रमजान में संघर्षविराम मांगने वालों दूसरे पर्वों का ख्याल क्यों नहीं आया

mehbooba wants ceasefire but it is not good for India

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार से एकतरफा संघर्षविराम की जो मांग उठाई है उसका स्वागत पाकिस्तान की सेना ने पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सेना की चौकियों पर गोलीबारी कर किया है।

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार से एकतरफा संघर्षविराम की जो मांग उठाई है उसका स्वागत पाकिस्तान की सेना ने पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास भारतीय सेना की चौकियों पर गोलीबारी कर किया है। इस गोलीबारी में 22 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई। मुख्यमंत्री ने कहा है कि वह चाहती हैं कि रमजान शुरू होने से लेकर अगस्त में अमरनाथ यात्रा संपन्न होने तक एकतरफा संघर्षविराम बनाए रखने पर विचार करना चाहिए। यहाँ सवाल यह उठता है कि आखिर रमजान में ही क्यों संघर्षविराम होना चाहिए। जब यह कहा जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता तो संघर्षविराम को धार्मिक पर्व या धार्मिक यात्राओं से क्यों जोड़ा जा रहा है? अगर रमजान में संघर्षविराम चाहिए तो नवरात्रि या दीपावली पर भी होना चाहिए। अगर किसी का शांति से ईद मनाना जरूरी है तो दूसरे का शांति से होली या दीवाली मनाना भी जरूरी है।

एकतरफा संघर्षविराम आखिर क्यों?

महबूबा ने जो प्रस्ताव रखा है उस पर सवाल यह उठता है कि क्या हमारे एकतरफा संघर्षविराम के ऐलान से पाकिस्तान और वहां के आतंकवादियों का मनोबल और नहीं बढ़ेगा? क्या एकतरफा संघर्षविराम रावलपिंडी में पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय में जश्न का माहौल नहीं पैदा कर देगा? क्या एकतरफा संघर्षविराम का ऐलान हाफिज सईद, सैयद सलाहुद्दीन या जकी उर रहमान लखवी जैसे क्रूर आतंकवादियों का हौसला और नहीं बढ़ा देगा? 

भारत हमेशा बड़प्पन दिखाता रहा है कि लेकिन आज के हालात में एकतरफा संघर्षविराम का ऐलान कायरपना होगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब सन् 2000 में संघर्षविराम का ऐलान किया था तब परिस्थितियां दूसरी थीं। तब करगिल युद्ध में पाकिस्तान को हराने के बाद रमजान के दिनों में उन्होंने पाकिस्तान को वार्ता की मेज पर आने का एक मौका प्रदान किया था। वाजपेयी सरकार का मानना था कि ऐसा करने से पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद बंद करेगा और मुद्दों को सुलझाने के लिए वार्ता करेगा।

वाजपेयी की पहल का हश्र भी याद रखिये

लेकिन वाजपेयी की इस पहल का जवाब क्या मिला यह याद होना चाहिए। 18 साल पहले करीब चार महीने की संघर्षविराम अवधि के दौरान श्रीनगर हवाई अड्डे पर बड़ा आतंकी हमला हुआ था जिसमें सुरक्षा बलों के साथ ही आम नागरिक भी मारे गये थे। यही नहीं उस दौरान वाजपेयी सरकार के इस एकतरफा संघर्षविराम को मानने से तत्काल इंकार करते हुए हिज्बुल मुजाहिदीन के प्रवक्ता सलीम हाशमी ने एक बयान जारी कर कहा था कि वह भारतीय सुरक्षा बलों पर अपने हमले जारी रखेगा। साथ ही वर्ष 2000 में घाटी में सक्रिय लगभग सभी आतंकी संगठनों ने केंद्र सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। चार महीने की इस अवधि के दौरान आतंकवादी घाटी में खुलेआम घूम रहे थे।

पाकिस्तान की किसी बात का भरोसा नहीं

अब आज महबूबा सरकार के इस प्रस्ताव को भारत सरकार यदि मान भी ले तो क्या गारंटी है कि पाकिस्तान सरकार भी ऐसी ही सदाशयता दिखायेगी ? और सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पाकिस्तान की सरकार कौन है? पाकिस्तान में असली सरकार तो सेना है जोकि आतंकवादियों का समर्थन करती है और आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें भारतीय सीमा में प्रवेश कराने में मदद करती है। महबूबा ने जो संघर्षविराम की मांग उठाई है उस पर पहले उसे अपनी सरकार में सहयोगी भाजपा से भी बात करनी चाहिए थी। भाजपा ने साफ कहा है कि एकतरफा संघर्ष विराम की मांग राष्ट्र हित में नहीं है। साथ ही, उसने पथराव करने वालों पर राज्य सरकार की नरम नीति की भी आलोचना की है। भाजपा ने कहा है कि मुख्यमंत्री ने जिस एकतरफा संघर्षविराम का सुझाव दिया है वह आतंकवादियों में नया जोश भरने का काम करेगा। जम्मू-कश्मीर सरकार में शामिल भाजपा और पीडीपी के इस मुद्दे पर अलग अलग सुर बता रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

केंद्र इस प्रस्ताव पर आगे नहीं बढ़ेगा

बहरहाल, केंद्र सरकार भी इस मांग को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं नजर आ रही है और फिलहाल जम्मू-कश्मीर में एक पक्षीय संघर्षविराम लागू करने की इच्छुक नहीं दिख रही है क्योंकि वहां हालात अभी अनुकूल नहीं हैं और वर्ष 2000 में की गई ऐसी ही कवायद का कोई बहुत सकारात्मक नतीजा सामने नहीं आया था। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी महबूबा मुफ्ती के प्रस्ताव पर जिस तरह अनमना बयान दिया है उससे साफ है कि केंद्र सरकार इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं करने जा रही। वैसे भी यह और अगला साल चुनावी वर्ष है, ऐसे में सरकार कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहेगी जिसमें उसे विपक्ष द्वारा कमजोर करार दिया जाये।

वैसे भी कश्मीर घाटी में मौजूदा हालात बेहद अशांत हैं जहां पिछले चार महीने के दौरान हिंसा की करीब 80 घटनाएं हुईं और अक्सर देखा जाता है कि मुठभेड़ स्थल पर आतंकवादियों को भागने का मौका देने के लिये नागरिक आ जाते हैं और प्रदर्शन करते हैं। सुरक्षा बल जिस तरह लगातार आपसी सामंजस्य से आतंकवादी गिरोहों के ठिकानों को ध्वस्त करने और आतंकवादियों को मौत के घाट उतारने में सफल हो रहे हैं ऐसे में कोई 'कमजोर' कदम उठाना उनका हौसला गिरा सकता है।

-नीरज कुमार दुबे

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