मायावती ने दूसरे विकल्प के लिए भी पूरी तैयारी कर ली है

mayawati will left mahagathbandhan in loksabha elections
अजय कुमार । Jul 28 2018 1:33PM

कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किये जाने के बाद मायावती ने एक बार फिर दोहराया है कि वह गठबंधन का हिस्सा तभी बन सकती हैं जब यह सम्मानजनक होगा।

लोकसभा चुनाव के लिये गठबंधन को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती बार−बार नया 'सस्पेंस' खड़ा कर देती हैं। कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को पीएम का चेहरा घोषित किये जाने के बाद मायावती ने एक बार फिर दोहराया है कि वह गठबंधन का हिस्सा तभी बन सकती हैं जब यह सम्मानजनक होगा। उनका यह बयान राहुल को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करने की वजह से आया जरूर है, लेकिन लगता है कि वह सपा प्रमुख अखिलेश यादव को भी कुछ संकेत देना चाह रही थीं। मायावती का उक्त बयान दबाव की सियासत का हिस्सा भी हो सकता है तो उधर यूपी में बनते−बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों पर बीजेपी की पैनी नजर है। बीजेपी दो मोर्चों पर काम कर रही है। वह एक स्थिति यह मान कर चल रही है कि सपा−बसपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो जायेगा। दूसरी दशा के लिये भी वह तैयार हैं अगर यह गठबंधन न हो पाये। किसी भी परिस्थिति को अनुकूल बनाने और 2014 चुनाव जैसे नतीजे दोहराने के लिए बीजेपी आलाकमान इन दिनों कई पहलुओं पर काम कर रहा है। इसके तहत वह यूपी को मोदीमय बनाने से लेकर, कमजोर सांसदों के टिकट काटने, गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को साधने, मुस्लिम महिलाओं को अपने पक्ष में करने के साथ−साथ हिन्दुत्व को बढ़ावा देने में भी लगी है। इतना ही नहीं योगी सरकार के उन मंत्रियों की भी मंत्रिमंडल से छुट्टी हो सकती है जो आम चुनाव में बीजेपी के लिये कमजोर कड़ी साबित हो सकते हैं तो जिन मंत्रियों की इमेज अच्छी है उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ाया जा सकता है।

    

बीजेपी के लिये सकारात्मक पहलू यह है कि उसे पता है कि बिना साफ नीयत, नीति और नेतृत्व के गठबंधन या महागठबंधन जैसी कोई चीज लम्बे समय तक अस्तित्व में नहीं रह सकती है। दरअसल, मोदी विरोध की बुनियाद पर गठबंधन बनाने की बजाये देशहित को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। कांग्रेस की सबसे ताकतवर बॉडी सी.डब्ल्यू.सी. ने समान विचारधारा वाले दलों से गठबंधन करने का अधिकार तो अध्यक्ष राहुल गांधी को दे दिया लेकिन इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री का चेहरा राहुल ही होंगे। यह इतना भी आसान नहीं लगता है। मोदी हाल ही में लोकसभा में स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चन्द्र बोस, पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, इन्द्र कुमार गुजराल, एचडी देवगौड़ा के साथ−साथ शरद पवार के साथ कांग्रेस ने क्या किया, यह बता कर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की इच्छा रखने वालों को आगाह कर चुके हैं।

एक तरफ कई राज्यों में कांग्रेस गठबंधन की सबसे मजबूत कड़ी लगती है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की अति महत्वाकांक्षा (राहुल को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने की जिद) गठबंधन की सबसे बड़ी समस्या भी है। 42 लोकसभा सीटों वाले पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में जहां सत्तारूढ़ दल का मुकाबला बीजेपी की बजाये कांग्रेस या वामपंथियों के साथ अधिक है, वहां मोदी विरोध के नाम पर गठबंधन बनाना आसान नहीं है।  ममता बनर्जी कई बार इस बात के संकेत भी दे चुकी हैं। वहीं कर्नाटक में कांग्रेस−जेडीएस गठबंधन सरकार को लेकर जिस तरह की खबरें आ रही हैं, वह भी कांग्रेस के लिये चिंता का विषय है।

गठबंधन से फायदा किसे ज्यादा होगा, इससे अधिक अहम सवाल यह है कि नुकसान किसे होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा का कोर मतदाता यादव बीजेपी की ओर चला गया था, लेकिन मायावती का मतदाता कहीं और नहीं जाता और उसने हर चुनाव में ये साबित भी किया है, जिस तरह से कांग्रेस मुसलमानों पर डोरे डाल रही है, उससे सपा नेतृत्व सचेत है। गठबंधन में सीटों का बँटवारा कैसे होगा, किस सीट पर कौन सा कैंडिडेट होगा, कांग्रेस गठबंधन में आयेगी या नहीं। यह सवाल तो हैं ही इसके अलावा यह भी देखना दिलचस्प होगा जो नेता पांच वर्षों से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं उनकी सीट किसी दूसरे दल के खाते में जाने के बाद वह किस तरह रियेक्ट करेंगे।

बात उप−चुनाव के नतीजों की कि जाये तो उस समय कम वोटिंग के चलते सपा प्रत्याशी आसानी से चुनाव जीत गये थे, आम चुनाव में संभवतः वह स्थिति नहीं देखने को मिले। तब एक तो मोदी ने चुनाव प्रचार नहीं किया था और दूसरे उस समय वोटिंग प्रतिशत 15−20 प्रतिशत कम रहा था। यह मान कर चला जा रहा है कि जो मतदाता घरों से नहीं निकले थे, वह बीजेपी के थे। आम चुनाव के समय यह मतदाता जीत−हार की तस्वीर बदल सकते हैं। पिछले चार वर्षों में उप−चुनावों की बात छोड़ दी जाये तो जहां भी विधानसभा चुनाव हुए वहां बीजेपी मजबूत ही हुई।

आम चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव होने हैं। तीनों ही जगह बीजेपी की सरकार है। यहां के नतीजे भी आम चुनाव को प्रभावित करेंगे। मध्य प्रदेश में बीजेपी लम्बे समय से सत्तारूढ़ है, परंतु राजस्थान में प्रत्येक विधान सभा चुनाव के बाद सत्ता परिर्वतन होता है। इस हिसाब से कांग्रेस को यहां उम्मीद ज्यादा लग रही है। मध्य प्रदेश में भी अबकी से शिवराज के लिये राह इतनी आसान नहीं लग रही है। 

उत्तर प्रदेश में मोदीमय माहौल बनाने में बीजेपी अभी से जुट गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के लिये स्वयं मोर्चा संभाल रखा है। वे एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैलियां करने में जुटे हैं। पिछले एक महीने के अंदर सूबे में पांच रैलियों को पीएम संबोधित कर चुके हैं। आगे भी ये सिलसिला थमेगा नहीं। मोदी की प्रत्येक रैली के माध्यम से 2 से 3 संसदीय सीटों के वोटरों को कवर किया जा रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले तक बीजेपी ने सूबे में मोदी की 50 रैलियां कराने की योजना बनाई है। बीजेपी आलाकमान उन मौजूदा सांसदों, जिनकी छवि अच्छी नहीं है उनकी जगह नये प्रत्याशी या योगी सरकार के ताकतवर मंत्रियों को चुनाव लड़ा सकती है। बीजेपी राज्य के स्वच्छ छवि वाले प्रभावशाली मंत्रियों की सूची भी तैयार कर रही है, जिनकी चुनाव क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री सतीश महाना, सूर्य प्रताप शाही, दारा सिंह चौहान, बृजेश पाठक, राजेश अग्रवाल, एसपीएस बघेल और स्पीकर हृदय नारायण दीक्षित जैसे चेहरों को 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी उतार सकती है।

जो संकेत मिल रहे हैं उसके अनुसार बीजेपी आलाकमान 40 फीसदी मौजूदा सांसदों का टिकट काट सकती है। बीजेपी टिकट उसी को देगी जिसकी जीत पक्की हो। बीजेपी अबकी से उन वीआईपी सीटों पर भी पूरी दमखम के साथ ताल ठोंकेगी जहां पिछली बार वह जीत से वंचित रह गई थी। खासकर राहुल गांधी को अमेठी में घेरने के लिये मजबूत रणनीति बनाई जा रही है। रायबरेली से सोनिया गांधी चुनाव लड़ेंगी इसको लेकर संशय है। वहीं आजमगढ़ जहां के सांसद मुलायम सिंह यादव हैं, भी बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। हाल ही में यहां मोदी जनसभा भी कर चुके हैं। गोरखपुर सीट को लेकर बीजेपी दुविधा में है। योगी आदित्यनाथ यहां से पांच बार से जीतते आये थे। सीएम बनने के बाद जब इन्होंने इस सीट से इस्तीफा दिया तो उप−चुनाव में बीजेपी को हार का समना कर पड़ गया था। ऐसी ही स्थिति फूलपुर की है। मौजूदा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या के इस्तीफे के बाद यह सीट खाली हुई थी और उप−चुनाव में बीजेपी को यहां भी शिकस्त मिली थी। ऐसे में इन दोनों सीटों के लिये मजबूत उम्मीदवारों को लेकर पार्टी में मंथन चल रहा है।

बीजेपी की नजर जातीय गणित पर भी है। अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए पार्टी आलाकमान गैर यादव ओबीसी मतों को साधने में लगा है। कुर्मी मतों को लेकर बीजेपी ने खास प्लान बनाया है, जो कल्याण सिंह के समय बीजेपी का मजबूत आधार हुआ करता था। मोदी की यूपी में अभी तक जो रैलियां हुई हैं उनमें मिर्जापुर और शाहजहांपुर दोनों कुर्मी बहुल क्षेत्र हैं। इसके अलावा प्रजापति, मौर्य, लोध, पाल सहित गैर यादव ओबीसी पर भी बीजेपी का फोकस है। बीजेपी इससे आगे जाकर सपा−बसपा के जातीय समीकरण की धार कुंद करने के लिये 2014 की तर्ज पर हिंदुत्व की बिसात बिछाने में भी जुटी है। बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पश्चिम यूपी सहित प्रदेश की को उन सीटों पर विषेश नजर लगाए हुए है जहां विपक्ष मुस्लिम उम्मीदवार उतारेगा। यहां ध्रुवीकरण के जरिए चुनाव जीतने की रणनीति है। 

-अजय कुमार

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