सिर्फ लालबत्ती हटाने से नहीं खत्म होगा ''वीआईपी कल्चर''
अपने देश में किसी वीआईपी की सुरक्षा के लिए आमतौर पर 17 जवानों को लगाया जाता है...जो पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। सिर्फ लालबत्ती हटाकर नेताओं को खास से आम नहीं बनाया जा सकता।
1 मई से देश में लालबत्ती के इस्तेमाल पर रोक लगाने के मोदी सरकार के फैसले का हर तरफ स्वागत हो रहा है। प्रधानमंत्री की मानें तो उन्होंने इस फैसले से देश में आम और खास का फर्क मिटा दिया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सिर्फ लालबत्ती हटाने से देश में वीआईपी कल्चर खत्म हो जाएगा?
चलिए एक मिनट के लिए हम मान लेते हैं कि जनता की नजरों में ऊंचा दिखने के लिए हमारे नेता इसका त्याग कर देंगे...लेकिन क्या सड़क पर उनका काफिला भी निकलना बंद हो जाएगा? क्या देश के टोल नाकों पर नेताओं का समर्थकों के साथ हंगामे पर भी ब्रेक लगेगा? क्या लालबत्ती हटने के बाद हमारे नेता आम आदमी की तरह बिना सुरक्षा के सड़कों पर निकलेंगे?
सवाल कई हैं...सिर्फ लालबत्ती से तौबा कर लेने से आम और खास में फर्क नहीं मिटेगा। दुनिया के ज्यादातर देशों में वीआईपी कल्चर नहीं के बराबर है। उदाहरण के तौर पर स्वीडन और नार्वे को लीजिए...वहां के प्रधानमंत्री आम नागरिक की तरह ट्रेनों में सफर करते हैं। उनके साथ कोई काफिला नहीं होता, और तो और नार्वे के राजा अपनी गाड़ी खुद चलाते हैं।
क्या हमारे नेता खुद गाड़ी चलाकर संसद जाएंगे? क्या हमारे मंत्री सरकारी वाहन त्याग कर रोजाना मेट्रो में सफर करेंगे? ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को आप सभी ने लंदन में मेट्रो में सवारी करते देखा होगा...कैमरन ट्यूब की सवारी इसलिए नहीं करते थे क्योंकि उन्हें सुर्खियों में आना था....ना ही उन्हें फोटो खिंचवाने का शौक था...कैमरन ट्रेन में इसलिए सफर करते थे ताकि ट्रैफिक में उनका समय बर्बाद ना हो और ना ही उनके कारण लंदन की जनता को किसी तरह की तकलीफ हो।
जिस देश में सरकारी विमान में पसंदीदा सीट नहीं मिलने पर एक सांसद कर्मचारी की सरेआम चप्पल से पिटाई कर दे वहां वीआईपी कल्चर इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा ये कहीं से हजम नहीं होता। जब एयर इंडिया ने इस बर्ताव के लिए सांसद रवींद्र गायकवाड़ को ब्लैकलिस्ट किया तो शिवसेना ने पूरा संसद सिर पर उठा लिया।
हमारे देश में सत्ता के नशे में नेता क्या-क्या कर जाते हैं ये हर किसी को मालूम है...कहीं कोई टोल प्लाजा कर्मचारी की पिटाई कर देता है ...तो कहीं कोई नेता किसी जिले में डीएम को सरेआम गाली देकर जलील करता है। हमारे देश के नेता सत्ता की हनक में ये भूल जाते हैं कि उन्हें सार्वजनिक जीवन में किस तरह बर्ताव करना चाहिए।
जनता के पैसे पर मौज करने वाले नेताओं की लालबत्ती लगी गाड़ी में तो घूमना बंद हो जाएगा...लेकिन जब तक उनकी बाकी सुविधाएं खत्म नहीं कर दी जातीं तब तक उन्हें आम बताना बेमानी होगी। क्या मोदी सरकार संसद में बिल लाकर सांसदों की मुफ्त हवाई सेवा, ट्रेन सेवा और दूसरी सुविधाएं खत्म कर सकती है....रेलवे की वीआईपी लिस्ट में शामिल सांसदों का यात्रा के दौरान ट्रेन में किस तरह आवभगत होता है ये हर किसी को मालूम है।
जिस देश की राजधानी दिल्ली में वन रूम फ्लैट खरीदने में लोगों का पूरा जीवन गुजर जाता है...वहां हमारे नेता आलीशन बंगले में ठाठ फरमाते हैं। मुफ्त घर, मुफ्त टेलीफोन, मुफ्त चिकित्सा...जनाब आप नाम लेते जाइए इनकी सुविधाओं की लिस्ट खत्म नहीं होने वाली। अपने देश में किसी वीआईपी की सुरक्षा के लिए आमतौर पर 17 जवानों को लगाया जाता है...जो पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। सिर्फ लालबत्ती हटाकर नेताओं को खास से आम नहीं बनाया जा सकता....परिपक्व लोकतंत्र में राजनेताओं का बर्ताव आम इंसान की तरह होना चाहिए...क्योंकि उसे सत्ता की बागडोर किसी और ने नहीं जनता ने सौंपी है। हमारे देश से वीआईपी कल्चर तभी खत्म होगा जब हमारे नेता आम इंसान की तरह सोचना शुरु करेंगे।
मनोज झा
(लेखक एक टीवी समाचार चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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