योगी राज में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था में हो रहा सुधार
प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिनका मानना है कि योगी सरकार बिना भेदभाव के काम कर रही है। अपराधियों को सरकारी संरक्षण मिलना बंद हो गया है। धर्म की आड़ में अधर्म के खेल पर भी योगी सरकार सख्त रूख अपनाये हुए है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तेजी से फैसले ले रही है। उम्मीद है कि जल्द इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। बात आज तक की कि जाये तो फिलहाल कानून व्यवस्था को छोड़कर अन्य फैसलों का अभी जमीन स्तर पर कोई खास असर नहीं दिखाई पड़ रहा है और यह उम्मीद भी नहीं की जा सकती है कि इतनी जल्दी किसी सरकार के फैसले जमीन पर उतर सकते हैं। लेकिन जनता में योगी सरकार को लेकर विश्वास है। यह बड़ी वजह है। गलत काम करने वालों के हौसले पस्त पड़ रहे हैं। सरकारी धन की लूट पर शिकंजा कसा जा रहा है तो समाज में व्याप्त भेदभाव और भय के माहौल को कम करने के लिये भी योगी सरकार प्रयत्नशील है। योगी सरकार सीधे जनता से जुड़े मसलों- स्वास्थ्य सेवाओं, बिजली−पानी, शिक्षा सुधार, सड़क आदि पर विशेष ध्यान दे रही है। महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर भी योगी सरकार सजग है।
प्रदेश में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिनका मानना है कि योगी सरकार बिना भेदभाव के काम कर रही है। अपराधियों को सरकारी संरक्षण मिलना बंद हो गया है। धर्म की आड़ में अधर्म के खेल पर भी योगी सरकार सख्त रूख अपनाये हुए है। सरकारी योजनाओं का बंदरबांट करके भ्रष्टाचार का खेल खत्म भले नहीं हुआ हो अंकुश तो लगा ही है। परंतु सबसे बड़ी समस्या है नौकरशाही को हैंडिल करना। अभी तक यूपी की नौकरशाही नई सरकार के साथ तालमेल नहीं बैठा पाई है। वह पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के तौर−तरीकों पर ही चल रही है। सीएम योगी के बार−बार कहने के बावजूद तमाम नौकरशाहों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा शासन को उपलब्ध नहीं कराया है। वैसे, संपत्ति की घोषणा के मामले में योगी के नौकरशाह ही नहीं मंत्री भी टाल−मटोल का रास्ता अपना रहे है। हाल ही में कई जिलों के जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों (आईएएस/पीसीएस) सहित महत्वपूर्ण पदों पर बैठे कई बड़े अधिकारियों के तबादलों के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि नये अधिकारी योगी के हिसाब से काम करेंगे, उनके ऊपर पूर्ववर्ती सरकार का रंग नहीं चढ़ा होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि जो बदलाव किये गये हैं उससे यह संकेत निकल जरूर निकल कर आ रहे हैं कि योगी राज में ईमानदार अफसरों की पूछ बढ़ेगी। डीजीपी के पद पर सुलखान सिंह की नियुक्ति इसकी बानगी है।
खैर, सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर दौड़ाई जाये तो इस बात का आभास साफ हो जाता है कि नौकरशाही की लगाम अभी तक भले ही सीएम योगी पूरी तरह से कस नहीं पाये हों, लेकिन उनके मंत्रिमंडल के सदस्य प्रदेश की तस्वीर बदलने के लिये लगातार प्रयासरत हैं। हो सकता है मंत्रियों के कामकाज के तरीकों में कहीं पर अनुभव की कमी आड़े आ रही हो, परंतु किसी मंत्री की नियत में खोट नजर नहीं आती है। ऐसा लगता है कि सीएम योगी को अभी और सख्त कदम उठाने पड़ेंगे। जमीनी स्तर पर बदलाव दिखे इसके लिये योगी को थानों से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों का चाल−चरित्र और काम का तरीका बदलना होगा। पूरा सिस्टम सुधारना होगा। अधिकारियों/कर्मचारियों का मात्र तबादला करके हालात बदलने वाले नहीं हैं। इन लोगों का जमीर जगाना होगा और इन पर इतना सख्त पहरा बैठाना होगा जिससे कोई गलत काम कर ही नहीं सके। शायद यह बात सीएम योगी समझते भी हैं, इसीलिये वह तबादलों पर बहुत सोच समझ कर फैसला ले रहे हैं, यह तय मानकर चलना चाहिए जो अधिकारी एक जगह ठीक से काम नहीं कर रहा है, वह दूसरी जगह कैसे ठीक से काम कर सकता है।
बहरहाल, ऐसा लगता है कि योगी सरकार को यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई है कि सुधार की प्रकिृया ऊपर से ही शुरू करनी होगी। अगर ऊपर बैठा अधिकारी सही तरीके से काम करेगा तो नीचे के स्टाफ को भी अपने तौर−तरीके बदलने पड़ेंगे। योगी अपनी सरकार की छवि को लेकर काफी सजग हैं तो पिछली सरकार की खामियां भी उजागर करने में गुरेज नहीं कर रहे हैं। अभी तक अखिलेश सरकार की करीब डेढ़ दर्जन योजनाओं पर वह जांच बैठा चुके हैं। अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट लखनऊ का गोमती रिवर फ्रंट घोटाला, आगरा एक्सप्रेस वे के लिये भूमि अधिग्रहण के नाम पर किया गया सपाइयों का कारनामा। समाजवादी चिंतक स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र के नाम पर बने पार्क में घोटाला, पुराने लखनऊ में इमामबाड़े के आसपास सौंदर्यीकरण पर घोटाला, सपा एमएलसी बुक्कल नवाब को नजूल की जमीन का मालिक बताकर उन्हें करोड़ों का मुआवजा देना, पिछले पांच वर्षों में तमाम जमीनों का भू−उपयोग परिवर्तन किये जाने की जांच, नियमों की धज्जियां उड़ाकर यश भारती अवार्ड बांटना। वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति पर अवैध कब्जे और अनाप−शनाप तरीके से बेचे जाने की जांच, लखनऊ में साईकिल ट्रैक बनाने के नाम पर और कई जिलों में खनन घोटाला जिसकी चर्चा चुनाव के समय भी हुई थी। इसके अलावा 29 विकास प्राधिकरण की सीएजी से जांच के दायरे में ग्रेटर नोएडा, लखनऊ, बनारस आदि के प्राधिकरण भी हैं। बुंदेलखंड की 721 करोड़ की बांध परियोजना की जांच के लिये भी कमेटी गाठित कर दी गई है। भू−माफियाओं से सरकारी जमीन कब्जा मुक्त कराने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। देखना यह है कि इन जांचों का निचोड़ क्या निकलता है क्योंकि पूर्व में भी ऐसी तमाम जांचें ठंड बस्ते में चले जाने की परम्परा रही है।
एक तरफ योगी अखिलेश सरकार के कारनामों की जांच करा रही है तो दूसरी तरफ वह अपने एजेंडे पर भी आगे बढ़ रही है। चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अखिलेश सरकार पर हमलावार होते हुए अवैध बूचड़खानों, महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़, अवैध खनन, प्रदेश में व्याप्त गुंडागर्दी को अहम मुद्दा बनाया था। इस तरह के तमाम मोर्चों पर योगी सरकार काफी मशक्कत के साथ काम कर रही है। फिलहाल, जो माहौल बना हुआ है उससे तो यह ही लगता है कि योगी अपने कड़क मिजाज के अनुसार ही कड़क फैसले ले रहे हैं और उनके सामने सब नतमस्तक नजर आ रहे हैं।
- अजय कुमार
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