नौकरशाही पर नकेल कसने को मोदी ने निकाला बेहतरीन तरीका

Private sector employees can now apply for top posts in Modi government
ललित गर्ग । Jun 12 2018 12:49PM

केवल वही मेधावी नहीं होते जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की होती है। देश में तमाम ऐसे पेशेवर हैं जिन्होंने आइएएस अधिकारियों से कहीं बेहतर काम कर दिखाया है। निःसंदेह आइएएस अधिकारियों की अपनी अहमियत है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नया भारत निर्मित करना चाहते हैं, इसके लिये देश के प्रशासनिक क्षेत्र को सशक्त बनाने एवं नौकरशाही को दक्ष, प्रभावी एवं कार्यकारी बनाने की तीव्र आवश्यकता है। नौकरशाही को प्रभावी, सक्षम एवं कार्यक्षम बनाने और उसमें नए तौर-तरीकों को समाहित करने के इरादे से संयुक्त सचिव पद के स्तर पर निजी क्षेत्र के दक्ष, विशेषज्ञ पेशेवर लोगों को नियुक्त करने का फैसला एक नई पहल है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा था कि नौकरशाही में ऐसे प्रतिभाशाली पेशेवर लोगों का प्रवेश होना चाहिए जो अपने-अपने क्षेत्र में विशेष योग्यता के साथ अनुभव से भी प्रतिभाशाली हों, दक्ष हों। लेकिन अनेक कारण रहे, जिससे इस बारे में अब तक कोई फैसला नहीं लिया जा सका। देर से ही सही, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने विभिन्न क्षेत्रों के मेधावी एवं अनुभवी पेशेवर लोगों के आवेदन मांगकर एक नई शुरुआत की है। लेकिन यहां प्रश्न यह भी है कि इतने ऊंचे वेतन एवं साधन-सुविधाओं के बावजूद भारत सरकार एवं राज्य सरकार के उच्च पदों पर योग्य एवं प्रतिभाशाली व्यक्तियों का चयन क्यों नहीं होता? आरक्षण के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले राजनीतिक दल यह संभव नहीं होने देते। मोदी सरकार ने यह साहस किया है तो निश्चित ही भारत की तस्वीर बदलेगी।

यह एक नयी एवं अभिनव शुरुआत है। भले ही प्रारंभ में दस पदों के लिए आवेदन मांगे गए हैं। इन पदों के लिये सक्षम व्यक्ति आगे आये, इस हेतु तय किया गया है कि आवेदन करने वाले निजी क्षेत्र या किसी सार्वजनिक उपक्रम अथवा शैक्षिक संस्थान में पेशेवर के तौर पर कार्यरत हों और कम से कम 15 वर्ष का अनुभव रखते हों। पात्रता की ऐसी शर्तों के चलते यह उम्मीद की जाती है कि सरकार वास्तव में मेधावी एवं अपने काम में दक्ष, विशेषज्ञ एवं प्रतिभा सम्पन्न लोगों को खुद से जोड़ने में सक्षम होगी। उम्मीद यह भी की जाती है कि वे पेशेवर इस अवसर का लाभ उठाने के लिए आगे आएंगे जिनके पास अनुभव के साथ विशेष योग्यता है और जो देश एवं समाज के लिए कुछ कर दिखाना चाहते हैं। देश के सर्वोच्च प्रतिभा सम्पन्न लोग इस मौके को हाथोंहाथ लेंगे और सेवा करने के लिए आगे आएंगे। ऐसे लोग ही सुधार की सफलता की कुंजी हैं। इन्हीं लोगों के बल पर नया भारत निर्मित हो सकेगा।

सरकार की अधूरी योजनाओं को तीव्रता से गति देने एवं नयी परियोजनाओं पर प्रभावी कार्यवाही के लिये प्रशासन में नये तौर-तरीके समाहित किये जाने की आवश्यकता है, इस दृष्टि से यह पहल एक नयी सुबह का आगाज करेगी। राजनीतिक जागृति के साथ प्रशासनिक जागृति का अभियान वर्तमान की बड़ी जरूरत है। नौकरशाहों पर नकेल कसना एवं उन्हें अपनी जिम्मेदारियों के लिये प्रतिबद्ध करना भी जरूरी है। कभी-कभी ऊंचा उठने और भौतिक उपलब्धियों की महत्वाकांक्षा राष्ट्र को यह सोचने-समझने का मौका ही नहीं देती कि कुछ पाने के लिए उसने कितना खो दिया? और जब यह सोचने का मौका मिलता है तब पता चलता है कि वक्त बहुत आगे निकल गया और तब राष्ट्र अनिर्णय के ऊहापोह में दिग्भ्रमित हो जाता है।

जब भी कोई बड़ा परिवर्तन किया जाता है तो उसकी प्रतिक्रिया अवश्य होती है। संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के तौर पर पेशेवर लोगों की भर्ती की इस पहल का यह कहते हुए विरोध किया जा रहा है कि सरकार तय प्रक्रिया का उल्लंघन कर रही है और वह पिछले दरवाजे से पसंदीदा लोगों को नौकरशाही में प्रवेश कराने का इरादा रखती है। यह स्पष्ट ही है कि ऐसे आलोचक इस तथ्य की जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं कि सरकार केवल पेशेवर एवं अनुभवी लोगों को ही संयुक्त सचिव स्तर पर नियुक्त करने जा रही है। यह सही है कि ये वे पेशेवर होंगे जिन्होंने न तो सिविल सेवा परीक्षा दी होगी और न ही इस परीक्षा के बाद लिया जाने वाला प्रशिक्षण प्राप्त किया होगा, लेकिन केवल वही मेधावी नहीं होते जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की होती है। देश में तमाम ऐसे पेशेवर हैं जिन्होंने आइएएस अधिकारियों से कहीं बेहतर काम कर दिखाया है। निःसंदेह आइएएस अधिकारियों की अपनी अहमियत है, लेकिन यह कहना ठीक नहीं कि केवल वही देश की बेहतर तरीके से सेवा कर सकते हैं। चूंकि यह एक नया प्रयोग है इसलिए कुछ समय बाद ही यह पता चलेगा कि परिणाम अनुकूल रहे या प्रतिकूल? 

इस पहल को सरकार में वरिष्ठ पदों पर सीधी भर्ती के रूप में देखा जा रहा है। यह नौकरशाही में बड़े बदलाव की तैयारी है। यह प्रस्ताव वर्षों से लटका पड़ा था। इस नयी पहल में आवेदक की न्यूनतम आयु एक जुलाई 2018 को 40 साल से कम नहीं होनी चाहिए। साथ ही वे मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से स्नातक होने चाहिए। उच्च शिक्षा का उन्हें अतिरिक्त लाभ मिलेगा। चयन के लिए उम्मीदवारों का साक्षात्कार लिया जाएगा। चयनित उम्मीदवार को तीन साल के करार पर रखा जाएगा। इसे अधिकतम पांच साल तक बढ़ाया जा सकेगा। चयनित उम्मीदवारों को संयुक्त सचिव के स्तर का वेतनमान दिया जाएगा। साथ ही वे सरकारी आवास व वाहन जैसी सुविधाओं के भी हकदार होंगे। इस नयी शुरुआत से उच्च पदों से आईएएस का वर्चस्व खत्म होगा। केंद्र सरकार को अपने 10 महत्वपूर्ण मंत्रालयों एवं क्षेत्रों जैसे राजस्व वित्तीय सेवा, आर्थिक मामले, कृषि, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, पोत परिवहन, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन और वाणिज्य के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले मेधावी और उत्साही लोगों की जरूरत है। संयुक्त सचिव स्तर पर अधिकारियों की कमी से जूझ रही केंद्र सरकार को इससे राहत मिलेगी। यह एक नया प्रयोग है जिससे भारत सरकार के उच्च प्रशासन की शक्ल को नया आकार मिलेगा।

इस नयी पहल से केंद्र सरकार की वे बड़ी परियोजनाएं जो समय से पीछे चल रही हैं, शीघ्रता से पूरी हो सकेगी। आम तौर पर अब तक परियोजनाएं इसीलिए लंबित होती रही हैं, क्योंकि नौकरशाही उन्हें समय से पूरा करने के लिए आवश्यक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं करती। आखिर नौकरीशाही की लापरवाही को राष्ट्र क्यों भुगते? अब इन नये नियुक्त नौकरशाहों के बलबूते से गिरते विकास एवं अधूरी पड़ी परियोजनाओं को गति देने में मदद मिल सकेगी, समस्याओं से ग्रस्त सामाजिक व राष्ट्रीय ढांचे को सुधार सकेंगे, तोड़कर नया बना सकेंगे।

भारत के समग्र विकास में नौकरशाही का रवैया सबसे बड़ी बाधा रही है। एक ऐसे समय जब तमाम विदेशी निवेशक भारत में बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए प्रतीक्षारत हैं तब उसकी सुधार की प्रक्रिया का शुभारंभ शुभ संकेत है। आवश्यकता केवल चुनौतियों को समझने की ही नहीं है, आवश्यकता है कि हमारा मनोबल दृढ़ हो, चुनौतियों का सामना करने के लिए हम ईमानदार हों और अपने स्वार्थ को नहीं परार्थ और राष्ट्रहित को अधिमान दें।

सच तो यह भी है और जरूरत इसकी भी है कि नये नियुक्त नौकरशाहों के साथ-साथ पहले से चले आ रहे नौकरशाही के रुख-रवैये में बदलाव लाने के लिए प्रशासनिक सुधारों को प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ाया जाए। यह समझना कठिन है कि विभिन्न योजनाओं-परियोजनाओं को गति देने के लिए प्रतिबद्ध सरकार ने प्रशासनिक सुधारों को अब तक अपने एजेंडे पर क्यों नहीं लिया? 

राष्ट्र केवल पहाड़ों, नदियों, खेतों, भवनों और कारखानों से ही नहीं बनता, यह बनता है देश के उच्च प्रशासनिक अधिकारियों के उच्च चरित्र से। हम केवल राष्ट्रीयता के खाने (कॉलम) में भारतीय लिखने तक ही न जीयें, बल्कि एक महान राष्ट्रीयता (सुपर नेशनेलिटी) यानि चरित्रयुक्त राष्ट्रीयता के प्रतीक बन कर जीयें। यही बात जिस दिन नौकरशाहों के समझ में आ जायेगी, उस दिन परियोजनाएं भी अधूरी नहीं रहेंगी और उनके इरादे भी विश्वसनीय एवं मजबूत होंगे। तभी नये भारत का निर्माण संभव होगा, तभी हर रास्ता मुकाम तक ले जायेगा।

कुछ लोग किसी कोने में आदर्श की स्थापना होते देखकर अपने बनाए समानान्तर आदर्शों की वकालत करते हैं। यानी स्वस्थ परम्परा का मात्र अभिनय। प्रवंचना का ओछा प्रदर्शन। सत्ताविहीन असंतुष्टों की तरह आदर्शविहीन असंतुष्टों की भी एक लम्बी पंक्ति है जो दिखाई नहीं देती पर खतरे उतने ही उत्पन्न कर रही है। सब चाहते हैं कि हम आलोचना करें पर काम नहीं करें। हम गलतियां निकालें पर दायित्व स्वीकार नहीं करें। ऐसा वर्ग आज बहुमत में है। ऐसे ही वर्ग ने एक सार्थक शुरुआत में भी छेद करने शुरु कर दिये हैं।

इस नए प्रयोग के परिणाम कुछ भी हों, यह वक्त की मांग है कि शासन-प्रशासन में विषय विशेषज्ञ एवं अनुभवी लोगों की हिस्सेदारी बढ़े। आखिर जब शासन में ऐसे लोग भागीदार बन सकते हैं तो प्रशासन में क्यों नहीं बन सकते? यह नया प्रयोग इस जरूरत को भी रेखांकित कर रहा है कि मोदी सरकार को प्रशासनिक सुधार को अपने एजेंडे पर लेना चाहिए।

-ललित गर्ग

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