जम्मू कश्मीर में पाक ने बदली फिदायीन हमलों की रणनीति
यह सच है कि फिदायीन हमला करने वालों ने अब अपनी रणनीति को भी पूरी तरह से बदल लिया है। अब उनका मकसद सुरक्षा बलों को अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के साथ ही ऐसा कुछ करने का है जो हमेशा पहली बार हो।
करगिल युद्ध के बाद जम्मू कश्मीर में आरंभ हुए फिदायीन हमलों का रूप अब बदल गया है। यहां शुरूआत के फिदायीन हमलों में एक से दो आतंकी शामिल हुआ करते थे अब उनकी संख्या बढ़ कर 4 से 6 तक हो गई है। साथ ही नई रणनीति के तहत फिदायीनों ने एक साथ हमले करने की बजाय कैंपों पर आगे और पीछे की रणनीति अपना कर सुरक्षा बलों को चौंकाना आरंभ किया है। अधिकारियों की मानें तो बीसियों आतंकी एलओसी क्रास कर कश्मीर में घुसने में कामयाब रहे हैं। नतीजतन कश्मीर की शांति खतरे में पड़ गई है। सेना ने आतंकी हमलों को रोकने की खातिर रात्रि तलाशी अभियान तेज करते हुए रात्रि गश्त के साथ-साथ नाकेबंदी की पुरानी रणनीति भी अपनाई है जिस कारण लोगों को असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
यह सच है कि फिदायीन हमला करने वालों ने अब अपनी रणनीति को भी पूरी तरह से बदल लिया है। अब उनका मकसद सुरक्षा बलों को अधिक से अधिक क्षति पहुंचाने के साथ ही ऐसा कुछ करने का है जो हमेशा पहली बार हो। यह कुपवाड़ा में गुरुवार को हुए फिदायीन हमले तथा पिछले साल अरनिया व उड़ी में हुए हमलों से साबित होता है।
जुलाई 1999 में जब करगिल युद्ध समाप्त हुआ तो 6 अगस्त 1999 को पहला फिदायीन हमला हुआ था। एक मात्र आतंकी ने फिदायीन की भूमिका निभाते हुए सैनिक शिविर के भीतर घुस कर हमला किया तो एक मेजर समेत तीन सैनिकों की मौत हो गई थी।
पहले फिदायीन हमले के 17 सालों के बाद फिदायीन हमलों में शामिल होने वालों की संख्या अब एक से बढ़ कर 6 तक पहुंच गई है। जबकि पिछले साल अरनिया में हुए फिदायीन हमले में चार फिदायीनों ने शिरकत की थी। फिदायीन हमलों में सिर्फ फिदायीनों की संख्या ही नहीं बढ़ी है बल्कि उनकी रणनीति भी बदल गई है।
पिछले 18 सालों के दौरान होने वाले सैंकड़ों फिदायीन हमलों में अभी तक यही होता रहा था कि 2 से 3 आतंकी सैनिक शिविर में अंधाधुंध गोलीबारी करते हुए घुसने की कोशिश करते थे और जितने लोग सामने आते थे उन्हें ढेर कर देते थे। पर बुधवार देर रात कुपवाड़ा के पंजगाम स्थित 310 मीडियम रेजिमेंट के कैंप पर हुए फिदायीन हमले में आतंकियों ने जो रणनीति अपनाई उसने सभी को चौंका दिया। उन्होंने दो दलों में बंट कर हमला बोला था। एक दल कैम्प में सामने से घुसने की कोशिश कर रहा था तो दूसरे ने कैंप के पीछे से हमला कर सभी को चौंका दिया था।
यही नहीं उड़ी में हुए फिदायीन हमले में पहली बार आतंकियों ने सैनिकों की बैरकों को भी आग लगा दी थी। आग लगने के कारण 14 सैनिक जल कर मारे गए। यह पहला अवसर था कि फिदायीनों ने सोए हुए सैनिकों को जिन्दा जला दिया था।
इन दोनों बड़े फिदायीन हमलों का खास पहलू यह था कि दोनों ही हमलों में शामिल आतंकी अपने साथ राकेट लांचर और मोर्टार जैसे हथियार लेकर आए थे और अपने साथ वे इतना गोला-बारूद लेकर आए थे जो मुठभेड़ों को कई दिनों तक जारी रखने के लिए काफी थे। यही नहीं इन दोनों फिदायीन हमलों से एक और बात सामने आई कि दोनों ही हमले कई किमी भीतर आकर हुए हैं। जबकि दोनों ही हमलों में शामिल फिदायीनों ने ताजा घुसपैठ की थी और फिर सुरक्षाबलों पर हमले कर सभी को चौंकाया था।
अधिकारियों की मानें तो बीसियों आतंकी एलओसी क्रास कर कश्मीर में घुसने में कामयाब रहे हैं। नतीजतन कश्मीर की शांति खतरे में पड़ गई है। सेना ने आतंकी हमलों को रोकने की खातिर रात्रि तलाशी अभियान तेज करते हुए रात्रि गश्त के साथ-साथ नाकेबंदी की पुरानी रणनीति भी अपनाई है जिस कारण लोगों को असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
वरिष्ठ अधिकारियों ने माना कि पिछले पखवाड़े पाक सेना बीसियों आतंकियों को इस ओर धकेलने में कामयाब हुई है। घुसपैठ करने वाले ताजा आतंकियों के प्रति चौंकाने वाला तथ्य यह है कि वे अति घातक हथियारों से लैस हैं जिन्हें कश्मीर की शांति भंग करने का टास्क दिया गया है। एक सैन्य सूत्र के मुताबिक, एलओसी के कुछ इलाकों में संदिग्ध व्यक्ति देखे गए हैं। हालांकि इस सूत्र ने उन इलाकों की निशानदेही करने से इंकार करते हुए कहा कि इलाकों की पहचान बताए जाने से वहां लोगों में दहशत फैल सकती है।
आतंकियों के ताजा दलों द्वारा घुसपैठ में कामयाब होने के बाद उनके इरादों के बारे में मिली जानकारी सुरक्षाधिकारियों को परेशान कर रही है। वे बताते हैं कि उन्हें भयानक तबाही मचाने का टास्क दिया गया है। वैसे वे इससे भी इंकार नहीं करते थे कि घुसपैठ करने वालों में तालिबानी, अल-कायदा या आईएस के सदस्य हो सकते हैं क्योंकि सुने गए वायरलेस संदेश इसके प्रति शंका पैदा करते थे।
अधिकारियों का कहना था कि स्थिति से निपटने की खातिर सेना को रात्रि गश्त बढ़ाने का निर्देश दिया गया है। सेना ने रात्रि तलाशी अभियान फिर से आरंभ किए हैं। साथ ही नाकेबंदी में सेना की सहायता भी ली जाने लगी है। यह सच था कि सेना द्वारा स्थानीय प्रशासन को एलओसी के इलाकों में मदद दिए जाने के कारण आम नागरिकों को भारी असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। पर एक नागरिक प्रशासनिक अधिकारी का कहना था कि सुरक्षा की खातिर इतनी असुविधा को तो सहन करना होगा।
सुरक्षा बल कहने लगे हैं कि घुसपैठ को पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं हो रहा है। फिर से आतंकी हिंसा के बढ़ने की चेतावनी ने कश्मीरियों को परेशान कर दिया है। यूं तो सेना एलओसी पर चप्पे चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी करने का दावा करती है पर परदे के पीछे वह इसे स्वीकार करती है कि तारबंदी, लाखों सैनिकों की तैनाती और उपकरणों की उपस्थिति के बावजूद उबड़-खाबड़ एलओसी पर इक्का-दुक्का घुसपैठ की वारदातों को रोक पाना संभव नहीं है।
सेना भी मानती है कि पाक सेना ने घुसपैठ की नीतिओं में जबरदस्त बदलाव किया है। अब वह परंपरागत रास्तों और तरीकों को छोड़ कर नए तरीके अपना रही है। जिसमें वाया नेपाल और जम्मू बार्डर से आतंकियों को बिना हथियारों के धकेलना तथा एलओसी के रास्ते दो से तीन के गुटों में घुसपैठ करवाना भी शामिल है।
सेनाधिकारी आप मानते हैं कि बर्फ के पिघलने के साथ साथ कई आतंकी घुसपैठ करने में कामयाब हुए हैं। हालांकि वह साथ ही दावा करते हैं कि घुसपैठ करने में कामयाब हुए आतंकियों की तलाश अभी भी जारी है। जबकि सुरक्षा एजेंसियां यह कहने से नहीं चूक रहीं कि पिछले कुछ समय से कश्मीर में होने वाली घटनाओं के पीछे ताजा घुसपैठ करने वाले आतंकियों का हाथ था।
ताजा चेतावनियों और आतंकी हमलों के दौर में आम कश्मीरी एक बार फिर बुरे हालात के प्रति सोचने लगा है। उसे लगने लगा है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बनते बिगड़ते हालात का सीधा असर कश्मीर पर पड़ेगा और वह उसकी रोजी-रोटी को छीन लेगा। सेना भी कुछ ऐसा ही चेता रही है।
जम्मू कश्मीर में इस साल हुए बड़े आतंकी हमले
9 जनवरी- जम्मू के अखनूर में जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स के कैंप पर हमला, 3 मजदूर मारे गए।
13 जनवरी- बीएसएफ ने सांबा सैक्टर में घुसपैठ की बड़ी कोशिश को नाकाम किया। 1 आतंकी मारा गया, तकरीबन 5 आतंकी पाकिस्तान वापस भागे।
17 जनवरी अनंतनाग में विशेष सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ 3 आतंकी मारे गए।
4 फरवरी- सेना और पुलिस ने सोपोर में बड़े आतंकी हमले को नाकाम किया। 2 आतंकी मारे गए।
12 फरवरी- कुलगाम में हुई मुठभेड़ में 4 आतंकी मारे गए, 2 नागरिक और सैनिक भी शहीद। मुठभेड़ के दौरान स्थानीय लोगों से हुई झड़पों में 24 लोग घायल।
14 फरवरी- उत्तरी कश्मीर में 2 बड़े एनकाउंटर, 4 आतंकी मारे गए, 4 सैनिक भी शहीद, मरने वाले आतंकियों में लश्कर के 2 बड़े कमांडर शामिल।
23 फरवरी- शोपियां जिले में आतंकियों ने सुरक्षा बलों पर हमला बोला, मुठभेड़ में 3 जवान शहीद, 1 महिला नागरिक की मौत।
4 मार्च- शोपियां में 12 आतंकियों की टीम ने एक पुलिसवाले के घर में की तोड़फोड़।
13 मार्च- पुलवामा में आतंकियों ने एक पूर्व सरपंच को मौत के घाट उतारा।
15 मार्च- कुपवाड़ा जिले में मुठभेड़, 3 लश्कर आतंकी ढेर, 1 नाबालिग लड़की ने भी गंवाई जान।
23 मार्च- आतंकियों ने शोपियां में विधायक यूसुफ भट्ट के घर और वाहन पर धावा बोला। कोई हताहत नहीं।
26 मार्च- पुलवामा के अवंतिपुरा में मुठभेड़ के दौरान हिज्बुल मुजाहिदीन के 2 आतंकी मारे गए।
2 अप्रैल- श्रीनगर के नौहट्टा में ग्रेनेड हमला, 1 पुलिसकर्मी शहीद, 14 अन्य लोग घायल।
3 अप्रैल- श्रीनगर के करीब पंथा चौक पर सीआरपीएफ के काफिले पर हमला, 1 जवान शहीद, 5 घायल।
9 अप्रैल- लोकसभा उप-चुनाव में हिंसा के दौरान 8 लोग मारे गए, करीब 200 घायल।
- सुरेश एस डुग्गर
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