यूपीकोका के जरिये संगठित अपराध की कमर तोड़ना चाहते हैं योगी

Yogi wants to break the back of organized crime through UPCOCA
अजय कुमार । Dec 29 2017 11:06AM

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय बीजेपी नेताओं ने अखिलेश राज में ''जंगलराज'' को बड़ा मुद्दा बनाया था। ठीक ऐसे ही 2007 में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुलायम की सरकार को बिगड़ी कानून व्यवस्था पर घेरा था, दोनों ही बार समाजवादियों को मुंह की खानी पड़ी थी।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के समय बीजेपी नेताओं ने अखिलेश राज में 'जंगलराज' को बड़ा मुद्दा बनाया था। ठीक ऐसे ही 2007 में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मुलायम की सरकार को बिगड़ी कानून व्यवस्था पर घेरा था, दोनों ही बार समाजवादियों को मुंह की खानी पड़ी थी। 2007 में मुलायम और 2017 में अखिलेश के लिये प्रदेश की बद से बदत्तर कानून व्यवस्था सिरदर्द बनी थी, लेकिन बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून व्यवस्था के नाम पर कोई चूक नहीं करना चाहते हैं, इसीलिये वह हर वह कदम उठा रहे हैं जिससे जनता में विश्वास जगे और अपराधियों के हौसले पस्त हों।

योगी राज में कई ईमानी बदमाश मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं तो कई या तो चुप बैठ गये हैं अथवा प्रदेश छोड़कर भाग गये हैं, जिसके चलते संगठित अपराध कम तो जरूर हुआ है, लेकिन खत्म नहीं हो पाया है। इसकी बड़ी वजह है कानून की खामियों का अपराधियों द्वारा फायदा उठाया जाना। अपराधी अपराध करते हैं और कुछ दिनों बाद जमानत पर छूट जाते हैं, जिस वजह से अपराधी बेखौफ हो जाते हैं। योगी सरकार इसीलिये यूपीकोका कानून बनाने जा रही थी, लेकिन विधानसभा में यह पास होने के बाद विधान परिषद में बहुमत नहीं होने के कारण इस कानून में अड़ंगे लगा दिये गये। अब यह कानून प्रवर समिति को सौंप दिया गया है। एक महीने में प्रवर समिति को अपनी रिपोर्ट देनी है, लेकिन एक महीने में रिपोर्ट आ जायेगी और यह विधान परिषद से पास हो जायेगा, इस बात की संभावना काफी कम है क्योंकि बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस, सपा और बसपा एक सुर में इस कानून की मुखालफत कर रहे हैं। ऐसे में योगी सरकार के पास यह ही रास्ता बचेगा कि आर्डिनेंस लाकर राज्यपाल के माध्यम से इसे लागू करा दिया जाये। 

बात विपक्ष की कि जाये तो उसे लगता है कि यूपीकोका के द्वारा बीजेपी अपने विरोधियों को प्रताड़ित करके जेल में डाल देगी। मायावती को लगता है कि इसका उपयोगी दलितों और अकलियत के खिलाफ होगा। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यूपीकोका को लेकर राजनैतिक दलों में इतनी बेचैनी क्यों है। इसकी वजह है यूपीकोका के कई कड़े प्रावधान। यूपीकोका लागू हो जाता है तो इसके तहत लोग सरकारी सुरक्षा के साथ निजी सुरक्षा लेकर नहीं चल पाएंगे। अगर किसी शख्स ने ऐसा किया तो सरकारी सुरक्षा तो वापस होगी ही, शस्त्र लाइसेंस भी निरस्त कर दिया जाएगा। इस कानून के बनने के बाद किसी भी संगठित अपराध से जुड़े व्यक्ति को सरकारी सुरक्षा नहीं मुहैया हो पायेगी। यूपीकोका के तहत कोई भी व्यक्ति जिसके पास शस्त्र लाइसेंस हो, वह तीन या इससे अधिक शस्त्र लाइसेंसधारियों के साथ किसी सार्वजनिक स्थान जहां कोई धरना हो रहा हो या ठेके की बोली लग रही हो, नहीं जा सकेगा। अगर वह ऐसा करता है तो ऐसी दशा में भी शस्त्र लाइसेंस निरस्त कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं संगठित अपराधियों या उनके सिंडीकेट के पक्ष में किसी सूचना को बिना कानूनी अधिकार के देना या कहीं प्रकाशित करना भी संगठित अपराध की श्रेणी में आ जाएगा। संगठित अपराधियों से जुड़े दस्तावेज या सामग्री को आगे भेजना, उसका प्रकाशन और वितरण भी अपराध की श्रेणी में यूपीकोका के तहत रखा गया है। 

यूपीकोका लागू हो जाता है तो सभी सरकारी विभागों में जो भी ठेकेदार होंगे उनकी सूची, हैसियत और इतिहास विभाग की वेबसाइट पर रखना अनिवार्य होगा। दागी ठेकेदारों की सूची विभाग के अलावा यूपी पुलिस की वेबसाइट पर भी होगी। थानों और संबंधित विभागों के कार्यालयों में भी इस सूची को टांगा जाएगा। वहीं झूठे प्रमाणपत्र बनाने वालों को भी भी सजा मिलेगी। ठेकों−पट्टों के लिए संगठित अपराधियों के झूठे चरित्र प्रमाणपत्र बनाने और फर्जी सत्यापन करने वालों को संगठित अपराध सिंडिकेट का मददगार मानते हुए ऐसे मददगारों को भी सजा दी जाएगी। यूपीकोका के तहत अगर कोई आरोपित दूसरी बाद दोषी साबित होता है तो उसकी सजा और सख्त हो जाएगी। जैसे अगर उसे पहले अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा मिली है तो दूसरे अपराध पर उसे मृत्युदंड या उम्रकैद के साथ 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा मिलेगी। यदि उसे पांच या दस वर्ष की सजा मिली है तो अगले अपराध पर उसे उम्रकैद और 25 लाख जुर्माने लगेगा। अर्थदंड देने में विफल होने पर प्रति लाख एक माह की जेल और काटनी होगी।

संभावित नये कानून के तहत सरकारी गवाह बनने वाले को विशेष सुरक्ष मुहैया कराई जायेगी। न्यायालय उन व्यक्तियों को माफी दे सकेगा जो इस मामले में अपराध और उससे जुड़े हर व्यक्ति की भूमिका के बारे में सही तथ्यों को बता देंगे। भले ही आरोपित मुख्य साजिशकर्ता हो या उस अपराध का हिस्सा रहा हो। आरोपितों को 14 दिन का समय दिया जायेगा, जिन आरोपितों के खिलाफ विशेष न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया जाएगा, उन्हें कोर्ट उससे जुड़े अभिलेखों की प्रतियां देगा। प्रतिलिपि मिलने के 14 दिन के अंदर आरोपित को गवाहों की सूची, अन्य साक्ष्यों के बारे में बताना होगा कि वह उनके जरिए क्या साबित करना चाहता है। इसके बाद यह जानकारी अभियोजन पक्ष से साझा की जाएगी। अभियोजन पक्ष फिर अपना पक्ष दाखिल करेगा, जिसकी कॉपी आरोपित को दी जाएगी। आरोपित को फिर इसका जवाब दाखिल करने के लिए 14 दिन का समय मिलेगा। 

इसी तरह से यूपीकोका के तहत विशेष अदालतें बिना आरोपित की पेशी हुए पुलिस रिपोर्ट के आधार पर चार्जशीट का संज्ञान ले लेंगी और उस पर सुनवाई शुरू हो जाएगी। इसके लिए कोर्ट के पास सत्र न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी। अगर सुनवाई के दौरान विशेष कोर्ट को लगता है कि यह मामला उसके द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह संबंधित कोर्ट को हस्तांतरित कर सकेगा। विशेष न्यायालय के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की जा सकेगी। यूपीकोका के लिये तीन प्राधिकरण बनेंगे। सरकार की तरफ से बनने वाले राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण में प्रमुख सचिव (गृह) अध्यक्ष, एडीजी कानून ‌एवं व्यवस्था, एडीजी क्राइम और न्याय विभाग के विशेष सचिव सदस्य होंगे। जिला स्तर पर जिला संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण होगा। इसमें जिलाधिकारी अध्यक्ष, पुलिस अधीक्षक, एएसपी और वरिष्ठ लोक अभियोजक सदस्य होंगे। एक अपीलीय प्राधिकरण भी बनेगा। इसमें हाई कोर्ट के सेवानिवृत जज अध्यक्ष, सरकार का प्रमुख सचिव स्तर का अधिकारी और डीजी स्तर का अधिकारी सदस्य होगा। योगी ने जिस तरह से यूपीकोका को लेकर हठ पाल रखा है, उससे तो यही लगता है यह साकार हो ही जायेगा, बस समय का फेर है।

- अजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़