कश्मीर में हीलिंग टच से पैलेट टच तक का पीडीपी का सफर
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अर्थात पीडीपी का हीलिंग टच से पैलेट टच तक का सफर उसके असली चेहरे को सामने लाया तो सबसे अधिक दर्द आम कश्मीरियों को होना स्वभाविक ही था।
कश्मीरी जनता की हमदर्द पार्टी के तौर पर जानी जाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी अर्थात पीडीपी का हीलिंग टच से पैलेट टच तक का सफर उसके असली चेहरे को सामने लाया तो सबसे अधिक दर्द आम कश्मीरियों को होना स्वभाविक ही था। मात्र कुछ महीनों में पीडीपी इतनी बदल जाएगी कभी किसी ने सोचा तक नहीं था। हालांकि कुछेक इसे भाजपा की संगत का असर कहते थे और कुछेक का मानना था कि मुफ्ती मुहम्मद सईद की मौत के बाद पार्टी अपने रास्ते से भटक गई है।
पीडीपी का जब गठन हुआ तो उसने कश्मीरी जनता की सहानुभूति की फसल को काटने की खातिर हीलिंग टच को हथियार बनाया। पहली बार सत्ता में आने पर उसने इसका बखूबी प्रदर्शन भी किया। लेकिन तब पार्टी की बागडोर मुफ्ती मोहम्मद सईद के हाथों में थी। अब उनकी मौत के बाद पार्टी का नेतृत्व उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती कर रही हैं। लोगों के लिए सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि सत्ता से बाहर रहने और मुफ्ती सईद के नेतृत्व में सत्ता में रहने पर भी जिस हीलिंग टच को खासकर महबूबा मुफ्ती ने ही अपना कर रखा हुआ था उसे आज वह कैसे भूल गई।
लोगों का इशारा वर्तमान हिंसा के दौर में सुरक्षा बलों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली ‘घातक’ पैलेट गन की ओर था जिसने सैंकड़ों युवकों को सिर्फ चलती फिरती लाश बना कर रख दिया है। कईयों की आंखों की रोशनी छीन ली है। कई मौत के मुंह में चले गए। पिछले 18 दिनों के दौरान पुलिस तथा सेना की गोलीबारी से मारे गए 57 कश्मीरियों के परिवारों को इससे अधिक गुस्सा पीडीपी पर है। गुस्से के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण वर्ष 2010 की हिंसा में जिस पैलेट गन के इस्तेमाल पर महबूबा मुफ्ती समेत पीडीपी के नेताओं ने जबरदस्त हो हल्ला किया था और आंदोलन तक छेड़ दिया था, उसका इस्तेमाल महबूबा राज में भी होने पर सभी को हैरानगी थी।
कश्मीर में 2008, 2010 और 2016 में होने वाली हिंसा का एक खास अंतर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के असली चेहरे को दिखाने में कामयाब रहा है। वर्ष 2008 और 2010 में जब हिंसा का दौर चला था तो पीडीपी सत्ता में नहीं थी। अबकी बार वह सत्ता में है। और उसने अपना असली चेहरा दिखाने में जरा भी देर नहीं लगाई है। एक वक्त था जब आतंकी हिंसा और कथित सरकारी हिंसा के शिकार कश्मीरियों के परिवारों के घरों में दस्तक दिए बिना घुसने वाली महबूबा मुफ्ती ने कश्मीरियों की सहानुभूति को जम कर बटोरा था। शायद उसी का परिणाम था कि पीडीपी 2015 के चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और सत्ता सुख भोगने के काबिल हुई। पर इसी सत्ता सुख ने अब उसे उन्हीं राजनीतिक दलों की जमात में शामिल करवा दिया है जिन्हें कश्मीरी पसंद नहीं करते हैं।
ताजा घटना अनंतनाग और कुलगाम में मारे गए युवकों के परिवारों से मुलाकातों की है। सब मुख्यमंत्री की इस मुलाकात और फिर दुख प्रकट करने के तरीके से हैरान थे। आखिर हैरान होते भी क्यों न। वह महिला नेता जो इससे पहले बिना दस्तक के हिंसा के शिकार हुए परिवारों के साथ दुख सांझा करने की खातिर उनके घरों में पहुंच जाया करती थी वह इस बार दुख यूं प्रकट करेगी किसी को ऐसी आशा नहीं थी।
हुआ यूं कि पुलिस गोली से मारे गए कुछ युवकों के परिवारों से महबूबा ने दुख सांझा किया पर उनके घरों में जाकर नहीं बल्कि उनके परिवारों के सदस्यों को डाक बंगले में बुला कर। एक जानकारी के मुताबिक, कई परिवार अनमने मन से डाक बंगले में पहुंचे थे। वे दरअसल गुस्से में थे और मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं करना चाहते थे। पीडीपी के गठन के बाद यह पहला ऐसा मौका था जब पीडीपी नेताओं ने ऐसा किया था और पीडीपी के कार्यकर्ताओं ने ऐसा होते देखा था। हालांकि इस तरीके पर अब सभी चुप्पी साधे हुए हैं।
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