अपना ही पैसा आप बैंकों से नहीं निकाल सकते....यही हैं अच्छे दिन
नकदी संकट से जनता एक बार फिर बेहाल हो गई है। एटीएम में ''कैश नहीं है असुविधा के लिए खेद है'',,,,,? इस तरह के नोटिस देश के कई राज्यों की एटीएम मशीनों पर पिछले पांच−सात दिनों से लटके देखे जा रहे हैं।
नकदी संकट से जनता एक बार फिर बेहाल हो गई है। एटीएम में 'कैश नहीं है असुविधा के लिए खेद है',,,,,? इस तरह के नोटिस देश के कई राज्यों की एटीएम मशीनों पर पिछले पांच−सात दिनों से लटके देखे जा रहे हैं। नकदी की कमी ने पूरे देश में हाहाकार मचा दिया है। दरअसल यह वह वक्त होता है जब छात्रों को स्कूल−कालेजों में दाखिला लेना होता है। शादी समारोह आयोजित होते हैं, खेती−किसानी का समय होता है। लेकिन यह सभी काम बिना नकद के नहीं हो सकते। नकदी की कमी के चलते यह सभी काम थम से गए हैं। इस विकराल समस्या को दूसरी अघोषित नोटबंदी कहें या सरकार की गलत नीति। सबसे ज्यादा दिक्कतें उन लोगों को उठानी पड़ रही हैं जिनके घरों में शादी−ब्याह के कार्यक्रम पहले से तय हैं। इसके अलावा किसानों को अपने खेतों में फसलों की रोपाई करनी है। लेकिन पैसे न होने के चलते वह अपने खेतों में फसलें नहीं लगा पा रहे हैं। परेशान होकर किसान अपना दुखड़ा जब बैंकों में सुनाते हैं तो वह से भी टका सा जवाब कैश न होने के रूप में मिल रहा है। अजीब स्थिति है, लोग अपने ही पैसों को एटीएम और बैंकों से निकाल पाने में असमर्थ हैं। पिछले करीब सप्ताह भर से तकरीबन पूरे हिंदुस्तान के अधिकतर एटीएम कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं। समस्या को देखते हुए फिलहाल सरकार फौरी कार्रवाई करते हुए नोटों की छपाई की प्रक्रिया में तेजी लाई है। लेकिन उसका असर दिखने में शायद वक्त लगेगा। लेकिन सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति आने ही क्यों दी? सरकार के पास कोई दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं थी?
जनमानस को प्रत्येक तीन महीनों के अंतराल में किसी न किसी बड़ी समस्या से सामना करना पड़ रहा है। यही वजह है कि सरकार के प्रति लोगों का आक्रोश दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है। मौजूदा नोट किल्लत की परेशानी को लोग 2016 के नवंबर−दिसंबर महीने की नोटबंदी के बाद इसे दूसरी नोटबंदी का नाम दे रहे हैं। यह दूसरी अघोषित नोटबंदी कही जा रही है। बच्चों का स्कूल जाने का दूसरा सेशन होता है, उनको नए बस्ते और दाखिला लेने होते हैं। लेकिन पैसों की कमी के चलते उनके पेरेंटस को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। देखा जाए तो नोटों की कमी की स्थिति पिछले एक पखवाड़े से बनी हुई है, लेकिन पिछले दो−तीन दिनों में समस्या और विकराल हो गई है। यह समस्या तब और गहरी हो गई जब इसका हल ढूंढने के लिए वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक, बैंकों व राज्यों के साथ बैठक की। लेकिन बैठक बेनजीता रही। सभी बैंकों ने मंत्रालय के समक्ष कैश की भारी कमी होने की बात रखी। अचंभे वाली बात है कि इतना कैश आखिर गया कहां जिससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई। सरकार की मानवीय जिम्मेदारी बनती है कि जनमानस को इस स्थिति से फौरन बाहर निकाले।
एटीएम में कैश नहीं होने से लोग दैनिक परेशानियों से दो−चार हो रहे हैं। हर गली−मोहल्ले में आजकल सिर्फ नोट नहीं होने की ही चर्चाएं हैं। परेशानी के चलते लोग अपने जरूरी काम भी नहीं कर पा रहे हैं। किराये के घरों में रहने वाले लोगों के पास मकान का किराया देने के लिए नकदी नहीं है जिससे उन्हें उधार का सहारा लेना पड़ रहा है। शादी समारोह में जाने की तैयारी कर रहे लोग भी फंस गए हैं समारोह में जाने के लिए रेल टिकट आदि खरीदने में दिक्कतें होने लगी हैं। कैश की कमी के चलते लोग ठीक से खरीदारी भी नहीं कर पा रहे हैं। घरों से दूर दूसरे शहरों में पढ़ाई कर रहे अपने बच्चों को अभिभावक पैसे तो ट्रांसफर कर रहे हैं लेकिन कोचिंग वालों को पैसे का भुगतान करने में दिक्कतें आ रही हैं। एटीएम जाते हैं तो वहां बाहर कैश न होने के नोटिस चस्पे मिलते हैं। कुल मिलाकर लोग कई तरह की समस्याओं से घिर गए हैं। समस्या का निवारण कब होगा यह किसी को नहीं पता। इस बीच सरकार के दो−तीन बयान आ चुके हैं जिसमें उन्होंने समस्या को जल्द निपटाने का आश्वासन दिया है। लेकिन समस्या जस के तस बनी हुई है।
कैश किल्लत के शुरूआती दिनों यानि पिछले सप्ताह वित्त मंत्रालय ने रिजर्व बैंक के अलावा कुछ प्रमुख बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों व राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों के साथ मौजूदा नकदी संकट पर एक बैठक बुलाई थी जिसमें नकदी संकट के मुद्दे से निबटने के उपायों पर गहन विचार−विमर्श हुआ। दिल्ली में यह चर्चा करीब तीन घंटे हुई। पर, छह−सात दिन बाद भी इस बैठक का जमीन पर असर नहीं दिखाई दिया। उल्टे समस्या और गहरा गई। हालांकि आरबीआइ सूत्रों का दावा है कि नकदी का संकट नहीं है और स्थानीय गतिविधियों के कारण उतार−चढ़ाव के कारण यह स्थिति बनती है। जबकि विपक्षी सियासी पार्टियां सत्ताधारी पार्टी पर आरोप लगा रही हैं कि सारा पैसा चुनावी राज्यों में भेजा जा रहा है जिससे यह समस्या पैदा हुई है। कांग्रेस कहती है कि ज्यादातर पैसा कर्नाटक में भेज दिया गया है। इसके अलावा और भी तरह−तरह के आरोप−प्रत्यारोप का दौर जारी है। लेकिन इन सबके बीच पिस सिर्फ आम आदमी रहा है। जो अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने को भी मोहताज हो गया है। सरकार के लिए इस समस्या से निपटना किसी चुनौती से कम नहीं है। सरकार को तुरंत वैकल्पिक समाधान खोजकर बिना देर किए देश की जनता को जरूरत के मुताबिक नकदी उपलब्ध कराने का इंतजाम करना चाहिए।
-रमेश ठाकुर
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