पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश में सड़क क्रांति के लिहाज से अहम पड़ाव है

Purvanchal Expressway
ललित गर्ग । Nov 18 2021 2:59PM

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का बनना इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके के लोगों के लिए एक बडे सपने के सच होने जैसा है, इससे इस पिछड़े क्षेत्र के विकास के नये रास्ते उद्घाटित होंगे। इससे उनके आवागमन की मुश्किलें तो कम होंगी ही औद्योगिक गतिविधियों को भी नये पंख मिलेंगे।

भारत केवल अपने धन-धान्य, जीवन मूल्य एवं भौतिक सम्पदा को लेकर ही इतिहास में महान् नहीं रहा है, बल्कि यह मानवीय विकास के संसाधनों की प्रचुरता को लेकर भी महान् बना रहा है। इस महानता को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार विकास की नई गाथा लिखती रही है और दुनिया को आश्चर्यचकित किये हुए है। ऐसा ही विकास का एक अनूठा अध्याय मोदी ने 341 किलोमीटर लम्बे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करके लिखा है। यह भारत के पराक्रम, दृढ़ मनोबल, मौलिकता, नयी सोच एवं विकासमूलक इरादों का दिग्दर्शन है। ‘जो आज तक नहीं हुआ, वह आगे कभी नहीं होगा’ इस बूढ़े एवं निराशावादी तर्क से बचकर नया प्रण एवं नवीन योजनाओं को पंख लगाते हुए नया भारत-सशक्त भारत निर्मित करने के प्रभावी एवं कारगर उपक्रम हो रहे हैं, जो सुखद होने के साथ दृढ़ मनोबल का प्रतीक है। बिना किसी को मिटाए निर्माण एवं विकास की नई रेखाएं खींची जा रही हैं। यही साहसी सफर शक्ति, समय, राष्ट्रीय संसाधनों एवं श्रम को सार्थकता देगा।

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पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का निर्माण देश में सड़क क्रांति के लिहाज से एक अहम पड़ाव है, यह वर्तमान सरकार एवं उनकी नीतियों, कार्य-योजनाओं एवं नया भारत निर्मित करने के संकल्प की एक बानगी है। वायु सेना के सी-130जे सुपर हरक्यूलिस विमान का इस एक्सप्रेस-वे पर उतरना सरकार के पुरुषार्थी संकल्प, मौलिक चिन्तन, उसकी विकासमूलक नीतियों एवं निर्णयों की सार्थक निष्पत्ति है। जाहिर है, तरक्की की हर मंजिल साझा कदमों से ही तय होती है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का बनना इस अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके के लोगों के लिए एक बडे सपने के सच होने जैसा है, इससे इस पिछड़े क्षेत्र के विकास के नये रास्ते उद्घाटित होंगे। इससे उनके आवागमन की मुश्किलें तो कम होंगी ही बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकरनगर, अमेठी, सुल्तानपुर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर जिलों की औद्योगिक गतिविधियों को भी नये पंख मिलेंगे।

  

पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के निर्माण ने यह विश्वास जगा दिया है कि देश में विकास का पहिया थमने वाला नहीं है। साढ़े तीन वर्ष के भीतर लगभग 22,500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह एक्सप्रेस-वे अन्य राज्य सरकारों के लिए भी एक उदाहरण है, प्रेरणा है कि समयबद्ध निर्माण की क्या अहमियत है। मौलिकता एवं त्वरित कार्य-संस्कृति की आज जितनी कीमत है, उतनी ही सदैव रही है। जिस शीर्ष नेतृत्व के पास अपना कोई मौलिक विचार है, मौलिक कार्य-संस्कृति है, संकल्प है तो संसार उसके लिए रास्ता छोड़ कर एक तरफ हट जाता है और उसे आगे बढ़ने देता है। मौलिक विचारक तथा काम के नये तरीके खोज निकालने वाला नेतृत्व ही राष्ट्र एवं समाज की सबसे बड़ी रचनात्मक शक्ति होता है। अन्यथा ऐसे लोगों से दुनिया भरी पड़ी है जो पीछे-पीछे चलना चाहते हैं और चाहते हैं कि सोचने का काम कोई और ही करे। लेकिन मोदी एवं योगी सोचते भी है एवं सोचे हुए को आकार भी देते हैं। यह इन दोनों नेताओं की एक नई कार्य-संस्कृति है, जो महज शिलान्यासों के आडंबर व अधूरी योजनाओं में सार्वजनिक धन की बरबादी से दूर है। निस्संदेह, इस कार्य-संस्कृति और राजनीतिक चेतना को सहेजने की जरूरत है। एक समृद्ध, विकासमूलक एवं गौरवशाली भारत का हर नेतृत्व अपने स्वार्थों, संकीर्ण सोच, गलत रास्तों को छोड़कर यदि फिर से आगे आया तो नया भारत-सशक्त भारत का संकल्प अपनी सार्थकता को पा लेगा।

किसी भी राष्ट्र के विकास को आंकने की जो कसौटियां हैं, उनमें सड़कों का जाल सबसे अहम रहा है। आज विशाल आबादी की अपेक्षाओं व जरूरतों को पूरा करने की तो यह बुनियादी शर्त है। इस मामले में देश दशकों तक तेज प्रगति नहीं कर पाया, क्योंकि अर्थव्यवस्था की कुछ सीमाएं थीं, राजनीतिक सोच कुंद थी, वोटों की स्वार्थपूर्ण राजनीति थी और अलग-अलग सरकारों की प्राथमिकताएं भी अलग थीं। कुछ सरकारों विशेषतः राज्य-सरकारों एवं उनके मुख्यमंत्रियों के लिए विकास वहीं तक सीमित था जहां उनका घर था, या उनका राजनीतिक क्षेत्र था। लेकिन आज इस स्वार्थी राजनीतिक सोच को बदलने के प्रयोग हो रहे हैं, तो निश्चित ही यह राष्ट्रीयता एवं राष्ट्र-विकास को गति देगा।

पूर्वांचल एक्सप्रेसवे आज उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे राष्ट्र को आपस में जोड़ रहा है। देश का विकास तथाकथित धार्मिक संकीर्णता एवं साम्प्रदायिकता के खानों में बांटने से नहीं हो सकता। इन संकीर्णताओं से ऊपर उठने वाली सरकारों ने ही विकास को नये आयाम दिये हैं। खासकर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय शुरू स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के तहत देश के चार बड़े महानगरों- दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता को सड़क मार्ग से जोड़ने का जो काम शुरू हुआ था, वह 2012 में मनमोहन सिंह सरकार के समय पूरा हुआ।

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उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा प्रांत है, वहीं से देश की राजनीति की दिशाएं तय होती रही हैं, उसी प्रांत ने अनेक प्रधानमंत्री दिये हैं। लेकिन हमने वहां लंबा दौर, ऐसी सरकारों का देखा जिन्होंने विकास के स्थान पर स्वार्थ की राजनीति को बल दिया। उन सरकारों ने विकास की समग्र अपेक्षाओं की चिंता किए बिना ही औद्योगीकरण के सपने दिखाए। परिणाम ये हुआ कि जरूरी सुविधाओं के अभाव में यहां लगे अनेक कारखानों एवं औद्योगिक ईकाइयों में ताले लग गए। ये भी दुर्भाग्य रहा कि दिल्ली और लखनऊ, दोनों ही जगह परिवारवादियों का ही दबदबा रहा। मौलिक सोच के अभाव में इन परिवारवादियों ने देश के विकास को अवरुद्ध किया।

यही कारण है कि इन्हीं परिवारवादियों से जुड़े राजनीतिक दल पीढ़ियों तक प्रबल रहे और फिर सिकुड़ते हुए निस्तेज हो गये। कारण, लोग नई विधि से काम करने में घबराते थे, संकीर्णता ओढ़े थे व किसी-न-किसी सोच एवं परम्परा का अनुकरण करते थे। उनका सिद्धांत होता था कि जो तरीका मेरे बाप-दादा के लिए अच्छा था, वही मेरे लिए अच्छा है। उनके मुकाबले में नये आने वाले राजनीतिक दल दौड़कर अपनी मौलिकता से एक-एक पग आगे रखते गये और तेजी से प्रगति करने लग गये। यह भी दृढ़ धारणा न बनायें कि आप काम को नये ढंग से करेंगे तो बस उतने में ही आपको सफलता मिल जाएगी। प्रभावशाली मौलिकता का ही मूल्य है... प्रभावहीन एवं अव्यावहारिक मौलिकता का लाभ नहीं होता। ऐसा भी देखते रहे हैं कि कई दलों में किसी एक व्यक्ति कि शक्ति को बढ़ाने का लक्ष्य रहा है, यह एक भारी खतरा है इससे दूसरों का व्यक्तित्व एवं योग्यताएं उभर नहीं पाती। कांग्रेस में आज यही देखने को मिल रहा है। यह भी कहा जाता है कि सत्ता एक आदमी के हाथ में नहीं होनी चाहिए इसे विकेन्द्रित कर दिया जाना चाहिए, पर देखते हैं कि उस विकेन्द्रीकरण में भी मौलिकता की ही प्रधानता रहती है। प्रबल मौलिकता तथा प्रतिभाशाली व्यक्ति के शासन से छूटने का कोई उपाय नहीं, कारण शासन व्यक्ति नहीं, मौलिकता करती है। मौलिकता अपने भीतर से आती है या फिर कहीं से नहीं आती। जैसा कि हम वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभावी एवं मौलिक नेतृत्व में लगातार देखते आ रहे हैं।

एक सोच उभरती है कि हम दायें जाएं चाहे बायें, अगर श्रेष्ठ बनना है तो दृढ़ मनोबल चाहिए। गीता से लेकर जितने ग्रंथ हैं वे सभी हमें यही कहते हैं कि ''मनोबल'' ही वह शक्ति है जो भटकते हुए नेतृत्व को लक्ष्य तक पहुंचाती है। घुटने टेके हुए व्यक्ति को हाथ पकड़ कर उठा देती है। अंधेरे में रोशनी दिखाती है। विपरीत स्थिति में भी मनुष्य को कायम रखती है। एक दृढ़ मनोबली व्यक्ति के निश्चय के सामने जगत् किस तरह झुक जाता है, हमने मोदी के नेतृत्व से यह जाना। बाधाएं अपने आप हट जाती हैं। जब कोई नेतृत्व समझता है कि वह किसी काम को नहीं कर सकता तो संसार का कोई भी दार्शनिक सिद्धांत ऐसा नहीं, जिसकी सहायता से वह उस काम को कर सके। यह स्वीकृत सत्य है कि दृढ़ मनोबल से जितने कार्य पूरे होते हैं उतने अन्य किसी मानवीय गुणों से नहीं होते। इसी दृढ़ मनोबल ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे जैसे विकास के नये सूरज को उदित किया है।

-ललित गर्ग

(लेखक, पत्रकार एवं समाजसेवी)

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