पद देने से नहीं सरकार की नीयत साफ होने से होगा दलितों का भला

मनोज झा । Jun 22 2017 12:58PM

राजनीति में अपने फायदे के लिए कोई पार्टी किसी दलित को राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री या राज्यपाल तो बना सकती है लेकिन वो उन लाखों दलितों के लिए कुछ नहीं कर सकती जिनपर रोज अत्याचार हो रहे हैं।

देश का राष्ट्रपति कोई दलित हो इसे लेकर किसी को आपत्ति नहीं...लेकिन रामनाथ कोविंद को दलित बताकर राजनीति करना सरासर गलत है। देश के दसवें राष्ट्रपति के.आर. नारायणन भी दलित थे..और मुझे राष्ट्रपति भवन में एक बार उनसे मिलने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। दो मिनट की मुलाकात के बाद मैं इस बात को लेकर हैरान था कि इतनी बड़ी शख्सियत को क्या इसलिए इस पद पर चुना गया क्योंकि वो दलित समुदाय से आते हैं। अगर ऐसा है तो ये अंबेडकर समेत उन महान दलितों का अपमान है जिन्होंने अपनी योग्यता के दम पर देश और दुनिया में लोहा मनवाया।

भारत की राजनीति में दलित शब्द का वोट बैंक से करीबी रिश्ता रहा है..लेकिन दलितों के उत्थान के लिए कितना काम हुआ ये सभी को मालूम है। मोदी सरकार ने कोविंद को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष में तो फूट डाल दी लेकिन उसकी मंशा जाहिर हो गई। अगर कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने में उनके दलित होने का ख्याल रखा गया है तो ये सरासर गलत होगा। कोविंद बिहार के राज्यपाल बनने से पहले दो बार राज्यसभा से सांसद रह चुके हैं यही नहीं 1977 में वो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव भी थे। लेकिन आज उनकी योग्यता और अनुभव की कम उनके दलित होने की ज्यादा चर्चा है।

कोई भी शख्स जन्म से दलित नहीं होता उसे दलित हमारा समाज बनाता है। दलित होने का दर्द क्या होता है ये गांवों में जाकर देखिए जिसे खान-पान से लेकर सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाती। मुझे आज भी याद है टेलीवीजन पर रामायण और महाभारत सीरियल के दिनों में हमारे गांव में सिर्फ चंद लोगों के घरों में टीवी होती थी...अगर गलती से कोई दलित टीवी देखने जमीन पर बैठ जाता तो फिर उसकी खैर नहीं थी।

क्या कोविंद के राष्ट्रपति बनने के बाद दलितों को ऊंची जाति के लोगों के घरों में साथ बैठकर टीवी देखने की इजाजत मिलेगी...हरगिज नहीं। सच्चाई तो यही है कि किसी भी पार्टी ने दलितों के उत्थान के लिए ठोस कदम नहीं उठाया...मायावती ने कई सालों तक यूपी पर राज किया लेकिन वहां के दलितों का कितना उत्थान हुआ ये सभी जानते हैं। रामविलास पासवान इतने सालों तक केंद्र में मंत्री रहे लेकिन बिहार की छोड़िए उनके गृह जिले हाजीपुर में भी दलितों की हालत नहीं सुधरी। नीतीश ने दलितों का दिल जीतने के लिए जीतन मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन इससे दलितों का कितना भला हुआ ये सभी जानते हैं?

यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने तो यहां तक कह डाला कि दलित बेटे को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने पर पूरा यूपी मोदी का आभार प्रकट कर रहा है। मंगलवार को जब मैं न्यूजरूम में था उसी समय बागपत से एक खबर आई जहां 16 साल के दलित लड़के की दबंगों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी...दलित लड़के का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने गांव के दबंगों से सब्जी के पैसे मांग लिए थे। राजनीति में अपने फायदे के लिए कोई पार्टी किसी दलित को राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री या राज्यपाल तो बना सकती है लेकिन वो उन लाखों दलितों के लिए कुछ नहीं कर सकती जिनपर रोज अत्याचार हो रहे हैं। किसी शख्स को कोई पद और सम्मान देकर दलितों का भला नहीं हो सकता...दलितों का भला तभी होगा जब सरकार की नीयत साफ होगी।

मनोज झा

(लेखक एक टीवी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

We're now on WhatsApp. Click to join.

Tags

    All the updates here:

    अन्य न्यूज़