आइए इस बड़े अवसर पर कुछ छोटे संकल्प भी ले लें

आजादी की 70वीं सालगिरह की शुरुआत के मौके पर हमें कुछ छोटी छोटी बातों का भी ध्यान रखने का संकल्प लेना चाहिए जोकि नागरिकों और देश को बड़ा बनाने में मददगार होंगी।

आजादी का त्योहार मनाने का यह मौका हमें उन स्वतंत्रता सेनानियों की वजह से मिला जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों को आजाद हवा में सांस लेने का मौका प्रदान करने के लिए हंसते हंसते अपनी शहादत दे दी। आजादी के आंदोलन में शहीद हुए लोगों को नमन के साथ ही हमें उन बहादुर सैनिकों का हौसला भी बढ़ाना चाहिए जोकि एक छोर पर लगातार पड़ोसी देश की ओर से की जा रही गोलीबारी का करारा जवाब देते हुए तो दूसरे छोरों पर सीमा की सुरक्षा और उग्रवादी गुटों का सामना करने के लिए मुस्तैदी से डटे हुए हैं। इस राष्ट्रीय पर्व पर उन सैनिक परिवारों का भी हमें ध्यान रखना चाहिए जिनके लाल इस खुशी के मौके पर उनसे दूर हैं। इस पर्व पर लाल किले से लेकर जिला मुख्यालयों, स्कूलों, पार्कों आदि तक में नेताओं और अधिकारियों की ओर से बड़ी बड़ी बातें और बड़े बड़े वादे किये जाएंगे लेकिन इस मौके पर हमें कुछ छोटी छोटी बातों का भी ध्यान रखने का संकल्प लेना चाहिए जोकि नागरिकों और देश को बड़ा बनाने में मददगार होंगी।

आइए कुछ छोटी छोटी बातों पर चर्चा करते हैं-

- इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सभी भारतीय, चाहे किसी भी वर्ग या मजहब के हों, राष्ट्रभक्ति हमारे अंदर कूट कूट कर भरी हुई है। कभी कोई आतंकवाद की घटना हो या सीमा पार से फायरिंग की घटना हो हम सभी उद्वेलित हो जाते हैं। मन में भाव आता है कि सीमा तक जाकर दुश्मन को अच्छा सबक सिखा दें। लेकिन दूसरी तरफ अगर हमें कूड़ा करकट डालने घर के बाहर गली के कोने तक भी जाना पड़े तो हम उसकी जहमत नहीं उठाते और कई जगह देखा जाता है कि खिड़की से ही कूड़ा सड़क पर डाल दिया जाता है।

- हमारे यहां स्त्री का सम्मान करने की बात तो बहुत होती है लेकिन हम यहां भी भेद करते हैं। हमारी बहन-बेटी को कोई कुछ कहे तभी हमें महिला अधिकारों का ख्याल आता है लेकिन दूसरे की बहन का अपमान होते देखने जैसी घटनाएं हमारे यहां आम हैं।

- सड़क पर वाहन चलाते समय हमारा अहंकार हमारे वाहन की कीमत का चौगुना होता है। इसलिए जब हमारे वाहन पर कोई खंरोच आए तो अहंकार तुरंत गुस्से में तबदील हो जाता है। बढ़ती रोड़रेज की घटनाएं इसका उदाहरण हैं।

- हमारी नजरें वैसे तो बड़ी चौकस रहती हैं और साथ जा रही गाड़ी में कौन बैठा है या बैठी है इसकी भी खबर कई लोग लेते रहते हैं लेकिन सड़क पर कोई गिरा पड़ा है तो वह हमें दिखाई नहीं देता और हम आगे निकल जाते हैं।

- कौन कहता है कि हम लोगों को नैतिक शिक्षा नहीं मिली। लेकिन इसको ग्रहण करते समय हम शायद यह सुनना भूल गये कि इसे खुद पर भी लागू करना है। यही कारण है कि हम अकसर दूसरों को ही नैतिक शिक्षा देते नजर आते हैं।

- हम भ्रष्टाचार के खात्मे का सपना दिखाने वालों से तो जवाब मांगते हैं लेकिन खुद से सवाल नहीं पूछते कि इस समस्या के निवारण के लिए खुद-से क्या किया।

- नागरिकों को संविधान द्वारा प्रदत्त सारे अधिकार हमें अच्छी तरह से मालूम हैं लेकिन देश के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का शायद ही हमें भान हो।

नीरज कुमार दुबे

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