केजरीवाल की घर-घर राशन पहुँचाने की योजना को मंजूरी मिलनी ही चाहिए

Arvind Kejriwal

सस्ते अनाज पर देश में ‘राशन माफिया’ की एक फौज पलती जा रही है। इसीलिए दिल्ली सरकार ने अनाज घर-घर पहुंचाने की योजना बनाई है। इस योजना को पिछले साल से लागू करने पर वह आमादा है। पांच बार उसने केंद्र से इसकी अनुमति मांगी है।

केंद्र सरकार और दिल्ली की सरकार के बीच आजकल अजीब-सा विवाद चला हुआ है। दिल्ली की केजरीवाल-सरकार दिल्ली के लगभग 72 लाख लोगों को अनाज उनके घरों पर पहुंचाना चाहती है लेकिन मोदी सरकार ने उस पर रोक लगा दी है। इन गरीबी की रेखा के नीचे वाले लोगों को ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत राशन की दुकानों से बहुत कम दामों पर अनाज पहले से मिल रहा है। इसके बावजूद दिल्ली सरकार ने राशन का यह सस्ता अनाज लोगों के घर-घर पहुंचाने की योजना इसलिए बनाई है कि एक तो राशन की दुकानों पर लगने वाली भीड़ से महामारी का खतरा बढ़ जाता है। दूसरा, बुजुर्ग गरीब लोगों को उन दुकानों तक पहुंचने और कतार में खड़े रहने में काफी दिक्कत महसूस होती है और तीसरा, इन दुकानों का बहुत-सा माल चोरी-छिपे मोटे दामों पर खुले बाजारों में बिकता रहता है।

इसे भी पढ़ें: दिल्ली के मतदान केंद्रों को टीकाकरण केंद्रों में बदला जाएगा: अरविंद केजरीवाल

इस सस्ते अनाज पर देश में ‘राशन माफिया’ की एक फौज पलती जा रही है। इसीलिए दिल्ली सरकार ने अनाज घर-घर पहुंचाने की योजना बनाई है। इस योजना को पिछले साल से लागू करने पर वह आमादा है। पांच बार उसने केंद्र से इसकी अनुमति मांगी है लेकिन केंद्र सरकार इस पर कोई न कोई अड़ंगा लगा देती है। उसका पहला अड़ंगा तो यही था कि इसका नाम ‘मुख्यमंत्री घर-घर योजना’ क्यों रखा गया ? मुख्यमंत्री शब्द इसमें से हटाया जाए? केजरीवाल ने हटा लिया। क्यों हटा लिया ? यदि मुख्यमंत्री के नाम से कोई योजना नहीं चल सकती तो प्रधानमंत्री के नाम से दर्जनों योजनाएं कैसे चल रही हैं ? 

इसे भी पढ़ें: दिल्ली में घर-घर राशन योजना को लेकर तकरार जारी, केजरीवाल ने PM मोदी को लिखा पत्र

मुझे आश्चर्य है कि अरविंद केजरीवाल ने सभी योजनाओं से प्रधानमंत्री शब्द को हटाने की मांग क्यों नहीं की ? प्रधानमंत्री को पूरे भारत में जितनी सीटें और वोट मिले हैं, उससे ज्यादा सीटें और वोट दिल्ली में केजरीवाल को मिले हैं। इसमें शक नहीं कि दिल्ली की आप सरकार की यह योजना भारत में ही नहीं, सारे संसार में बेजोड़ है लेकिन उसे सफलतापूर्वक लागू कैसे किया जाएगा ? यदि केंद्र सरकार को इसमें कुछ संशय है तो वह जायज है। 72 लाख लोगों तक अनाज पहुंचाने के लिए हजारों स्वयंसेवकों की जरूरत होगी। उन्हें कहां से लाया जाएगा ? यदि उन्हें मेहनताना देना पड़ गया तो करोड़ों रु. की यह भरपाई कैसे होगी ? इस बात की क्या गारंटी है कि इस घर-घर अनाज-वितरण में मोटी धांधली नहीं होगी? इन सब संशयों के बावजूद केंद्र सरकार को चाहिए कि इस पहल में वह कोई अड़ंगा नहीं लगाए। यदि वह गड़बड़ाए तो इसे तत्काल रोका जा सकता है।

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़