शहीदों के परिजनों के आंसू भी नहीं सूखे और नेताओं को राजनीति सूझ रही है

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सेना के मनोबल और देश के लिए शहीद होने वाले सैन्यकर्मियों के परिवारों पर कितना प्रतिकूल असर पड़ेगा, इसकी किसी नेता को चिंता नहीं है। पुलवामा हमले में शहीद हुए सैन्यकर्मियों के परिवारों के तो अभी आंख के आंसू भी नहीं सूखे हैं।

इस देश में आम नागरिक जितने जिम्मेदार हैं, राजनीतिक दलों के नेता उतने ही गैर जिम्मेदार हैं। पुलवामा हमले के बाद भारत−पाक में हुई एयर स्ट्राइक के बाद केंद्र की भाजपा सरकार और विपक्षी दलों में चल रही खींचतान इसकी गवाह है। देश के लोगों ने इस पूरे मसले को जितनी गंभीरता से लिया, राजनीतिक दल उतना ही बचपना दिखा रहे हैं। यह सारी कवायद आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर की जा रही है। सत्तारूढ़ भाजपा इसे भुनाने की दाएं−बाएं से कोशिश कर रही है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने में लगे हुए हैं।

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सत्ता पक्ष और विपक्ष एक−दूसरे से सवाल−जवाब में उलझे हुए हैं। उनकी इन हरकतों से देश के आम जनमानस पर क्या असर पड़ेगा, इसकी चिंता किसी भी दल को नहीं है। एक भी दल जिम्मेदारी नहीं दिखा रहा है। भाजपा एयर स्ट्राइक का श्रेय लेने में जुटी हुई है, वहीं विपक्षी दल उसकी घेराबंदी करके इसे चुनावी चाल करार देने पर तुले हुए हैं। चुनाव के मद्देनजर हो रही इस किचकिच से राष्ट्रीय−अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की कितनी किरकिरी हो रही है, इसकी भी किसी को चिन्ता नहीं है। यहां तक की पाकिस्तानी मीडिया भी सत्ता को लेकर दलों में फैले इस दलदल को सुर्खियां बनाकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने सफाई पेश करने में जुटा हुआ है। इससे पहले भी विधान सभा चुनावों के दौरान सेना की स्ट्राइक पर राजनीतिक दलों ने एक−दूसरे पर जमकर लांछन लगाए थे।

इससे सेना के मनोबल और देश के लिए शहीद होने वाले सैन्यकर्मियों के परिवारों पर कितना प्रतिकूल असर पड़ेगा, इसकी किसी नेता को चिंता नहीं है। पुलवामा हमले में शहीद हुए सैन्यकर्मियों के परिवारों के तो अभी आंख के आंसू भी नहीं सूखे हैं। सभी दल सेना के पराक्रम पर अपनी−अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं। एक−दूसरे की छिछालेदार पर उतर आए हैं। राजनीतिक दलों का अब तक चारित्रिक इतिहास इसका गवाह रहा है कि ऐसे संवेदनशील मौकों को भी उन्होंने राजनीतिक तौर पर भुनाने का प्रयास किया है।

इस एयर स्ट्राइक के बाद भी लगने लगा था कि राजनीतिक दल इसे भुनाए बगैर नहीं मानेंगे। उनके इन आरोप−प्रत्यारोपों ने देश में जगे देशभक्ति के जज्बे को कमजोर करने का काम किया है। पुलवामा के शहीदों के बाद पूरा देश शोक में था। पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों पर वायुसेना की कार्रवाई के बाद नागरिकों का सदमा काफी हद तक कम हुआ। लगने लगा कि भारत ऐसी नापाक हरकतों का मुंह तोड़ जवाब देने का साहस रखता है।

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विंग कमांडर अभिनंदन के पाकिस्तान के लड़ाकू विमान एफ-16 को मार गिराए जाने के दौरान पकड़े जाने पर देश में एक बार फिर देशभक्ति के साथ एकता का संचार हुआ। देश भर से अभिनंदन के रिहाई की दुआएं की जाने लगीं। विश्व समुदाय के दबाव के सामने आखिरकार पाकिस्तान को जांबाज विंग कमांडर को रिहा करना पड़ा। देशभक्ति से सरोबार पूरे देश में इसका जश्न मनाया गया। राजनीतिक दल यदि सत्तालोलुपता नहीं दिखाकर इस ज्वार को देश के निर्माण की दिशा में मोड़ने का प्रयास करते तो भारत मजबूती के रास्ते पर कुछ कदम आगे बढ़ता।

इससे देश की एकता−अखण्डता और मजबूत होती। नए राष्ट्रवाद का संचार होता। इसके विपरीत राजनीतिक दलों ने एक−दूसरे के खिलाफ सवाल−जवाबों का दौर शुरू कर दिया। देश के लोगों की सकारात्मक ताकत को नकारात्मक में बदलने का काम किया गया। उनके जज्बों को सही दिशा में नेतृत्व देने के बजाए राजनीतिक दल आपस में ही उलझ गए। इससे राजनीतिक दलों ने यह साबित कर दिया कि उनके लिए सत्ता ही सर्वोपरि है। देश की एकता−अखंडता को मजबूत करने के प्रयासों को दलों की ऐसी करतूतों से ही झटका लगता है।

होना तो यह चाहिए कि राजनीतिक दलों को ऐसे मसलों पर जुबां बंद रखनी चाहिए। सभी दलों को हर हाल में सेना का मनोबल बढ़ाए रखना चाहिए। चुनावी लाभ के लिए इसके प्रचार से बचा जाना चाहिए। चुनाव जीतने के लिए किए गए विकास कार्यों और भावी योजनाओं को सामने रखना चाहिए। विपक्षी दलों को भी सरकार के कामकाज की आलोचना करनी चाहिए। यह पहला मौका नहीं है जब देश के लोगों ने पाकिस्तान पर की गई एयर स्ट्राइक के बाद देशभक्ति का परिचय दिया हो। इससे पहले भारत−पाकिस्तान, भारत−चीन और कारगिल युद्ध के दौरान भी देश के लोगों ने अपने दुख−दर्द भूलकर गजब की एकता का परिचय दिया। वर्ष 1998 में वाजपेयी सरकार द्वारा किए द्वितीय परमाणु परीक्षण के दौरान भी देश के लोगों ने ऐसी ही राष्ट्रभावना प्रदर्शित की थी। इस परीक्षण के बाद अमेरिका सहित कई मुल्कों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे। देश पर आर्थिक संकट आने के बावजूद लोगों ने उफ तक नहीं की। अपनी तकलीफों के लिए किसी को दोष नहीं दिया।

इतना ही नहीं वाजपेयी सरकार के इस बुलंद फैसले पर आगामी चुनाव में जनता ने मुहर तक लगा दी। दूसरी तरफ राजनीतिक दल हैं, जो ऐसी आपात स्थिति में भी निहित राजनीतिक स्वार्थों में डूब कर एक−दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे हुए हैं। होना यह चाहिए कि राजनीतिक दल अपने लिए अपनी लक्ष्मण रेखा तय करें, वैसे भी देश किसी एक राजनीतिक दल के भरोसे नहीं है।

-योगेन्द्र योगी

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