कश्मीरी अलगाववादियों से बात करने में कोई बुराई नहीं

सरकार की सत्ता को चुनौती देने वालों से सामान्यतया सरकारें बात नहीं करतीं। वे उन्हें बात से नहीं, लात से ठीक करने का रास्ता अपनाती हैं। लेकिन मैं सोचता हूं कि लातवालों से भी बात करने में कोई बुराई नहीं है।

कश्मीर पर हमारी संसद में जो बहस हुई, वह इस बात का सबूत है कि हमारा लोकतंत्र जीवंत है, मुखर है और अपने हर नागरिक के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द समझता है। कितनी अच्छी बात है कि संसद के सभी दलों ने कश्मीर की जनता के घावों पर मरहम लगाने की मांग की है। जिस सरकार को सांप्रदायिक और तंगदिल कहकर बदनाम किया जाता रहा है, उसी के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि सरकार कश्मीर के विभिन्न दलों और संगठनों से बात करेगी।

जाहिर है कि वह आतंकवादियों से या उनके समर्थकों से बात नहीं करेगी। यह स्वाभाविक है। सरकार की सत्ता को चुनौती देने वालों से सामान्यतया सरकारें बात नहीं करतीं। वे उन्हें बात से नहीं, लात से ठीक करने का रास्ता अपनाती हैं। याने जैसे को तैसा। इसे गलत भी नहीं कह सकते लेकिन मैं सोचता हूं कि लातवालों से भी बात करने में कोई बुराई नहीं है। कभी-कभी बात तो लात से भी ज्यादा जबर्दस्त काम करती है। मेरा तो यह भी अनुभव रहा है।

बातचीत से भारत के कई दुश्मनों के दिल नरम पड़े हैं, हमारे तर्कों और शिष्ट व्यवहार ने उन पर असर डाला है। यों भी दो देशों के बीच जब खुला युद्ध होता है, तब भी उनके बीच बात चलती रहती है। किसी जंगखोर दुश्मन राष्ट्र के मुकाबले क्या कोई आतंकवादी ज्यादा खतरनाक होता है? आतंकवादी तो अपने ही नागरिक होते हैं लेकिन गुमराह होते हैं। अपने गुमराह नौजवानों को सही राह पर लाना राज और समाज दोनों का कर्तव्य है। यह दुर्भाग्य है कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी सरकारों के पास ऐसे लोग नहीं रहे, जो आतंकवादियों से और भारत के घोषित दुश्मनों से सीधी बात कर सकें। नेतागण तो कश्मीरियों से बात करेंगे ही, कुछ सत्पुरुष, कुछ समाजसेवी, कुछ संत और कुछ मुल्ला-मौलवी भी आगे आएं तो क्या कहने?

मुझे कश्मीरी बच्चों से भी कुछ शिकायत है। वे पत्थर, बम और बंदूक का रास्ता क्यों अपनाए हुए हैं? क्या ये चीज़ें उनके पास भारत सरकार से भी ज्यादा हैं? यदि वे हजार साल तक भी इसी हिंसक रास्ते पर चलते रहे तो भी वे कहीं नहीं पहुंचेंगे। जो मुल्क उन्हें उकसाता है, वह खुद आतंक का सबसे बड़ा शिकार है। वे तशददुद (हिंसा) का रास्ता छोड़ें। वे भारत के हर प्रांत में जाएं और भारत की जनता से खुलकर बात करें। यदि उनकी बात में दम हुआ तो लोग उनका साथ देंगे। अगर लोग साथ देंगे तो सरकारें अपनी वाली नहीं चला सकती। भारत आखिर लोकतंत्र जो है।

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