राहुलजी सरकारी संस्थानों को तो बख्श दीजिये, HAL के बहाने राजनीति ठीक नहीं

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाते रहे हैं कि यह लोग देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करना चाहते हैं और सरकारी संस्थाओं की गरिमा को इस सरकार ने गिरा दिया है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आरोप लगाते रहे हैं कि यह लोग देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करना चाहते हैं और सरकारी संस्थाओं की गरिमा को इस सरकार ने गिरा दिया है। लेकिन राहुल गांधी को जवाब देना चाहिए कि उन्होंने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के पूर्व एवं वर्तमान कर्मचारियों से मिलकर, उन्हें संबोधित कर एक सरकारी संस्थान का राजनीतिकरण करने की जो कोशिश की है क्या वह सही कदम था ? राफेल मामले को लेकर सरकार की आलोचना करना हर विपक्षी दल का अधिकार है और अगर इस सौदे में कुछ गलत हुआ है तो उसे सामने लाना विपक्ष का कर्तव्य भी है लेकिन किसी सरकारी विभाग, वो भी रक्षा क्षेत्र के विभाग में जाकर राजनीति करना कांग्रेस की मानसिकता को दर्शाता है। वो कांग्रेस जिस पर डॉ. मनमोहन सिंह के देश का प्रधानमंत्री रहते प्रधानमंत्री कार्यालय की गरिमा गिराने का आरोप लगता रहा हो उससे और क्या अपेक्षा की जा सकती है।

एचएएल भी कांग्रेस के रुख से परेशान!

सरकारी क्षेत्र की एयरोस्पेस कंपनी ने अपने कर्मचारियों के ‘राजनीतिकरण’ पर खेद जताते हुए इसे राष्ट्रीय सुरक्षा एवं संस्थान के लिहाज से अहितकर बताया है। एचएएल का यह बयान उस घटनाक्रम के बाद आया है जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि आधुनिक भारत के संस्थानों पर हमले हो रहे हैं और उन्हें तबाह किया जा रहा है। एचएएल मुख्यालय के पास मिंस्क स्कवायर में आयोजित एक कार्यक्रम में राहुल गांधी ने कहा कि आपके पास विमान बनाने का अनुभव है लेकिन सरकार का यह कहना पूरी तरह से हास्यास्पद है कि एचएएल के पास जरूरी अनुभव नहीं है।

राहुल की बातचीत से पहले एचएएल ने शुक्रवार को अपने कर्मचारियों को उनके आचरण एवं अनुशासन पर दायित्वों की याद दिलाते हुए एक आंतरिक संदेश भी जारी किया था। वहीं, एचएएल कर्मचारी संघ ने कहा है कि कर्मचारियों से बातचीत की इजाजत मांगी गई थी लेकिन उन्होंने हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया क्योंकि उनका संगठन गैर-राजनीतिक है। अब कर्मचारी संघ के इस बयान के बाद कांग्रेस के इस कार्यक्रम की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगे हैं जिसमें कहा गया है कि इसमें एचएएल के कर्मचारियों ने हिस्सा लिया।

राहुल गांधी जरा इन आंकड़ों पर भी गौर करें

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जहां सरकार पर एचएएल को बर्बाद करने का आरोप लगा रहे हैं वहीं कंपनी के एक अधिकारी के मुताबिक मोदी सरकार ने संस्थान के प्रमुख स्थान को मान्यता देते हुए 2014 से 2018 की अवधि के दौरान करीब 27,340 करोड़ रुपये के आपूर्ति ऑर्डर देकर एचएएल को पूर्ण सहयोग दिया है। अधिकारी बताते हैं कि उत्पादन सुविधाएं बढ़ाने सहित अवसंरचना में सुधार एवं उन्नयन के लिए इस अवधि के दौरान 7,800 करोड़ रुपये तक का वित्तपोषण किया गया। रक्षा एवं एयरोस्पेस उद्योग क्षेत्र में एचएएल को गौरव से देखा जाता है और उसने राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में अत्यधिक योगदान दिया है।

पिछले दिनों रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कांग्रेस के इस आरोप को खारिज कर दिया था कि मोदी सरकार ने हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को कमतर आंका है। उन्होंने आंकड़ों के हवाले से बताया था कि संप्रग के दस साल के शासन के दौरान एचएएल को औसतन सलाना 10000 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले थे लेकिन वर्तमान शासन में उसे अब तक 22000 करोड़ रुपये के सालाना आर्डर मिले।


देश की रक्षा/सुरक्षा पर राजनीति करने से बचें पार्टियां

कांग्रेस जोकि राफेल मामले की सीएजी तथा जेपीसी से जाँच कराने की माँग कर रही है और खातों के फोरेंसिक ऑडिट की माँग कर रही है जरा वह यह भी बता दे कि उसके कार्यकाल में सेनाओं के आधुनिकीकरण और सशक्तीकरण के लिए क्यों कुछ नहीं किया जा सका था ? तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी को तब संसद में इस बात पर सफाई देनी पड़ गयी थी कि सेना के लिए गोला बारूद की कमी क्यों हो रही है। क्या कांग्रेस भूल गयी कि उसके कार्यकाल में सेना कर्मियों के लिए बनायी जा रही आदर्श हाउसिंग सोसायटी में घोटाला उसके बड़े नेताओं ने ही कर दिया था, क्या कांग्रेस भूल गयी कि उसके कार्यकाल में एचएएल पर ध्यान नहीं दिया गया और एक समय कैग को अपनी रिपोर्ट में कहना पड़ा था कि एचएएल द्वारा बनाये जा रहे तेजस विमान में खामियां हैं और यह वायुसेना के योग्य नहीं है। यही नहीं गत वर्ष इस प्रकार की भी खबरें आईं थी कि नौसेना अब तेजस का कोई बेहतर विकल्प तलाशने में जुटी है। नौसेना का कथित रूप से यह कहना था कि ज्यादा वजन के कारण तेजस के ऑपरेशन में परेशानी आ रही है। यही नहीं अगर आप आंकड़ों पर गौर कर लें तो पता चल जायेगा कि एचएएल को पिछली सरकारों से पूरा सहयोग नहीं मिलने के कारण समय-समय पर विभिन्न परियोजनाओं की लागत में इजाफा होता रहा है।


वायुसेना की जरूरतों को समझें

वायुसेना ने सर्वप्रथम संप्रग सरकार से राफेल विमान की माँग की थी, लेकिन विभिन्न प्रक्रियाओं में उलझ कर इसकी खरीद में बहुत देरी हो चुकी है। देखा जाये तो वायु सेना को विमानों की बेहद अधिक जरूरत है। विमानों के पुराना होने के कारण बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हैं। राफेल विमान खरीद को लेकर जो राजनीतिक लड़ाई लड़ी जा रही है उससे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हमारी जगहँसाई हो रही है। भाजपा कह रही है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी को हराने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन कर रही है और पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद इस लड़ाकू विमान की खरीद के सौदे को विफल करने की साठगांठ का हिस्सा हैं वहीं कांग्रेस कह रही है कि खुद को देश का चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री खुद भ्रष्ट हैं और वायुसेना की जेब से 30 हजार करोड़ रुपए निकाल कर उद्योगपति अनिल अंबानी को दे दिये गये हैं।


दसॉल्ट ने क्या कहा ?

दसॉल्ट कंपनी के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने यह स्पष्ट कर दिया है कि रिलायंस के साथ दसॉल्ट एविएशन का संयुक्त उपक्रम राफेल लड़ाकू विमान करार के तहत करीब 10 फीसदी ऑफसेट निवेश का प्रतिनिधित्व करता है। ट्रेपियर ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि हम करीब 100 भारतीय कंपनियों के साथ बातचीत कर रहे हैं जिनमें करीब 30 ऐसी हैं जिनके साथ हमने पहले ही साझेदारी की पुष्टि कर दी है।

बहरहाल, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की फ्रांस यात्रा को लेकर विवाद खड़ा करना अनावश्यक प्रतीत होता है क्योंकि यह वार्ता भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांस के राष्ट्रपति की द्विपक्षीय मुलाकात में हुई सहमति के तहत ही हो रही है। रक्षा मंत्री द्वारा राफेल विमान के विनिर्माण प्रक्रिया का जायजा लेने में भी कुछ गलत नहीं है। सीतारमण ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को इस बात की कोई भनक नहीं थी कि दसॉल्ट एविएशन अनिल अंबानी की अगुवाई वाले रिलायंस ग्रुप के साथ गठजोड़ करेगा। अब जबकि मामला उच्चतम न्यायालय जा ही चुका है तो कांग्रेस को धैर्य रखना चाहिए कि वहां सरकार के उत्तर पर अदालत का क्या रुख रहता है। कांग्रेस अदालत पर भरोसा रखे और देश के संवैधानिक संस्थानों पर भी। वैसे कांग्रेस को याद रखना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग लाने का प्रयास भी उसने ही किया और उसके ही कार्यकाल में देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी सीबीआई को 'तोता' बनाने के आरोप भी लगे थे।

-नीरज कुमार दुबे

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