कश्मीर में पैलेट गन का प्रयोग नहीं करें तो क्या करें

सुरक्षा बलों का कहना है कि वे अंतिम हथियार के तौर पर ही पैलेट गन का इस्तेमाल करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेंक रही है। पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं।

कश्मीरियों के लिए घातक और गैर-घातक हथियार एक जैसे ही साबित हो रहे हैं। हालांकि कश्मीर में पुलिस फायरिंग में 42 मौतों के बाद कश्मीर में प्रदर्शनकारियों को थामने की खातिर गैर-घातक हथियारों के जोर पर बल दिया जा रहा था पर ये हथियार भी बराबर के नुक्सान पहुंचा रहे हैं। परंपरागत बंदूकों के साथ ही कश्मीर में सुरक्षा बलों ने अब कई किस्म के गैर-घातक हथियारों का इस्तेमाल आरंभ तो किया है पर कश्मीरी उनके जख्मों की भी ताव नहीं सहन कर पा रहे हैं।

ताजा उदाहरण जख्मी होने वाले 1500 लोगों में उन 100 के करीब लोगों का है जिन्हें इन्हीं नान लीथल हथियारों ने ऐसा जख्मी किया की उनमें से कईयों की हालत गंभीर बनी हुई है तो कइयों की आंखों की रौशनी चले जाने का डर सता रहा है। हालांकि आंखों की रोशनी बचाने की खातिर नई दिल्ली से विशेषज्ञ भी आए हुए हैं पर वे भी इन हथियारों की घातकता से हैरान हो गए हैं।

पिछले एक हफ्ते के दौरान कश्मीर के विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा बलों ने गैर-घातक हथियारों का ही इस्तेमाल किया। इस दौरान इन गैर-घातक हथियारों से जख्मी हुए करीब 300 लोगों में से 3 दम तोड़ चुके हैं। इस कारण इन गैर-घातक हथियारों की घातकता शक के दायरे में है।

घायलों का इलाज करने वाले डॉक्टरों के बकौल, इस दौरान जितने भी जख्मी इलाज के लिए अस्पतालों में लाए गए हैं उनके नाजुक अंगों पर इन गैर-घातक हथियारों से वार किए गए थे जिस कारण उनकी दशा नाजुक बनी हुई है। पैलेट गन के इस्तेमाल के भयावह परिणाम को देखकर नई दिल्ली से आई तीन सदस्यीय नेत्र विशेषज्ञों की टीम दहल उठी। उनके मुताबिक यह तो जंग जैसी स्थिति है। गौरतलब है कि कश्मीर में गत सप्ताह से जारी हिंसा से निपटने के लिए पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पैलेट गन का इस्तेमाल किया है। इससे निकलने वाले छर्रे हालांकि शरीर पर हल्का जख्म ही देते हैं, लेकिन आंख में लगने पर यह अत्यंत घातक हो जाते हैं। कश्मीर में 300 से ज्यादा लोगों की आंखों में जख्म हुए हैं। कइयों को हमेशा के लिए दोनों आंखों की रौशनी गंवानी पड़ी है।

स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार के आग्रह पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तीन सदस्यीय नेत्र विशेषज्ञों की टीम को कश्मीर भेजा। टीम का नेतृत्व प्रो. सुदर्शन के. कुमार कर रहे हैं। टीम ने 100 से ज्यादा ऐसे मरीजों की जांच की है, जिनकी आंखों में पैलेट गन से घाव हुए हैं। इनमें से कइयों के रेटिना क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। पांच लोगों की आंख की रोशनी हमेशा के लिए जा चुकी है। नेत्र विशेषज्ञों ने बताया कि कई लोगों के रेटिना और लैंस क्षतिग्रस्त हैं। कइयों की आंख में मोतियाबिंद भी विकसित हो गया है। स्थिति दयनीय है।

पैलेट के कारण कई लोगों की आंख में 70 से 80 प्रतिशत का नुक्सान हुआ है, कुछ लोग हालांकि देख पाएंगे, लेकिन बहुत से जटिल आपरेशनों से गुजरने के बाद ही। विशेषज्ञों ने कहा कि कुछ रोगियों की आंखों की रोशनी 20 प्रतिशत तक बहाल होगी तो कुछ की 40 प्रतिशत। कुछेक रोगियों की दोनों आंखें ठीक हो जाएंगी। लेकिन कइयों की एक आंख हमेशा के लिए अंधी हो जाएगी। प्रो. सुदर्शन के साथ डॉ. रोहन चावला और डॉ. गणेश पिल्ले आए हैं।

उन्होंने कहा कि हमने यहां जो हालात देखे हैं, उसके बाद यही कहेंगे कि सरकार को पैलेट गन का इस्तेमाल फौरन बंद कर देना चाहिए। हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं हो सकता। हमारे आगमन से पहले यहां एसएमएचएस के डॉक्टरों ने कई नेत्र रोगियों का इलाज किया है। हमने उन मामलों की समीक्षा की है। स्थानीय डॉक्टरों ने बेहतर चिकित्सा सुविधा और शल्य चिकित्सा इन लोगों को दी है। उन्होंने पैलेट गन से जख्मी आंखों के साथ आए रोगियों को संक्रमण से बचाते हुए इलाज दिया है जो सराहनीय है। उन्होंने कहा कि यहां नेत्र रोगियों के लिए उपलब्ध चिकित्सा सुविधाएं एम्स जैसी ही हैं।

नान लीथल हथियारों का इस्तेमाल सुरक्षा बलों की ओर से वर्ष 2008 में उस समय आरंभ किया गया था जब अमरनाथ जमीन मामले पर जम्मू कश्मीर पूरे दो महीनों तक जलता रहा था। तब राज्यपाल का शासन था। हालांकि तब अलगाववादी नेताओं ने इस पर चिंता प्रकट की थी।

लेकिन वर्ष 2010 के हिंसक प्रदर्शनों में इन नान लीथल हथियारों ने जबरदस्त तबाही मचाई तो पीडीपी के नेताओं ने भी काफी हो हल्ला किया था। तब मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इसके खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे थीं पर इस बार नान लीथल हथियारों ने और ज्यादा घातकता साबित की तो महबूबा राज भी कश्मीरियों के लिए घातक ही साबित हुआ है।

क्या है नान लीथल हथियार अर्थात पैलेट गन

इस बारे में सुरक्षा बलों के अधिकारियों का कहना था कि ये नान लीथल हथियार हैं यानी गैर-जानलेवा हथियार जिससे जान नहीं जाती है। सुरक्षा बल के लोग बताते हैं कि जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई दूसरा उपाय न हो तो विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। आप लोगों पर डंडा चलाएंगे तो क्या ऐसी हिंसक उग्र भीड़ भागेगी?

इसके अलावा नान लीथल हथियार के तौर पर आंसू गैस के गोले हैं। हिंसक प्रदर्शनकारियों में शामिल लोगों ने इसका जैसे तोड़ निकाल लिया है और कई बार देखा गया है कि वह पहले से तैयार रहते हैं। आंसू गैस का गोला फायर होने पर ये लोग उस पर गीले बोरे डाल देते हैं जिससे उसका असर नहीं के बराबर हो जाता है।

इसके बाद और हथियार हैं जिसे मिर्ची बम कहते हैं। इसे आलियोरेजन भी कहा जाता है। इसे लोगों पर फेंकने पर आंखों और त्वचा में जलन होने लगती है। पर ये भी उतना असरदार नहीं होता क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद चंद लोगों तक ही सीमित रहता है और सैंकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल-सा हो जाता है। एक बार फायर होने से सैंकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं।

ले देकर पुलिस और सीआरपीएफ के पास पैलेट गन ही बचती है। इसके एक बार फायर होने से सैंकड़ों छर्रे निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। हालांकि स्टैंडर्ड नियमों के मुताबिक इन नान लीथल हथियार में रबर और प्लास्टिक के छर्रे ही इस्तेमाल किए जाते हैं पर जख्मी होने वाले युवकों के अभिभावकों तथा उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों के मुताबिक इनमें लोहे के छर्रे इस्तेमाल किए जा रहे हैं जो ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं। ये जहां-जहां लगते हैं उससे शरीर के हिस्से में चोट लग जाती है। अगर आंख में लग जाए तो वह काफी घातक होता है। इसकी रेंज 50 से 60 मीटर होती है। छर्रे जब शरीर के अंदर जाते हैं तो काफी दर्द तो होता है। पूरी तरह ठीक होने में कई दिन लग जाते हैं।

हालांकि सुरक्षा बलों की कोशिश होती है कि इसे सामने से फायर न करें लेकिन, ज्यादातर इनकी भिड़ंत आमने-सामने होती है। सुरक्षा बलों का ये भी कहना है वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं लेकिन ये कई बार कमर के ऊपर भी लग जाता है। वजह है जैसे बंदूक से निशाने साधे जाते हैं और गोली वहीं लगती है जहां फायर की जाती है लेकिन पैलेट गन में ऐसा कुछ भी नहीं है। सुरक्षा बल के अधिकारियों का कहना है कि इसके खराब रिजल्ट्स मालूम हैं, पर इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। पैलेट बंदूकें ही हैं जिन्हें विरोध के दौरान आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है।

सुरक्षा बलों का कहना है कि वे अंतिम हथियार के तौर पर ही इसे इस्तेमाल करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेंक रही है। पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं। कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तो भीड़ ने जीप सहित पुलिसकर्मी को नदी में फेंक दिया, इससे पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे में अब ये न करें तो क्या करें?

आप लोगों पर हर वक्त बंदूक से फायर नहीं कर सकते। ऐसे में लोगों को डराने के लिए बस यही हथियार बचता है। कुछ लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बंदूक की गोली से तो आदमी को एक बार दर्द होता है, लेकिन इससे तो जिंदगी भर का दर्द रह जाता है। अब सवाल उठता है कि सुरक्षा बल उग्र भीड़ से निपटने के लिए क्या करें?

ऐसा भी नहीं कि इस हथियार का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल तो 2010 से हो रहा है। भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हो रहा है। हो सकता है अब पहली बार इतनी आवाजें उठ रही हैं तो इसके दूसरे विकल्प के बारे में भी सोचा जाए। जिससे बेकाबू लोगों पर काबू भी पाया जा सके और सुरक्षा बलों को भी कोई नुकसान न हो।

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