मोदी के राज में सिर्फ मुट्ठी भर लोगों का ही भला हो रहा है

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फ़िरदौस ख़ान । May 5 2018 2:58PM

पिछले कुछ बरसों से देश एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है, जहां सिर्फ़ मुट्ठीभर लोगों का ही भला हो रहा है। बाक़ी जनता की हालत बद से बदतर होती जा रही है। लोगों के काम-धंधे तो पहले ही बर्बाद हो चुके हैं।

एक ख़ुशहाल देश की पहचान यही है कि उसमें रहने वाले हर व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान हो, उसे बुनियादी ज़रूरत की सभी चीज़ें, सभी सुविधाएं मुहैया हों। जब व्यक्ति ख़ुशहाल होगा, तो परिवार ख़ुशहाल होगा, परिवार ख़ुशहाल होगा, तो समाज ख़ुशहाल होगा। एक ख़ुशहाल समाज ही आने वाली पीढ़ियों को बेहतर समाज, बेहतर परिवेश दे सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने सर्वोदय समाज का सपना देखा था और वे इसे साकार करना चाहते थे। गांधीजी कहते हैं- "समाजवाद का प्रारंभ पहले समाजवादी से होता है। अगर एक भी ऐसा समाजवादी हो, तो उस पर शून्य बढ़ाए जा सकते हैं। हर शून्य से उसकी क़ीमत दस गुना बढ़ जाएगी, लेकिन अगर पहला अंक शून्य हो, तो उसके आगे कितने ही शून्य बढ़ाए जाएं, उसकी क़ीमत फिर भी शून्य ही रहेगी।" भूदान आन्दोलन के जनक विनोबा भावे के शब्दों में, सर्वोदय का अर्थ है- सर्वसेवा के माध्यम से समस्त प्राणियों की उन्नति। आज देश को इसी सर्वोदय समाज की ज़रूरत है। 

पिछले कुछ बरसों से देश एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है, जहां सिर्फ़ मुट्ठीभर लोगों का ही भला हो रहा है। बाक़ी जनता की हालत बद से बदतर होती जा रही है। लोगों के काम-धंधे तो पहले ही बर्बाद हो चुके हैं। बढ़ती महंगाई की मार भी लोग झेल ही रहे हैं। ऐसे में अपराधों की बढ़ती वारदातों ने डर का माहौल पैदा कर दिया है। हालत ये है कि चंद महीने की मासूम बच्चियां भी दरिन्दों का शिकार बन रही हैं। क़ानून-व्यवस्था की हालत भी कुछ ऐसी है कि शिकायत करने वाले मज़लूम की हिरासत में मौत तक हो जाती है और आरोपी खुले घूमते रहते हैं। ऐसे में जनता का शासन-प्रशासन से यक़ीन उठने लगा है। बीते मार्च माह में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोपी की फ़ौरन गिरफ़्तारी पर रोक लगाने के आदेश के बाद से इन तबक़ों में खौफ़ पैदा हो गया है। उन्हें लगता है कि पहले ही उनके साथ अमानवीय व्यवहार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं, ऐसे में उन पर दबंगों का ज़ुल्म और ज़्यादा बढ़ जाएगा। अपने अधिकारों के लिए उन्हें सड़क पर उतरना पड़ा। क़ाबिले-गौर है कि देश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की आबादी तक़रीबन 20 करोड़ है। लोकसभा में इन तबक़ों के 131 सदस्य हैं। हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी में 67 सांसद इसी तबक़े से होने के बावजूद दलितों के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचारों पर कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। चंद सांसदों के बयान सामने आए, लेकिन जो विरोध होना चाहिए था, वह दिखाई नहीं पड़ा। ग़ौरतलब है कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक़, हर 15 मिनट में एक दलित के साथ अपराध होता है। रोज़ाना छह दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। ये तो सिर्फ़ सरकारी आंकड़े हैं, और उन मामलों के हैं, जो दर्ज हो जाते हैं। जो मामले दर्ज नहीं कराए जाते, या दर्ज नहीं हो पाते, उनकी तादाद कितनी हो सकती है, इसका अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं है। 

बुरे हालात में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल दलितों के समर्थन में सामने आए। कांग्रेस ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में संविधान बचाओ रैली का आयोजन करके जहां भाजपा सरकार को ये चेतावनी दी कि अब और ज़ुल्म बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, वहीं दलितों को भी ये यक़ीन दिलाने की कोशिश की गई कि वे अकेले नहीं हैं। कांग्रेस हमेशा उनके साथ है। रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि दलितों के ख़िलाफ़ अत्याचार बढ़ रहा है। मोदी के दिल में दलितों के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस दलितों, ग़रीबों, किसानों औऱ देश के सभी कमज़ोर तबक़ों की रक्षा के लिए हमेशा लड़ती रहेगी। कांग्रेस ने सत्तर साल में देश की गरिमा बनाई और पिछले चार साल में मोदी सरकार ने इसे धूमिल कर दिया, इसे चोट पहुंचाई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश को संविधान दिया और ये संविधान दलितों, ग़रीबों और महिलाओं की रक्षा करता है। आज सर्वोच्च न्यायालय को कुचला और दबाया जा रहा है, पहली बार ऐसा हुआ है कि चार जज हिन्दुस्तान की जनता से इंसाफ़ मांग रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग इस संविधान को कभी नहीं छू पाएंगे, क्योंकि हम ऐसा होने नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि आज जनता बेहाल है। देश के प्रधानमंत्री सिर्फ़ अपने मन की बात सुनते हैं। वह किसी को बोलना देना नहीं चाहते। वे कहते हैं कि सिर्फ़ मेरे मन की बात सुनो। मैं कहता हूं कि 2019 के चुनाव में देश की जनता मोदीजी को अपने मन की बात बताएगी। 

दरअसल, आपराधिक मामलों में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के नाम सामने आने की वजह से भी अवाम का भाजपा सरकार से यक़ीन ख़त्म हो चला है। भाजपा नेताओं के अश्लील और विवादित बयान भी इस पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को सामने लाते रहते हैं। ये बेहद अफ़सोस की बात है कि केंद्र सरकार में ज़िम्मेदार पदों पर बैठे लोग पूरी तरह से संवेदनहीन रवैया अपनाये हुए हैं। ऐसी ही वारदातों की तरफ़ इशारा करते हुए राहुल गांधी ने तंज़ किया, मोदी जी अब नया नारा देंगे- "बेटी बचाओ, बीजेपी के लोगों से बचाओ।"

बहरहाल, आज देश को ऐसे रहनुमाओं की ज़रूरत है, जो बिना किसी भेदभाव के अवाम के लिए काम करें। जनता को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि देश में किस सियासी दल का शासन है, उसे तो बस चैन-अमन चाहिए, बुनियादी सुविधाएं चाहिएं, ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए अच्छा माहौल चाहिए। अवाम की ये ज़रूरतें वही सियासी दल पूरी कर सकते हैं, जो पूर्वाग्रह से ग्रस्त न हों। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस ने इस देश के लिए बहुत कुछ किया है। आज भी अवाम को कांग्रेस से बहुत उम्मीदें हैं। राहुल गांधी की ज़िम्मेदारी है कि वे विपक्ष में होने के नाते, एक सियासी दल के अध्यक्ष होने के नाते, जनता को ये यक़ीन दिलाते रहें कि वे हमेशा उसके साथ हैं। महात्मा गांधी के सर्वोदय के सिद्धांत पर अमल करते हुए देश और समाज के लिए काम करना भी उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल हैं। आज जनता को ऐसे नेता की ज़रूरत है, जो उनकी आवाज़ बन सके। कांग्रेस इसमें कितना कामयाब हो पाती है, ये आने वाला वक़्त ही बताएगा।

-फिरदौस खान

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)

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