रकार कांग्रेस नेता सीधे मोदी सरकार पर निशाना साध रहे थे और मोदी सरकार की कथित नाकामियों को उजागर करने में लगे थे। यही नहीं राहुल गांधी की ओर से अपनी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की पुष्टि करने के बाद यह विधानसभा चुनाव सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर हो गया था। और मोदी से सीधी टक्कर लेना ही राहुल को भारी पड़ गया। कांग्रेस की हार के बाद अब भाजपा ने कहा है कि यह चुनाव राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी पर भी ओपिनियन पोल था।

वोट प्रतिशत में आगे रही कांग्रेस

चुनाव परिणाम का विश्लेषण करें तो वोट प्रतिशत मामले में कांग्रेस भाजपा से आगे रही है लेकिन बूथ प्रबंधन मामले में वह पिछड़ गयी जिसके चलते उसे राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी। इसमें कोई दो राय नहीं कि कर्नाटक में कांग्रेस ने जमकर मेहनत की लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी से कुछ बड़ी गलतियां भी हुईं। इन्हीं गलतियों को भाजपा ने बड़ा मुद्दा बनाया और कांग्रेस को राज्य की सत्ता छोड़ने पर मजबूर कर दिया। 2018 की शुरुआत कांग्रेस की हार से हुई है और भाजपा नेतृत्व इस बात का पूरा प्रयास करेगा कि इसका प्रभाव नवंबर में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभा चुनाव तक भी रहे जिससे साल का अंत भी कांग्रेस की हार से हो। अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा प्रभाव 2019 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना तय है।

राहुल गांधी ने मेहनत भी बहुत की

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ही बात करें तो उन्होंने महीनों पहले से कर्नाटक में चुनावी दौरा शुरू कर दिया था और चुनावों की अधिसूचना जारी होने के बाद से तो वह सप्ताह में तीन से चार दिन कर्नाटक में बिता रहे थे। उन्होंने ना सिर्फ बड़ी-बड़ी चुनावी सभाएं कीं बल्कि रोड शो किये, आम लोगों के बीच गये और उनकी समस्याओं को भी उठाया। यही नहीं राहुल मंदिर-मंदिर और मठ-मठ गये और पूजा अर्चना की। कांग्रेस के सभी बड़े नेता भी जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह समेत अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता शामिल हैं, आदि चुनाव प्रचार में जुटे। प्रचार के अंतिम दिनों में सोनिया गांधी की रैली भी कराई गई। सोनिया ने 21 महीने बाद कांग्रेस की किसी रैली को संबोधित किया था। कांग्रेस पार्टी की दिल्ली और बैंगलुरु में होने वाली प्रेस ब्रीफिंगों में भी मोदी सरकार को रोजाना विभिन्न मुद्दों पर घेरा जाता था। कर्नाटक चुनावों के बीच में ही दिल्ली में कांग्रेस ने 'संविधान बचाओ, देश बचाओ' और 'जनाक्रोश रैली' जैसे बड़े आयोजन किये लेकिन हाथ कुछ नहीं लगा।

कांग्रेस से हुईं यह बड़ी गलतियाँ

कांग्रेस ने जो बड़ी गलतियां कीं उनमें सबसे पहली गलती लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने का प्रस्ताव पेश कर की। भाजपा ने इसका विरोध किया और चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि भाजपा का फैसला सही रहा। लिंगायत समुदाय के प्रभाव वाली 70 विधानसभा सीटों में से लगभग 50 पर भाजपा ने जीत हासिल की या अच्छा प्रदर्शन किया। इसके अलावा कांग्रेस नेताओं का टीपू सुल्तान की जयंती मनाना पार्टी को भारी पड़ गया। मणिशंकर अय्यर भी ऐन चुनावों के बीच पाकिस्तान में जिन्ना की तारीफ कर पार्टी की लुटिया डुबोने में अपना योगदान देना नहीं भूले। राहुल गांधी ने जो गलतियां कीं उनमें सबसे पहली गलती रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने समक्ष 15 मिनट भाषण देने की चुनौती देना। इसके बाद राहुल ने अपने एक बयान से खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया।

कांग्रेस की आगे की राह होगी मुश्किल

कांग्रेस के लिए अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं में नई जान फूंकने के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतना बहुत जरूरी था और इसके लिए राहुल गांधी ने कड़ी मेहनत भी की थी लेकिन सफल नहीं हो पाये। अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव जीतना कांग्रेस के लिए कठिन होगा क्योंकि पार्टी का मनोबल इस हार के बाद गिरा हुआ है। कांग्रेस के पास अब पुडुचेरी, पंजाब और मिजोरम में सरकार बची है और उसके लिए मुश्किल वाली बात यह है कि मिजोरम में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इस तरह से देश की मात्र 2.5 फीसदी आबादी पर ही कांग्रेस की सरकारें रह गयी हैं। कभी देश की संसद से लेकर पंचायतों तक पर कब्जा रखने वाली राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का यह हश्र वाकई चौंकाने वाला है।

भाजपा ने बनाई थी कुशल रणनीति

दूसरी ओर भाजपा ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर पहला सही कदम उठाया था क्योंकि राज्य में उनका व्यापक प्रभाव है और उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी को 2008 के विधानसभा चुनावों में भी जीत मिली थी। इसके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हर विधानसभा सीट के लिए ना सिर्फ रणनीति बनाई बल्कि हर पोलिंग बूथ पर कार्यकर्ताओं की तैनाती पर भी अपनी पैनी नजर रखी। अभी तक वह बूथ प्रबंधन के लिए पन्ना प्रमुख बनाते रहे थे लेकिन इस बार अर्ध पन्ना प्रमुख की व्यवस्था करके तैयारियों के लिहाज से एकदम सूक्ष्म स्तर पर चले गये। अमित शाह ने गलियों गलियों में रोड शो किया और पार्टी के लिए माहौल बनाया। अमित शाह जिस मठ में जाते थे वहां के प्रमुख को प्रणाम करते समय उनके सामने घुटनों के बल आ जाते थे।

मोदी ने फिर दिखा दी अपनी लहर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अप्रैल अंत से प्रचार का काम पूरी तरह से संभाल लिया था। एक दिन प्रधानमंत्री रैली के लिए कर्नाटक के विभिन्न क्षेत्रों में पहुँचते थे तो दूसरे दिन वह नमो एप के जरिये कर्नाटक के लोगों को संबोधित करते थे। प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकर्ताओं को साफ संदेश दिया था कि पार्टी की प्रचार सामग्री सिर्फ घरों घरों में पहुँचाना ही नहीं है बल्कि लोगों से बात करके उन्हें समझाना भी है। साथ ही प्रधानमंत्री ने कार्यकर्ताओं से जीत के लिए नींद त्यागने को कहा था। यही नहीं कांग्रेस ने कर्नाटक चुनावों में धर्म कार्ड खेला तो भाजपा ने उसे आगे बढ़ा दिया। मतदान से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नेपाल के जनकपुर पहुँचे और माता जानकी के मंदिर में दर्शन और पूजन किया और जिस दिन मतदान हो रहा था उस दिन वह पशुपतिनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक कर रहे थे। प्रधानमंत्री ने कर्नाटक चुनावों से पहले राज्य से संबंधित कई परियोजनाओं को मंजूरी दे दी थी और कई परियोजनाओं का शिलान्यास कर जनता का दिल जीतने का प्रयास किया था। यही नहीं कर्नाटक चुनावों के समय सरकार कावेरी मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय की फटकार खाने के बावजूद खामोश बनी रही।

योगी बने स्टार प्रचारक

भाजपा ने कर्नाटक की राजनीति में धर्म के प्रभाव को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और नाथ सम्प्रदाय के बड़े नेता योगी आदित्यनाथ की रैलियां बड़ी संख्या में कराईं और पार्टी को उनका लाभ मिला। इसके अलावा विभिन्न राज्यों से पार्टी नेताओं को महीने भर तक चुनाव संबंधी कार्यों में लगाये रखने का परिणाम अब सामने है।

अब क्या होगा

इन चुनाव परिणामों के राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव की बात करें तो फिलहाल यही दिख रहा है कि मोदी के नेतृत्व को कोई चुनौती नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फिलहाल मोदी के समकक्ष नहीं खड़े हो पा रहे हैं और तीसरे मोर्चे के लिए तो कोई संभावना ही नहीं है। ऐसे में अब विपक्ष के सभी दलों जिनमें कांग्रेस भी शामिल है, को एक साथ आकर ही भाजपा और मोदी के लिए चुनौती खड़ी करनी होगी तभी कुछ हो सकता है। कर्नाटक में अगर कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर के साथ समझौता कर चुनाव लड़ा होता तो आज स्थिति कुछ और होती।

कर्नाटक का नाटक

भाजपा बहुमत से कुछ सीटें पीछे रह गयी है लेकिन सरकार उसी की ही बनेगी क्योंकि एक तो वह सबसे बड़ा दल है दूसरा अभी कर्नाटक की दो सीटों पर चुनाव होने बाकी हैं। जद-एस के नेता एचडी कुमारस्वामी दो सीटों से चुनाव जीत गये हैं और उन्हें भी एक सीट छोड़नी होगी। इस तरह तीन सीटों पर चुनाव होगा और विधानसभा की एक एंग्लो इंडियन सीट पर सरकार मनोनयन करती है। बसपा ने वैसे तो जद-एस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था लेकिन बसपा का एक ही विधायक जीता है और उस पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा। एक निर्दलीय और एक क्षेत्रीय पार्टी का विधायक बना है। ऐसे में भाजपा के लिए बहुमत का जुगाड़ करना मुश्किल नहीं है लेकिन कांग्रेस ने जद-एस को समर्थन देकर उसकी सरकार बनाने की बात कर गलती की क्योंकि राज्यपाल कभी भी उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेंगे। कांग्रेस यह भूल गयी कि उसका जद-एस से चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं है और इस तरह से सरकार बनाने का प्रयास जनादेश का अपमान है। कांग्रेस को यह स्वीकार करना होगा कि राज्य की जनता ने उसे खारिज किया है जनादेश का अपमान उसे और भारी पड़ सकता है।

-नीरज कुमार दुबे

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