घुसपैठियों के समर्थकों आप कभी कश्मीरी पंडितों के पक्ष में क्यों नहीं खड़े हुए ?
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के दूसरे ड्राफ्ट को लेकर विपक्ष की ओर से जो आरोप लगाये जा रहे हैं वह पहली नजर में राजनीतिक ही प्रतीत होते हैं। आरोप लगाने वालों को यह समझना चाहिए कि ऐसे में किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका नहीं रह जाती है।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के दूसरे ड्राफ्ट को लेकर विपक्ष की ओर से जो आरोप लगाये जा रहे हैं वह पहली नजर में राजनीतिक ही प्रतीत होते हैं। आरोप लगाने वालों को यह समझना चाहिए कि ऐसे में किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका नहीं रह जाती है जब NRC की पूरी मॉनिटरिंग सुप्रीम कोर्ट कर रहा है और लगातार NRC में नाम शामिल करने के कामकाज की समीक्षा कर रहा है। यही नहीं गृह मंत्रालय ने भी साफ कर दिया है कि यह अंतिम सूची नहीं बल्कि मसौदा भर है। 'जिन लोगों का नाम इस सूची में नहीं आ पाया है उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का अवसर मिलेगा और यदि उस समय भी वह कोई दस्तावेज नहीं प्रस्तुत कर पाते हैं तो न्यायिक ट्रिब्यूनल के पास जा सकते हैं।' गृह मंत्रालय ने साफ किया है कि NRC को अपडेट करने का काम 'धर्मनिरपेक्ष' तरीके से किया गया है।
विपक्ष क्यों है आग बबूला ?
विपक्ष जोकि सरकार पर समाज में विभाजन के प्रयास करने के आरोप लगा रहा है वह दरअसल असम में भारी संख्या में अवैध घुसपैठ की कड़वी सच्चाई को अनदेखा करने का प्रयास कर रहा है। दरअसल सिर्फ मुस्लिमों की बात कर विपक्ष खुद तुष्टिकरण की राजनीति कर रहा है और यह दर्शा रहा है कि केंद्र सरकार अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। आखिर इस सच्चाई को कौन अनदेखा कर सकता है कि पूर्वोत्तर के राज्यों सहित पश्चिम बंगाल और यहाँ तक कि दिल्ली-NCR में भी बांग्लादेशियों की संख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ी है। विपक्ष यह तो कह रहा है कि सरकार के इस फैसले से 40 लाख लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गये हैं लेकिन यह विपक्ष कभी उन कश्मीरी पंडितों के साथ नहीं खड़ा नजर आया जो अपने ही गृह राज्य से बाहर रहने को मजबूर कर दिये गये।
NRC से असम के अधिकतर इलाकों में खुशी का माहौल
विपक्ष को इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि पूर्वोत्तर के राज्य असम में बड़े दिनों बाद शांति आई है। दशकों से उग्रवाद से प्रभावित रहे राज्य असम में आज NRC को लेकर लोगों में खुशी का माहौल है। यही नहीं राज्य के बराक घाटी क्षेत्र में 4 लाख लोगों का नाम सूची में नहीं आ पाया लेकिन फिर भी वहां शांति है। कई ऐसे परिवार सामने आये हैं जिनमें एकाध परिजनों का नाम NRC में नहीं आ पाया है। संभवतः यह मानवीय त्रुटि हो लेकिन जब सरकार कह रही है कि त्रुटियों को सुधारा जायेगा तो विश्वास करना ही चाहिए। इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी NRC की मांग बलवती होने लगी है क्योंकि वे भी अवैध प्रवासियों की समस्या का सामना कर रहे हैं।
घुसपैठिये स्थानीय लोगों के हक छीन रहे हैं
जो लोग अवैध घुसपैठ करके राज्य में आ गये हैं और पिछली सरकारों की नाकामियों के चलते अपना राशन कार्ड इत्यादि बनवाने में सफल रहे उन्हें देश से बाहर किया ही जाना चाहिए। यह लोग ना सिर्फ जनसंख्या संतुलन बिगाड़ रहे हैं बल्कि स्थानीय लोगों के रोजगार भी छीन रहे हैं। यही नहीं वोट बैंक की राजनीति के चलते घुसपैठिये असामाजिक गतिविधियों में भी संलिप्त रहते हैं। विपक्ष को इनके पक्ष में खड़ा होने से पहले यह जरूर सोचना चाहिए कि वह किसका समर्थन कर रहे हैं ? क्या सिर्फ वोट बैंक की राजनीति की ही उन्हें चिंता है ? जिस तरह वह घुसपैठियों के पक्ष में खड़े हो रहे हैं क्या उसी तरह हजारों कश्मीरी पंडितों के पक्ष में कभी खड़े हुए जोकि वर्षों से निर्वासित जीवन जी रहे हैं ?
कांग्रेस जरा अपने पुराने बयानों पर गौर कर ले
विपक्ष, खासकर कांग्रेस के आज जो बोल हैं उसे बोलने से पहले पार्टी को पहले अपने पूर्व के बयानों पर नजर डाल लेनी चाहिए। कांग्रेस को याद होना चाहिए कि जिस NRC का वह असम में विरोध कर रही है दरअसल यह व्यवस्था उस असम समझौते में थी जो 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था। यही नहीं 26 मई, 2009 को तत्कालीन यूपीए सरकार में गृहमंत्री रहे पी. चिदम्बरम तो NRC जैसी व्यवस्था पूरे देश में करना चाहते थे लेकिन पार्टी के विरोध के चलते उन्हें अपने कदम पीछे लेने पड़े थे। उस समय देश में कई आतंकी घटनाओं से चिंतित चिदम्बरम ने गृह मंत्रालय में पदभार संभालने के तुरंत बाद कहा था कि 2011 तक सभी नागरिकों को बहु-उद्देश्यीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (MNIC) जारी किये जाएंगे। चिदम्बरम ने तब NRC की तर्ज पर राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) की कल्पना की थी। यही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपने एक फेसबुक पोस्ट में कहा है कि NRC की शुरुआत मनमोहन सिंह सरकार ने की थी लेकिन इसे तैयार करने में सही प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
जनरल बिपिन रावत भी असम के बारे में चेतावनी दे चुके हैं
असम में अवैध घुसपैठ ऐसा नहीं कि सिर्फ भाजपा का ही मुद्दा था। याद होना चाहिए कि पिछले दिनों सेना प्रमुख बिपिन रावत ने असम में बढ़ रही बांग्लादेशी घुसपैठ को लेकर वहां के राजनीतिक दल ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को लेकर एक बड़ा बयान दिया था। यही नहीं, जनरल रावत पहले सैनिक अधिकारी नहीं हैं जिन्होंने असम में बढ़ती बांग्लादेशी घुसपैठियों पर चिंता जताई हो। उल्लेखनीय है कि 8 नवंबर, 1998 को असम के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टीनेंट जनरल एस.के. सिन्हा ने तत्कालीन राष्ट्रपति को भेजी अपनी रिपोर्ट में भी इसकी चेतावनी दी थी।
आखिर ममता बनर्जी को गुस्सा क्यों आया?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिन तेवरों के साथ NRC में शामिल नहीं हो पाये लोगों का समर्थन किया है उससे साफ है कि उनके राज्य पश्चिम बंगाल में भी तृणमूल कांग्रेस पर अवैध घुसपैठ को शह देने के जो आरोप लग रहे हैं, उनमें कुछ ना कुछ तो सत्यता है ही। असम से बंगालियों को बाहर निकालने की साजिश का आरोप ममता तब लगा रही हैं जब वह यह जानती हैं कि सारी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही है। ममता जिस तरह बयान दे रही हैं वह अवमानना का मामला भी है। इससे पहले भी ममता ने आरोप लगाया था कि असम में NRC को अपडेट किए जाने के साथ वहां से बंगालियों को बाहर निकालने के लिए केंद्र सरकार साजिश रच रही है। तब असम पुलिस ने इस टिप्पणी को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की थी।
NRC मामला आखिर है क्या ?
NRC राज्य के मूल नागरिकों की पहचान करने वाला दस्तावेज है जिसका मकसद बांग्लादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ को रोकना है। असम में अवैध प्रवास पर रोक लगाने के लिए मूल निवासियों की पहचान करने के वास्ते उच्चतम न्यायालय की निगरानी में 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को अद्यतन किया जा रहा है। पहला मसौदा 31 दिसंबर की रात को प्रकाशित हुआ था और दूसरा मसौदा 29 जुलाई, 2018 को जारी हुआ। गृह मंत्रालय ने 30 जुलाई, 2018 को घोषणा की कि असम में अद्यतन किए जा रहे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की अंतिम सूची 31 दिसंबर तक प्रकाशित की जाएगी। दूसरे मसौदे पर विवाद इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 40.7 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हैं। यह भी ध्यान रखने योग्य बात है कि असम और मेघालय को छोड़कर पूरे देश के लिये जनसंख्या रजिस्टर को 2015-16 में अपडेट किया गया था। इसके लिये आंकड़े 2011 की जनगणना के साथ ही जुटाये गए थे।
असम में नागरिकता और बांग्लादेशी मुस्लिमों का मुद्दा 1979 से ही राजनीतिक तौर पर उठने लगा था। 2005 में 1951 के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप को अपडेट करने का फैसला किया गया और 2015 में असम में कांग्रेस की तब की सरकार ने इस कार्य को आगे बढ़ाया था। बाद में यह मामला उच्चतम न्यायालय में चला गया और 20 फरवरी 2018 को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि NRC का काम नहीं रूकेगा।
कांग्रेस सरकार भी बता चुकी है घुसपैठियों की बड़ी संख्या के बारे में
पिछले साल नवंबर में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में बताया था कि असम में लगभग दो करोड़ अवैध बांग्लादेशी हैं। यही नहीं आज की सरकार पर आरोप लगा रही कांग्रेस यह भूल रही है कि यूपीए सरकार ने 2004 में राज्य में 1.2 करोड़ अवैध बांग्लादेशी होने का अनुमान जताया था। NRC के तहत 24 मार्च, 1971 के पहले राज्य में बसे लोगों को मूल निवासी माना गया है। खुद को मूल निवासी साबित करने के लए लोगों को उस तिथि से पहले की किसी वोटर लिस्ट में नाम होने के प्रमाण या अपने पूर्वजों से संबंध के दस्तावेज पेश करने होंगे।
चुनाव में भाजपा ने किया था घुसपैठ रोकथाम का वादा
भाजपा ने तो असम विधानसभा चुनावों के दौरान राज्य में अवैध आव्रजन को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाते हुए अपने दृष्टिपत्र में यह सुनिश्चित करने का वादा किया था कि भारत-बांग्लादेश सीमा सील की जाएगी। असम विधानसभा चुनाव के लिए दृष्टिपत्र जारी करते हुए भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री तरूण गोगोई पर घुसपैठ को बढ़ावा देने तथा राज्य की जनसांख्यिकी नष्ट करने का आरोप भी लगाया था। तब केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने गोगोई सरकार पर आरोप लगाया था कि ‘‘कांग्रेस ने घुसपैठ को बढ़ावा दे कर राज्य की जनसांख्यिकी को बदलने तथा नष्ट करने की कोशिश की। कांग्रेस कई दशकों से ऐसा कर रही है और उसने कोई कार्रवाई नहीं की।’’ भाजपा ने अपने दृष्टिपत्र में यह भी वादा किया था कि घुसपैठियों को रोजगार देने वाले उद्योगों, कारोबारियों, छोटे एवं मध्यम उद्यमों तथा अन्य एजेंसियों के साथ कठोरता से निपटने के लिए भी कानून बनाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट पर तो विश्वास कर लीजिये
चलिए मान लेते हैं विपक्ष को सरकार पर विश्वास नहीं लेकिन कम से कम सुप्रीम कोर्ट पर तो विश्वास करना चाहिए। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के एक बयान को लेकर असम सरकार को फटकार लगाई थी। सोनोवाल ने बयान दिया था कि NRC का मसौदा इस साल के आखिर तक प्रकाशित कर दिया जाएगा। अदालत ने कहा था कि जब उसके द्वारा बनाई गई एक समिति इस मसौदे की प्रकाशन प्रक्रिया की निगरानी कर रही है तो कोई और इस तरह के बयान नहीं दे सकता। शीर्ष अदालत का यह भी कहना था कि अगर ऐसा करना ही है तो फिर मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाली ही इसकी निगरानी कर लें। विपक्ष को यह सोचना चाहिए कि जब मुख्यमंत्री NRC के मामले में बयान भी नहीं दे सकते थे तो इसे अपडेट करने की प्रक्रिया में छेड़छाड़ की तो गुंजाइश ही नहीं बचती।
उच्चतम न्यायालय ने कहा भी है कि असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में जिन लोगों के नाम नहीं हैं उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए क्योंकि अभी यह सिर्फ मसौदा ही है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से कहा है कि असम के एनआरसी के संबंध में दावों और आपत्तियों को देखने के लिए वह मानक संचालन प्रक्रिया बनाए। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को 16 अगस्त से पहले मानक संचालन प्रक्रिया मंजूरी के लिए पेश करने का निर्देश देते हुये कहा है कि सूची से बाहर रखे गये लोगों को अपने दावे पेश करने के लिए पूरा मौका देना चाहिए।
-नीरज कुमार दुबे
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