इस बार पाकिस्तान सरकार और फौज, दोनों के खिलाफ गुस्सा नजर आ रहा है

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हत्या की इस नाकाम कोशिश का नतीजा यह हुआ है कि पाकिस्तान के शहरों और गांव-गांव में सरकार के विरुद्ध लोग सड़कों पर उतर आए हैं और यह असंभव नहीं कि पाकिस्तान में लगभग गृह युद्ध की स्थिति बन जाए और मौत की कई खबरें और आने लगें।

पाकिस्तान की राजनीति अब एक तूफानी दौर में प्रवेश कर रही है। इमरान खान पर हुए जानलेवा हमले ने शाहबाज शरीफ की सरकार के खिलाफ उसी तरह का गुस्सा पैदा कर दिया है, जैसा कि 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या के समय हुआ था। मुझे लगता है कि इस वक़्त का गुस्सा उस गुस्से से भी अधिक भयंकर है, क्योंकि उस समय पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ की फौजी सरकार थी लेकिन इस वक्त सरकार मुस्लिम लीग (नवाज़) के नेता शाहबाज शरीफ की है।

इमरान ने शाहबाज शरीफ, उनके गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह और आईएसआई के उच्चाधिकारी फैजल नसीर पर इस षड़यंत्र का इल्जाम लगाया है। शाहबाज के गृहमंत्री और उनके कई पार्टी नेताओं ने इमरान को बलूचिस्तान की मिर्ची जेल में डालने का इरादा जताया था और इमरान तथा उनकी पार्टी के नेताओं ने यह आशंका भी व्यक्त की थी कि इस रैली के दौरान इमरान की हत्या भी हो सकती है।

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हत्या की इस नाकाम कोशिश का नतीजा यह हुआ है कि पाकिस्तान के शहरों और गांव-गांव में सरकार के विरुद्ध लोग सड़कों पर उतर आए हैं और यह असंभव नहीं कि पाकिस्तान में लगभग गृह युद्ध की स्थिति बन जाए और मौत की कई खबरें और आने लगें। शाहबाज-सरकार की सिर्फ भर्त्सना ही नहीं हो रही है, लोग खुले-आम पाकिस्तान की फौज को भी कोस रहे हैं। यह पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हो रहा है। यों भी इमरान के सवाल पर पाकिस्तान की फौज भी दो-फाड़ हो गई है। ऊँचे अफसर जनरल कमर बाजवा की हाँ में हाँ मिला रहे हैं और शेष अफसर व जवान इमरान का पक्ष ले रहे हैं।

यदि फौज इमरान और शाहबाज के बीच वैसा ही समझौता नहीं करवा सकी, जैसा कि 1993 में राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के बीच सेनापति जनरल वहीद कक्कड़ ने करवाया था और तुरंत चुनाव नहीं हुए तो हो सकता है कि पाकिस्तान की राजनीति से फौज का वर्चस्व सदा के लिए खत्म हो जाए। यदि ऐसा हो गया तो भारत और पाकिस्तान के संबंधों को मधुर होने में जरा भी देर नहीं लगेगी।

मुझे तो आश्चर्य है कि भारत सरकार अब तक गूंगी क्यों बनी हुई है? उसने इमरान पर हुए हमले की तत्काल भर्त्सना क्यों नहीं की? अमेरिका, चीन, तुर्की, सउदी अरब तथा अन्य दर्जनों देशों के शीर्ष नेताओं ने कल शाम को ही बयान जारी कर दिए थे। जाहिर है कि पाकिस्तान की फौज और विरोधी नेता अब इमरान को प्रधानमंत्री बनने से रोक नहीं सकते। अब चुनाव जब भी होंगे, मुझे विश्वास है कि इमरान अपूर्व और प्रचंड बहुमत से जीतेंगे।

पाकिस्तान में पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनावों में इमरान और उनकी सहयोगी पार्टियों ने सत्तारुढ़ दलों का लगभग सफाया कर दिया था और खुद इमरान सात सीटों पर लड़े, उनमें से छह सीटों पर जीत गए। इस समय पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत पंजाब में और पठानों के पख्तूनख्वाह में इमरानभक्तों की सरकारें बनी हुई हैं। सिंध में पीपीपी की भुट्टो-सरकार है लेकिन कुछ पता नहीं कि इस जानलेवा हमले के बाद बेनजीर के बेटे बिलावल भुट्टो और पति आसिफ जरदारी का रवैया शाहबाज शरीफ के साथ टिके रहने का बना रहेगा या बदलेगा? फौज ने दोनों को सता रखा था। जब वे दोनों कट्टर विरोधी मिल सकते थे तो बिलावल और इमरान क्यों नहीं मिल सकते? अगर वे मिल जाएँ तो पाकिस्तान में शायद भारत-जैसे लोकतंत्र की शुरुआत हो जाए। फौज पीछे हटे और जन-प्रतिनिधि सच्चे शासक बनें।

- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

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