अफगानिस्तान में महिलाओं की दिन पर दिन दयनीय होती स्थिति को दुनिया बस देख रही है

Afghanistan women
Prabhasakshi

अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से वैसे तो तालिबान महिलाओं के खिलाफ कई आदेश जारी कर चुका है लेकिन अब उसने जो हालिया आदेश जारी किया है उसके चलते अफगानिस्तान में महिला टीवी एंकरों को कार्यक्रम के प्रसारण के दौरान अपना चेहरा ढकने पर मजबूर होना पड़ा है।

अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति दिन पर दिन दयनीय होती जा रही है। तालिबान सरकार एक के बाद एक ऐसे हुक्म जारी कर रही है जिससे महिलाओं के सपनों, उनकी उम्मीदों, उनके अधिकारों पर तो चोट पहुँच ही रही है साथ ही अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में महिलाओं की भूमिका भी पूरी तरह खत्म होती जा रही है। दुनिया में अफगानिस्तान के अलावा शायद ही इस समय कोई ऐसा देश होगा जो अपनी ही आधी आबादी की खुशियों को कुचल देने पर आमादा होगा।

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15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद से वैसे तो तालिबान महिलाओं के खिलाफ कई आदेश जारी कर चुका है लेकिन अब उसने जो हालिया आदेश जारी किया है उसके चलते अफगानिस्तान में महिला टीवी एंकरों को कार्यक्रम के प्रसारण के दौरान अपना चेहरा ढकने पर मजबूर होना पड़ा है। अफगानिस्तान के सबसे बड़े मीडिया संस्थान ‘टोलो न्यूज’ चैनल के एक ट्वीट के मुताबिक तालिबान के आचरण और नैतिकता मंत्रालय और सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय के बयानों में यह आदेश जारी किया गया है। तालिबान सरकार के बयान में कहा गया है कि यह आदेश ‘‘अंतिम’’ है और इसमें ‘‘कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।’’

तालिबान सरकार के इस आदेश के बाद से अफगान मीडिया में हड़कंप है क्योंकि एकतरफा जारी किये गये इस आदेश में चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं रखी गयी है। इसलिए अब अफगान टीवी चैनलों के समक्ष कोई विकल्प नहीं बचा होने के चलते वहां महिला टीवी एंकरों ने अपने चेहरे ढक लिये हैं। तालिबान सरकार के इस आदेश के बाद कई महिला टीवी कार्यक्रम प्रस्तोताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें साझा कीं हैं जिनमें वे कार्यक्रम प्रस्तुत करने के दौरान अपने चेहरे को मास्क से ढके हुए दिख रही हैं। ‘टोलो न्यूज’ की एक प्रमुख प्रस्तोता यल्दा अली ने चेहरे पर मास्क पहनते हुए अपना एक वीडियो पोस्ट किया और इसका शीर्षक लिखा, ‘‘आचरण एवं नैतिकता मंत्रालय के आदेश पर एक महिला को मिटाया जा रहा है।’’

हम आपको याद दिला दें कि तालिबान जब 1996 से 2001 तक सत्ता में रहा था, तो उसने महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे। तालिबान अफगानिस्तान में पिछले साल अगस्त में फिर से सत्ता पर काबिज होने के बाद शुरुआत में महिलाओं पर प्रतिबंधों को लेकर थोड़ा नरम रुख अपनाते प्रतीत हुआ था, लेकिन हालिया सप्ताहों में उसने फिर से प्रतिबंध कड़े करने शुरू कर दिए हैं। तालिबान ने इस महीने की शुरुआत में ही महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सिर से लेकर पैर तक बुर्के में ढके रहने का आदेश दिया था। तालिबान के आदेश के मुताबिक, सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की केवल आंखें दिख सकती हैं।

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देखा जाये तो कुल मिलाकर तालिबान सरकार का प्रयास है कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका को पूरी तरह खत्म किया जाये। तालिबान का मानना है कि शिक्षित महिला अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है इसलिए उसे शिक्षित होने से रोका जाये। इसके लिए तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करते ही स्कूल, कॉलेजों में लड़कियों के जाने पर रोक लगाई और उसके बाद नौकरीपेशा महिलाओं को घर बैठने के लिए कहा गया। फिर टीवी कार्यक्रमों में महिलाओं को दिखाये जाने पर रोक लगा दी, फिर महिलाओं के ब्यूटी पार्लर बंद करवा दिये, फिर महिलाओं के अकेले कहीं आने-जाने या घूमने पर रोक लगा दी, फिर बच्चियों को बगैर हिजाब के स्कूल जाने पर मनाही कर दी, फिर लड़कियों के खेलों में भाग लेने पर रोक लगा दी, फिर लड़के और लड़कियों के एक साथ शिक्षा हासिल करने पर रोक लगाते हुए तीन दिन कॉलेज लड़कों के लिए और बाकी तीन दिन लड़कियों के लिए खोले जाने का फरमान सुना दिया। इसके बाद तालिबान सरकार ने अपनी आलोचक महिलाओं को नॉटी बताते हुए उन्हें घर पर ही रहने की सख्त हिदायत दे डाली। इसके बाद तालिबान ने महिलाओं के कॉफी शॉप में जाने और हमाम को इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी। उसके बाद तालिबान सरकार ने आदेश जारी कर दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाएं बुर्के से पूरी तरह ढकी होनी चाहिएं और अब टीवी एंकरों के चेहरे भी ढकवा दिये।

जो हालात दिख रहे हैं उसके मुताबिक अफगानिस्तान में महिलाएं इस समय सबसे कठिन दौर से गुजर रही हैं क्योंकि अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का उनको कोई अधिकार नहीं रह गया है। उन्हें क्या पहनना है, कैसे रहना है, कहां जाना है, क्या काम करना है...आदि बातें अब खुद तय करने का हक नहीं है। एक बार फिर से वही दौर लौट आया है जब तालिबान लड़ाके कभी भी महिलाओं को उठा ले जाते हैं, उनसे जबरन निकाह करते हैं या बलात्कार करके छोड़ देते हैं और आवाज उठाने को गुनाह मानते हैं। महिलाएं यदि हिम्मत करके आवाज उठाने को आगे भी आयें तो उन्हें गोलियों से भून देने की धमकी दी जाती है जिसके चलते वह चुप हो जाती हैं। तालिबान ने महिलाओं के बारे में जितने भी फरमान निकाले हैं यदि उनका पालन नहीं होता तो उनके घर वालों को भी सजा दी जाती है इसीलिए महिलाएं डर और मजबूरी के चलते तालिबानियों के अनर्गल फरमानों को मानने के लिए मजबूर हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट भी सामने आई थी जिसमें बताया गया कि तालिबानी लड़ाके कपड़ों की दुकानों में जाकर जांचते हैं कि महिलाओं को क्या बेचा जा रहा है। यही नहीं दर्जियों को भी हिदायत दी जाती है कि महिलाओं के कपड़े बड़े होने चाहिए ताकि उनके शरीर का कोई अंग बाहर नहीं दिख सके।

यही नहीं, तालिबान शासन सिर्फ महिलाओं पर ही जुल्म नहीं कर रहा बल्कि उसने अफगानी जनता के मानवाधिकारों को भी एक तरह से अपने कब्जे में लेते हुए अफगानिस्तान के मानवाधिकार आयोग को भी खत्म कर दिया। इस बारे में तालिबान सरकार के उप प्रवक्ता इन्नामुल्लाह समांगानी ने कहा कि ये विभाग आवश्यक नहीं है और बजट भी कम है इसलिए इसे खत्म कर दिया गया है। देखा जाये तो तालिबान सरकार की बात भी सही है क्योंकि जब अफगानिस्तान में किसी का मानवाधिकार ही नहीं है तो यह आयोग करता भी क्या?

बहरहाल, अफगानिस्तान में महिलाएं जो कष्ट झेल रही हैं उनसे सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही बचा सकता है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र से या किसी अन्य देश से किसी प्रकार की मदद की उम्मीद करना बेमानी होगा। अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़कर भागने के समय जब वहां बड़ा मानवीय संकट देखने को मिल रहा था तब भी आम अफगानियों को पूरी दुनिया ने सिर्फ भाग्य के भरोसे ही छोड़ दिया था।

- नीरज कुमार दुबे

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