पहले भी कई बार हुए हैं अयोध्या मसले को बातचीत से सुलझाने के प्रयास

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अजय कुमार । Mar 8 2019 2:40PM

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 06 मार्च 2019 को मामला मध्यस्थता को भेजे जाने के मुद्दे पर सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुनाया। मध्यस्थता के लिए कुल 8 हफ्तों का वक्त निश्चित किया गया है।

आखिरकार इस बात का पटाक्षेप हो ही गया कि अयोध्या विवाद आम चुनाव से पहले नहीं सुलझेगा। पूर्व में चार बार बातचीत की नाकाम कोशिशों के बाद अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के तहत अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले को मध्यस्थ के जरिए बातचीत से सुलझाने का प्रयास होगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आज (08 मार्च 2019) ये फैसला लिया। कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए तीन लोगों का पैनल गठित किया है। इस पैनल में श्री श्री रविशंकर, जस्टिस इब्राहिम खलीफुल्ला और श्री राम पंचू मध्यस्थता करेंगे। कोर्ट ने मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाई है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 06 मार्च 2019 को मामला मध्यस्थता को भेजे जाने के मुद्दे पर सभी पक्षों की बहस सुनकर अपना फैसला सुनाया। मध्यस्थता के लिए कुल 8 हफ्तों का वक्त निश्चित किया गया है। मध्यस्थता पीठ फैजाबाद में बैठेगी। राज्य सरकार, मध्यस्थता पीठ को सुविधाएं उपलब्ध करवाएगी। कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता शुरू होने में एक सप्ताह से अधिक का समय न लगे। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता पैनल को 4 हफ्तों में मामले की रिपोर्ट देनी होगी।

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गौरतलब है कि कोर्ट ने इससे पहले मध्यस्थता के प्रस्ताव पर पक्षकारों की राय पूछी थी, जिसमें मुस्लिम पक्ष और निर्मोही अखाड़ा की ओर से सहमति जताई गई थी। रामलला, महंत सुरेश दास और अखिल भारत हिंदू महासभा ने प्रस्ताव से असहमति जताते हुए कोर्ट से ही जल्द फैसला सुनाने का आग्रह किया था। उनका तर्क था कि इस प्रकार के प्रयास पूर्व में भी हो चुके हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दायर की गई हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर−बराबर बांटने का आदेश दिया था।

सूत्र बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता के फैसले का यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि अयोध्या विवाद की तारीख बढ़ गई है। दरअसल, जब तक सभी दस्तावेजों का अनुवाद नहीं हो जाएगा, तब तक सुनवाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है और अनुवाद में करीब दो माह का समय लग सकता है।

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बहरहाल, बात पूर्व में अयोध्या मामले को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने की कोशिशों की कि जाए तो इसके लिए पहली कोशिश 90 के दशक में वीपी सिंह सरकार के समय में हुई थी। विवाद हल होता दिख भी रहा था। समझौते का ऑर्डिनेंस भी आ गया, लेकिन सियासत ने ऐसी करवट ली कि वीपी को अयोध्या विवाद को सुलझाने वाला ऑर्डिनेंस वापस लेना पड़ गया। दूसरी पहल चंद्रशेखर सरकार के दौरान हुई। मामला समाधान के करीब था लेकिन दुर्भाग्य था कि उनकी सरकार चली गई। नरसिम्हा राव की सरकार ने भी समझौते का प्रयास किया था, लेकिन फिर भी अंतिम हल तक नहीं पहुंचा जा सका। अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में कांची पीठ के शंकराचार्य के जरिए भी अयोध्या विवाद सुलझाने की कोशिश की थी। तब दोनों पक्षों से मिलकर जयेंद्र सरस्वती ने भी भरोसा दिलाया था, मसले का हल महीने भर में निकाल लिया जाएगा, लेकिन ऐसा तब भी कुछ नहीं हुआ।

व्यक्तिगत स्तर पर भी अयोध्या मामले की कई बार समझौते की पहल की जा चुकी हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर ने पिछले दिनों हिंदू−मुस्लिम दोनों पक्षकारों से मिलकर मध्यस्थता की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं। इस बार भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गये मध्यस्थों में श्री श्री रविशंकर का नाम शामिल है।

जानिए मध्यस्थों को

अयोध्या में बाबरी मस्जिद−राममंदिर विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने तीन मध्यस्थों के नाम तय किए हैं। इन नामों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला, आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर और सीनियर अधिवक्ता श्रीराम पंचू शामिल हैं। तीन सदस्यों के इस पैनल के सामने दोनों पक्षकार अपनी बात रखेंगे और ये मध्यस्थता फैजाबाद में होगी।

फकीर मुहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला

सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता के लिए बनी कमेटी के चेयरमैन पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला होंगे। जबकि श्री श्री रविशंकर और श्री राम पंचू इसके सदस्य होंगे। इस कमेटी के सामने हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षकार अपनी बातें रखेंगे। इसके बाद ये कमेटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सामने रखेगी। पूर्व जस्टिस फकीर मुहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला मूल रूप से तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में कराईकुडी के रहने वाले हैं। खलीफुल्ला का जन्म 23 जुलाई 1951 को हुआ था। उन्होंने 20 अगस्त 1975 को अपने वकालत कॅरियर की शुरुआत की। वह श्रम कानून से संबंधित मामलों में सक्रिय वकील रहे थे। खलीफुल्ला को पहले मद्रास हाईकोर्ट में स्थाई न्यायाधीश नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्हें जम्मू−कश्मीर हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उन्हें 2000 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के तौर नियुक्त किया गया और 2011 में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।

श्रीराम पंचू 

अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए बनी कमेटी के तीसरे सदस्य हैं श्रीराम पंचू। श्रीराम पंचू वरिष्ठ वकील हैं। श्रीराम पंचू मध्यस्थता के जरिए केस सुलझाने में माहिर रहे हैं। उन्होंने मध्यस्थता कर केस सुलझाने के लिए एक कानूनी संस्था भी गठित की है। इस संस्था का काम ही आपसी सुलह के जरिए कोर्ट से बाहर मुद्दों को सुलझाना है। श्रीराम पंचू एसोसिएशन ऑफ इंडियन मीडिएटर्स के अध्यक्ष हैं। वह बोर्ड ऑफ इंटरनेशनल मीडिएशन इंस्टीट्यूट के बोर्ड में भी शामिल रहे हैं। भारत की न्याय व्यवस्था में मध्यस्थता को शामिल करने में उनका अहम योगदान रहा है। श्रीराम पंचू देश के कई जटिल और वीवीआईपी मामलों में मध्यस्थता कर चुके हैं। इनमें कमर्शियल, कॉरपोरेट, कॉन्ट्रैक्ट के मामले जुड़े हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 किलोमीटर भूभाग का मामला सुलझाने के लिए उन्हें मध्यस्थ नियुक्त किया गया था। इसके अलावा बंबई में पारसी समुदाय के मामले का निपटारा करने में भी वह मध्यस्थ रह चुके हैं।

श्री श्री रविशंकर

आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख श्री श्री रविशंकर देश के प्रमुख आध्यात्मिक गुरुओं में से एक हैं। इससे पहले भी उन्होंने अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश की थी, इसके लिए वह अयोध्या भी गए थे और पक्षकारों से मुलाकात की थी। श्री श्री रविशंकर का नाम जैसे ही मध्यस्थ के रूप में सामने आया तो कई पक्षों और बड़े साधु−संतों ने उनका विरोध किया।

आपको बता दें कि इससे पहले भी कई बार मध्यस्थता की कोशिशें हो चुकी हैं, लेकिन हर बार ये कोशिश असफल रही है। हालांकि, ये पहली बार हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस मसले को मध्यस्थता के लिए भेजा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या की विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों− सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर−बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था।

-अजय कुमार

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