क्या इस तरह हम बना पाएंगे देश में स्मार्ट सिटी?

साइबर सिटी के नाम से जाने जाने वाले इस शहर में लोगों को रात सड़कों पर खड़ी अपनी गाड़ियों और बसों में सो कर गुजारनी पड़ी। यही नहीं जाम खुलवाने के लिए प्रशासन को धारा 144 तक लगानी पड़ गयी।

देश में जब एक ओर 100 स्मार्ट सिटी बनाने की चर्चा और तैयारी हो रही है ऐसे में देश की राजधानी दिल्ली से सटे गुड़गाँव (अब गुरुग्राम) में एक ही बारिश में इस कदर ट्रैफिक जाम हो गया कि 20 घंटे तक लोग जाम में फँसे रहे। साइबर सिटी के नाम से जाने जाने वाले इस शहर में लोगों को रात सड़कों पर खड़ी अपनी गाड़ियों और बसों में सो कर गुजारनी पड़ी। यही नहीं जाम खुलवाने के लिए प्रशासन को धारा 144 तक लगानी पड़ गयी। स्कूल और दफ्तरों में अवकाश घोषित कर दिया गया। यहाँ सवाल उठता है कि क्या यही है स्मार्ट सिटी बनाने की तैयारी? दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे बड़े शहरों में एक ही बरसात में सड़कें बह जाती हैं, नालों से निकासी का सही प्रबंध नहीं होने के कारण वह उफान पर रहते हैं और सारा पानी सड़कों पर बह कर आ जाता है।

इस महाजाम के लिए जिम्मेदार कौन है यह तय नहीं हो पायेगा क्योंकि राज्य सरकार स्थानीय निगमों या फिर दिल्ली सरकार पर दोषारोपण कर रही है तो निगम राज्य सरकार पर आरोप लगा रहा है। खबरों के मुताबिक गुड़गाँव के विधायक ने कथित रूप से यह बयान दिया है कि लोगों को जल भराव का भ्रम हो जाता है और इस चक्कर में ट्रैफिक जाम हो जाता है। अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी सोच वाले विधायक ड्रेनेज का क्या इंतजाम करवा पाएंगे। इस महाजाम की गूँज दुनिया भर में हो रही है क्योंकि कई विदेशी आईटी कंपनियों के कार्यालय यहाँ पर हैं और विदेशी ऑनलाइन समाचार-पत्र यहाँ लगे ट्रैफिक जाम की तसवीरों से भरे पड़े हैं। हम निवेश आकर्षित करने के प्रयास तो करते हैं लेकिन शहरों में बुनियादी सुविधाओं की तरफ पूरा ध्यान नहीं देते।

मानसून की शुरुआत में ही उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत के कई शहर जिस तरह बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं वह चिंताजनक है। यह दर्शाता है कि केंद्र और राज्यों में सरकारें भले बदल जाएं लेकिन काम करने का सरकारी ढंग वही पुराना है और जनता बाढ़ से होने वाले नुकसान को झेलने और ट्रैफिक जामों में फँसकर परेशान होने के लिए अभिशप्त है। दूर की बात क्या करें खुद दिल्ली में ही बारिश के दौरान कई जगह ट्रैफिक सिग्नल खराब हो जाते हैं जिससे तगड़ा जाम लग जाता है और इसे हटवाने के लिए ट्रैफिक पुलिस का दूर-दूर तक भी पता नहीं होता। ऐसे दृश्य भी आम हैं जबकि जाम लगा हुआ हो और उसे खुलवाने की बजाय ट्रैफिक पुलिसकर्मी का चालान काटने पर ज्यादा ध्यान रहता हो।

नगर निगमों को भारी बजट सिर्फ इसी बात के लिए आवंटित किया जाता है ताकि वह मानसून के दौरान जल निकासी के लिए पुख्ता प्रबंध कर सकें। मानसून से पहले निगमों और सरकारों की ओर से तैयारी पूरी हो जाने के वादे और दावे भी कर दिये जाते हैं लेकिन एक ही दिन की बरसात में सभी दावों की पोल खुल जाती है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि बरसात के मौसम में सड़कों का निर्माण हो रहा होता है ताकि एक ही बारिश में सड़क बह जाये और दोबारा सड़क बनाने का ठेका जल्दी से फिर मिल जाये। जाहिर है यह सब मिलीभगत का खेल होता है जिसका अंजाम जनता को ही भुगतना पड़ता है।

इस तरह की स्थिति सिर्फ दिल्ली की ही नहीं है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई के हालात भी ज्यादा जुदा नहीं हैं। मानसून के दौरान वहाँ भी बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है और पूरे शहर की व्यवस्था चरमरा जाती है। दूसरी ओर देश के अन्य भागों की बात करें तो बारिश का कहर असम, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, अरुणाचल प्रदेश आदि में ज्यादा देखने को मिल रहा है। इस वर्ष मानसून के दौरान नेपाल के जल संग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश के चलते आई बाढ़ से बिहार के 10 जिलों में 17 लाख से अधिक लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है और अभी तक 22 लोगों की जानें जा चुकी हैं। हैरत की बात यह है कि केंद्र और राज्यों में सरकारें आती जाती रहीं लेकिन हर साल बारिश के बाद नेपाल से पानी छोड़े जाने के कारण श्रावस्ती, बलरामपुर समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति अत्यंत विकट हो जाने की समस्या का हल अभी तक नहीं हो पाया है। इस बार भी बाढ़ के कारण लोग गंभीर स्थिति का सामना कर रहे हैं। गांव दर गांव जलमग्न हो गये हैं। लोग परेशान हैं और बेचारे जानवर बेहाल हैं। असम में बाढ़ से अब तक दो दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 16 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश में भी बाढ़ की स्थिति गंभीर बनी हुई है।

पिछली राजग सरकार के कार्यकाल में नदियों को जोड़ने की एक योजना लायी गयी थी जिसे संप्रग सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था, वर्तमान सरकार को चाहिए कि इस योजना को आगे बढ़ाए। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी इस परियोजना का समर्थन करते हुए कहा था कि यदि यह कार्य संभव हो जाता है तो देश से सूखे और बाढ़ की समस्या का खात्मा हो सकता है। लेकिन जब हमारे यहाँ एक राज्य दूसरे को पीने का पानी देने से ही कई बार इंकार कर देता है ऐसे में अपनी नदियां जोड़ने के लिए राज्यों को राजी करना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल कार्य तो है ही। बहरहाल, मौसम विभाग ने आगामी दिनों में मानसून के और सक्रिय रहने की जो उम्मीद जताई है उसको देखते हुए प्रशासन से ज्यादा उम्मीद करने की बजाय भगवान से ही प्रार्थना करते रहने का विकल्प ज्यादा अच्छा प्रतीत होता है।

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