राहुल की इन हरकतों के बाद कौन दल उन्हें अपना नेता स्वीकार करेगा?

no one party to accept rahul gandhi as leader
राकेश सैन । Jul 23 2018 11:45AM

अब अविश्वास प्रस्ताव गिरने के बाद बनने वाली स्थिति से कांग्रेस का राजनीतिक पथ कंटीला होता दिख रहा है। राहुल गांधी की हरकतों ने पूरे देश में उनकी अपरिपक्व राजनेता की छवि को और पुष्ट कर दिया है।

कीचक वध के बाद कौरवों को ज्ञात हो गया कि पांडव विराट नगरी में रह रहे हैं। उनका अज्ञातवास भंग करने के लिए पूरी कौरव सेना ने विराट राज्य पर हमला कर दिया परंतु कोई भी योद्धा वनवास के दौरान प्रतिशोध की अग्नि में जलने वाले अर्जुन का सामना नहीं कर पाया। चाहे कर्ण हो या अश्वथामा, भीष्म हो या द्रोणाचार्य या खुद दुर्योधन अर्जुन के गांडीव ने सभी को धाराशाई कर दिया। इतिहास साक्षी है कि विराट का युद्ध कुरुक्षेत्र महासमर का पूर्वाभ्यास और परिणामों की भविष्यवाणी करने वाला साबित हुआ। विपक्ष द्वारा शुक्रवार 20 जुलाई को सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव कहीं न कहीं विराट युद्ध से मिलता जुलता दिख रहा है।

सत्तारुढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठजोड़ के कुछ सहयोगियों के बिदकने व एक आध के खिसकने से विपक्ष को लगने लगा था कि सरकार को घेरा जा सकता है। सरकार गिरे चाहे न गिरे परंतु सत्तारुढ़ गठजोड़ की दरारों को तो उभारा जा सकता है। कांग्रेस इस प्रस्ताव के जरिए 2019 के होने वाले महासमर को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने का प्रयास करने के साथ-साथ अपने राजनीतिक अस्त्र शस्त्र आजमाती दिखाई दी परंतु इन सभी प्रयासों का परिणाम विराट युद्ध जैसा नजर आने लगा है। अविश्वास प्रस्ताव गिरने और राहुल गांधी की हास्यास्पद हरकतों के बाद जहां एक बार फिर उनके विपक्ष का सेनापति बनने पर प्रश्न चिन्ह लगता नजर आया, वहीं यह भी स्पष्ट हो गया कि विरोधियों के पास भाजपा को घेरने की रणनीति में अभी तक तो इतना दम नहीं कि वह मोदी-शाह के अश्वमेघ अश्व की लगाम थाम पाएं।

चाहे अविश्वास प्रस्ताव से पहले कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अति उत्साह में आकर कह दिया कि उनके पास पर्याप्त संख्या बल है परंतु कांग्रेसी इतने भी अज्ञानी नहीं हैं कि वे इसका हश्र न जानते हों। कांग्रेसी रणनीति के केंद्र में मोदी सरकार नहीं बल्कि खुद राहुल गांधी थे। अखिलेश यादव, मायावती, ममता बैनर्जी, तेजस्वी यादव जैसे क्षत्रपों के उभार व कांग्रेस के निरंतर निराशाजनक प्रदर्शन से इस बात पर संदेह पैदा होने लगा है कि 2019 में मोदी विरोधी मोर्चे की कमान किसके हाथ में हो। आज विपक्ष की राजनीति में उक्त क्षत्रप राहुल पर भारी नजर आने लगे हैं, लेकिन कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व किसी को देने को तैयार नहीं दिखती।

विश्लेषक कहते हैं कि इसी कारण उसने अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया। कांग्रेस जानती है कि संसद में न तो मायावती न ही अखिलेश, ममता व तेजस्वी की मौजूदगी और मैदान राहुल के लिए साफ है कि वो देश की राजनीति को मोदी बनाम अपने नाम कर ले। परंतु गांधी खानदान के चश्मोचिराग ने नेतृत्व को निराश ही किया, ऐसा दिखाई दे रहा है। संसदीय राजनीति में यह पहला अवसर होगा कि जब किसी नेता ने इस तरह प्रधानमंत्री को जबरन झप्पी दी हो और बाद में आंख मटकाई हो। यह हरकत राजनीतिक शालीनता का उल्लंघन है और यही कारण है कि लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी इस पर नाराजगी जताई। सोशल मीडिया पर इस हरकत पर खूब चुटकले सामने आ रहे हैं और यह किसी दल के लिए अत्यंत दुखद और चिंताजनक समय होता है जब उसका कोई राष्ट्रीय नेता हास्य-विनोद की सामग्री बनता है।

अविश्वास प्रस्ताव के दौरान हुई बहस में उठे सरकार विरोधी मुद्दों पर जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उनके सहयोगियों ने एक-एक आरोप का विस्तार व तथ्यों से जवाब दिया उससे विपक्ष के राजनीतिक हथियार युद्ध से पहले ही कुंद नजर आने लगे हैं। राफेल मुद्दे पर मोदी ने कहा कि यह सौदा दो सरकारों के बीच हुआ है दो व्यापारियों के बीच नहीं। बेरोजगारी के मौके पर सरकार की ओर से तथ्यों के आधार पर बताया गया है कि देश में किस तरह रोजगार के नए मौके पैदा हो रहे हैं। आर्थिक अपराधियों के देश छोड़ कर भागने के आरोप का जवाब भाजपा इसी लोकसभा सत्र में विधेयक ला कर दे चुकी है और प्रधानमंत्री ने जिस तरह बैंकों के एनपीए मुद्दे पर विपक्ष को घेरा तो विरोधी बैंच पर बैठे लोगों के होश फाख्ता नजर आने लगे। भीड़तंत्र द्वारा हत्या (मॉब लिंचिंग) पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सरकार की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट कर दी और सिख विरोधी दंगों को इससे जोड़ कर कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में लाकर खड़ा कर दिया। 

अब अविश्वास प्रस्ताव गिरने के बाद बनने वाली स्थिति से कांग्रेस का राजनीतिक पथ कंटीला होता दिख रहा है। राहुल गांधी की हरकतों ने पूरे देश में उनकी अपरिपक्व राजनेता की छवि को और पुष्ट कर दिया है। आशंका पैदा हो गई है कि अब कोई क्षत्रप राहुल को अपनी संयुक्त सेना का सेनापति स्वीकार करेगा। सरकार विशेषकर प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से कांग्रेस की हर बाल पर हिट किया उससे साफ हो गया है कि कांग्रेस के पास वर्तमान में कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसके आधार पर वह 2019 में देश की जनता के बीच जाए और अपने प्रति विश्वास पैदा कर पाए। अविश्वास प्रस्ताव के रूप में हुई विराट युद्ध की हार ने कांग्रेस की हालत को और पतला कर दिया है।

दूसरी ओर भाजपा ने इस अवसर का खूब लाभ उठाया और अपने खिलाफ लगने वाले सभी प्रकार के आरोपों पर अपनी स्थिति देश की जनता के सामने स्पष्ट कर दी। संभावना है कि भाजपा की इस मनोवैज्ञानिक जीत से जहां पार्टी का उत्साह बढ़ेगा वहीं एनडीए के सहयोगियों में पैदा हुई खदबदाहट पर ठंडे पानी के छींटे पड़ेंगे। राहुल की नेतृत्व क्षमता स्पष्ट होने से भाजपा के दोनों हथों में लड्डू दिखने लगे हैं। अगर लोकसभा चुनाव में संयुक्त विपक्ष की बागडोर राहुल के हाथ में हुई तो भाजपा के लिए जीत आसान हो जाएगी और अगर राहुल विरोधी सेना के कमांडर नहीं बन पाए तो स्वाभाविक है कि विपक्षी दलों में एकता भी नहीं हो पाएगी। बंटे हुए विपक्ष से निपटना मोदी के लिए और भी आसान होगा। 2019 के महासमर का परिणाम अभी भविष्य के गर्भ में है परंतु विराट युद्ध सरीखे हालात संकेत दे रहे हैं कि विपक्ष के लिए फिलवक्त तो दिल्ली दूर लग रही है।

-राकेश सैन

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