सुरक्षा बलों पर हमला करने में बिलकुल नहीं हिचक रहे पत्थरबाज

stone pelters are attacking on security forces

कुलगाम में सुरक्षा बलों के साथ मुकाबले में तीन और पत्थरबाजों की मौत गोली लगने या फिर पैलेट गन के छर्रों से हो गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है कि सुरक्षा बलों की गोलियों से पत्थरबाजों की मौतें हुई हों बल्कि आधिकारिक आंकड़ा कहता है कि पिछले 16 महीनों में 58 के करीब पत्थरबाज अपनी जानें गंवा चुके हैं।

कुलगाम में सुरक्षा बलों के साथ मुकाबले में तीन और पत्थरबाजों की मौत गोली लगने या फिर पैलेट गन के छर्रों से हो गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है कि सुरक्षा बलों की गोलियों से पत्थरबाजों की मौतें हुई हों बल्कि आधिकारिक आंकड़ा कहता है कि पिछले 16 महीनों में 58 के करीब पत्थरबाज अपनी जानें गंवा चुके हैं।

दूसरे शब्दों में कहें तो पिछले 30 सालों से पाक परस्त आतंकवाद से जूझ रही कश्मीर वादी में अब मौतों का भी वर्गीकरण हो चुका है। अधिकतर मौतें आतंकियों की हो रही हैं जो सुरक्षा बलों से जेहाद के नाम पर लड़ कर जान दे रहे हैं। दूसरी ओर आतंकी जहां नागरिकों को खुद मार रहे हैं तो वहीं नागरिकों को सुरक्षा बलों से अप्रत्यक्ष तौर पर लड़वा कर जान देने को मजबूर कर रहे हैं। और यह सब कुछ उस तथाकथित जेहाद के नाम पर हो रहा है जिसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने कश्मीर में छेड़ रखा है।

बात हो रही है उन नागरिकों की जो मुठभेड़ों के दौरान आतंकियों की जानें बचाने की खातिर अब सुरक्षा बलों से भिड़ रहे हैं। फर्क आतंकियों और इन नागरिकों की लड़ाई में इतना है कि आतंकी अगर सुरक्षा बलों पर गोलियों तथा हथगोलों से हमले बोलते हैं तो ये नागरिक पत्थरों से। हालांकि सुरक्षा बल पत्थरबाजी को गोलियों से अधिक घातक बताने लगे हैं। ऐसा इसलिए है, एक सुरक्षाधिकारी के शब्दों में: ‘गोलियां जब दागी जाती हैं तो आवाज करती हैं और हम आवाज सुन बचाव कर सकते हैं पर जब पत्थर फेंके जाते हैं तो वे कहां से आएगा कोई नहीं जानता।’

सुरक्षा बलों पर पत्थर मारने का खामियाजा भी कश्मीरी भुगत रहे हैं। पिछले 16 महीनों में पत्थर मारने वालों में से करीब 58 पत्थरबाज मारे जा चुके हैं। इनकी मौत उस समय हुई जब सुरक्षा बलों ने आतंकियों को निकल भागने में मदद करने की कोशिश करने वाले पत्थरबाजों पर गोलियां दागीं। नतीजा सामने था।

पिछले साल फरवरी महीने में सेनाध्यक्ष बिपिन रावत द्वारा ऐसे तत्वों को दी गई चेतावनी के बाद तो सुरक्षा बलों की पत्थरबाजों के विरूद्ध होने वाली कार्रवाई में बिजली सी तेजी आई है। यही कारण था कि जहां पहले सेना के जवान ऐसे पत्थरबाजों पर सीधे गोली चलाने से परहेज करते थे अब वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।

पिछले 16 महीनों में मारे जाने वाले 58 पत्थरबाजों में से 10 तो अप्रैल 2017 में मारे गए और पिछले जून में भी पांच पत्थरबाजों को उड़ा दिया गया। ऐसा भी नहीं है कि 16 महीनों में 58 पत्थरबाजों की मौतों के बाद पत्थरबाजों का मनोबल कुछ कम हुआ हो या उनमें मौत का कोई डर बैठा हो बल्कि वे तो बस उस ‘शहादत’ के लिए आगे ही बढ़ते जा रहे हैं जिसके लिए पाकिस्तान परस्त आतंकी सोशल मीडिया के जरिये उनमें नई जान फूंक रहे हैं।

कश्मीर के आतंकवाद के इतिहास में पत्थरबाजी की उम्र कुछ ज्यादा नहीं है। यह तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के शासन के दौरान आरंभ हुई थी। फिलहाल गोलियों की बरसात और पैलेट गन भी पत्थरबाजों के कदमों को रोक पाने में कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। दरअसल भारत सरकार कहती है कि पत्थरबाजी के लिए युवकों को धन मुहैया करवाया जाता है और नोटबंदी के बाद इनमें जबरदस्त कमी आने का जो दावा किया जा रहा है उसकी हकीकत से पर्दा 58 युवकों की 16 महीनों में गोलियों से होने वाली मौत जरूर हटा रही है।

-सुरेश एस डुग्गर

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