संघ पर आरोप लगाने वालों को जब RSS को समझने का मौका मिला तो भाग खड़े हुए

mohan-bhagwat-speech-analysis

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से अपने बारे में भ्रांतियों को दूर करने के लिए नयी दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम ''भविष्य का भारतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण'' कई मायनों में सार्थक रहा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से अपने बारे में भ्रांतियों को दूर करने के लिए नयी दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम 'भविष्य का भारतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' कई मायनों में सार्थक रहा। वैसे तो दिल्ली में संघ के कई छोटे-बड़े आयोजन हुए हैं लेकिन यह पहला ऐसा आयोजन था जिसमें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और मनोरंजन क्षेत्र के लोगों को आमंत्रित किया गया था। हालांकि कार्यक्रम में विपक्ष के नेताओं की अनुपस्थिति संघ को खली होगी। जबकि संघ की ओर से ऐसे मंच का आयोजन किया गया जिसमें विरोधी विचारधारा वाले लोगों को संघ को जानने, समझने, उसकी गतिविधियों और कार्यशैली को लेकर अपने मन के प्रश्नों के उत्तर मिल सकें।

संघ के बारे में भ्रांतिंयां क्यों?

इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक शक्तिशाली संगठन है और इसके 'फौज जैसे अनुशासन' की सराहना विपक्ष के लोग भी करते हैं। लेकिन जब कोई शक्तिशाली होता जाता है तो उसके खिलाफ दुष्प्रचार भी होता जाता है। उसकी कार्यशैली पर, उसके उद्देश्यों और मंतव्यों पर तरह-तरह के सवाल उठाये जाते हैं। उसको राजनीतिक तौर पर निशाना बनाया जाता है। ऐसा ही कुछ आरएसएस के साथ भी हो रहा है। संघ का प्रभाव देश भर में बढ़ने के साथ ही विपक्ष खासकर कांग्रेस के निशाने पर सीधा आरएसएस ही होता है। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरएसएस की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से कर दी थी। राहुल गांधी ने महात्मा गांधी की हत्या से भी आरएसएस को जोड़ा था और इस मामले में वह मानहानि के मुकदमे का सामना भी कर रहे हैं।

संघ ने लगभग तीन महीने पहले देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को अपने वार्षिक कार्यक्रम में नागपुर बुलाया था और संघ को करीब से जानने, समझने और उसकी कार्यशैली को देखने का अवसर प्रदान किया था। जो लोग संघ पर यह आरोप लगाते हैं कि वह विरोधी विचारधारा का पसंद नहीं करता उन लोगों के लिए प्रणब मुखर्जी को नागपुर का निमंत्रण एक तगड़ा जवाब था। देखा जाये तो हकीकत यह है कि संघ ने सदैव दूसरे मतों को सुनने का प्रयास किया है और उन्हें अपने बारे में जानने, समझने का अवसर मुहैया कराया है। लेकिन संघ के हर कदम को राजनीति से जोड़कर देख लिया जाता है। जैसे कि दिल्ली में इस आयोजन को भी चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है जबकि इसका आयोजन पहले से तय था।

इसमें कोई दो राय नहीं कि संघ की राष्ट्रवादी विचारधारा का अनुसरण भाजपा करती है और इसीलिए पार्टी को आड़े हाथ लिया जाता है कि वह नागपुर से नियंत्रित होती है।

आरएसएस पर विरोधियों के बड़े आरोप

विरोधियों का संघ पर एक बड़ा आरोप यह है कि वह समाज को बांटने का काम करता है, तिरंगे की जगह भगवा ध्वज को महत्व देता है और देश की विविधता भरी संस्कृति के खिलाफ है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि यह सिर्फ हिन्दुओं की चिंता करता है, हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करता है और इसके संगठन में महिलाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। लेकिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के सम्बोधन ने सभी के मन के सब प्रकार के भ्रम दूर कर दिये होंगे। मोहन भागवत ने कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिये विविधताओं से डरने की बजाए, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए। अपने डेढ़ घंटे के भाषण में भागवत ने कहा कि संघ विविधताओं का सम्मान करते हुए समाज को जोड़ने के लिए दिन-रात काम कर रहा है। और इस काम में जाति, वर्ग, धर्म और लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं है। संघ हिंदुओं की बात करता है तो मुस्लिम इलाकों में भी काम करता है, दलित बस्तियों में सेवा प्रकल्प चलाता है तो ईसाइयों के बीच जाकर भी काम करता है। आदिवासी क्षेत्रों में संघ जैसा कार्य किसी दूसरे सामाजिक संगठन ने नहीं किया।

रिमोट कंट्रोल और हिटलर की छवि गलत

भाजपा पर रिमोट कंट्रोल से नियंत्रण और संघ में महिलाओं की कम भागीदारी को लेकर उठाए जाने वाले सवालों पर भी मोहन भागवत ने स्थिति स्पष्ट की। भागवत ने अपने संबोधन में सरकार या किसी संगठन का नाम नहीं लिया। उन्होंने कहा, 'संघ का स्वयंसेवक क्या काम करता है, कैसे करता है, यह तय करने के लिये वह स्वतंत्र है। उन्होंने कहा, 'संघ केवल यह चिंता करता है कि वह गलती न करे। सरकार और संघ के बीच समय समय पर होने वाली समन्वय बैठकों का परोक्ष तौर पर जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समन्वय बैठक इसलिये होती है कि स्वयंसेवक विपरीत परिस्थितियों में अलग अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। ऐसे में उनके पास कुछ सुझाव भी होते हैं। वे अपने सुझाव देते हैं, उस पर अमल होता है या नहीं होता इससे उन्हें मतलब नहीं। उन्होंने साथ ही कहा कि हमारी हिटलर वाली छवि बनाना भी गलत है क्योंकि यहां प्रत्येक स्वयंसेवक के पास समान अधिकार हैं और छोटी से छोटी आयु का स्वयंसेवक भी बड़े से बड़े पदाधिकारी से सवाल कर सकता है।

महिलाओं को भागीदार पर स्थिति स्पष्ट की

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में महिलाओं की भागीदारी के सवाल पर भागवत का कहना था कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के समय ही यह तय हुआ था कि राष्ट्र सेविका समिति महिलाओं के लिए संघ के समानांतर कार्य करेगी। उन्होंने साफ किया कि इस सोच में बदलाव की जरूरत यदि पुरुष व महिला संगठन दोनों ओर से महसूस की जाती है तो विचार किया जा सकता है अन्यथा यह ऐसे ही चलेगा। 

तिरंगे को लेकर राजनीति क्यों?

भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर तिरंगे के अपमान को भी खारिज करते हुए कहा कि यह बिलकुल निराधार है और तिरंगा हमारी शान है। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार के जमाने में स्वयंसेवकों ने तिरंगा लेकर पथ संचालन किया। यही नहीं जब कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया गया तो डॉ. हेडगेवार ने सभी शाखाओं में कांग्रेस के इस प्रस्ताव की सराहना करते हुए प्रस्ताव पास करके कांग्रेस कमेटी को भेजने को कहा।

कांग्रेस को सराहा

उन्होंने साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका को भी सराहा और कहा कि कांग्रेस के रूप में देश की स्वतंत्रता के लिये सारे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ, जिसके अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरूषों की प्रेरणा आज भी लोगों के जीवन को प्रेरित करती है। उन्होंने कहा कि इस धारा का स्वतंत्रता प्राप्ति में एक बड़ा योगदान रहा है। सरसंघचालक ने कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में योजनाएं कम नहीं बनीं, राजनीति के क्षेत्र में आरोप लगते रहते हैं, उसकी चर्चा नहीं करूंगा, लेकिन कुछ तो ईमानदारी से हुआ ही है।

स्वतंत्रता आंदोलन में संघ की भूमिका

भागवत ने कुछ उदाहरण देते हुए बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के समय डॉ. हेडगेवार की प्रभावी भूमिका रही। भागवत ने डॉ. हेडगेवार की ओर से नागपुर में चलाये गये वंदे मातरम आंदोलन का भी उल्लेख किया और दर्शाया कि किस तरह डॉ. हेडगेवार के मन में सदैव देश की चिंता का ही भाव रहता था और यही भाव उन्होंने संघ के संस्कार में डाला।

बहरहाल, संघ प्रमुख ने सभी को यह अवसर जरूर मुहैया कराया कि लोग संगठन के बारे में जो भी पूछना चाहते हैं वह पूछ सकें लेकिन राजनीतिक दलों ने संघ के इस कदम को ज्यादा महत्व नहीं दिया। यदि अन्य राजनीतिक दल भी इस कार्यक्रम में आते तो यह हमारी स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा का परिचायक होता जहां सभी प्रकार के मतों को सुना जाता और उनकी अच्छी बातों पर अमल किया जा सकता था। विपक्ष का आरोप है कि यह कार्यक्रम आरएसएस की 'छवि' को साफ करने का प्रयास है।

-नीरज कुमार दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़