आखातीज पर देश के विभिन्न हिस्सों में आज भी होते हैं बाल विवाह
ग्रामीण तबका आज भी बाल विवाह का पक्षधर है। इस नासमझ तबके को समझाने के लिए सभी तरह के साम, दाम, दण्ड और भेद के जरिये बाल विवाह को रोकने के सभी सम्भव प्रयास करने होंगे।
आखातीज या अक्षय तृतीया को अबूझ सावे के रूप में जाना और पहचाना जाता है। अक्षय तृतीया को हम एक बड़े पर्व के रूप में मानते हैं। इस वर्ष अक्षय तृतीया 28 अप्रैल 2017 को है। अक्षय तृतीया वैशाख में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में विवाह होते हैं जिनमें बाल विवाह शामिल हैं। बाल विवाह का अर्थ है छोटी आयु में शादी। अर्थात् 21 वर्ष से कम आयु के लड़के और 18 वर्ष से कम आयु की लड़की का विवाह होना। भारत में बाल विवाह की प्रथा का अनादिकाल से प्रचलन है। लाख कोशिशों के बाद भी हम इस कुप्रथा को समाप्त नहीं कर पाये हैं। सभ्य समाज के मुंह पर यह एक तमाचा है। यह मानव जीवन की सबसे बड़ी और दुखदाई त्रासदी है। बाल विवाह की यह सामाजिक बुराई हिन्दी और अहिन्दी दोनों राज्यों में समान रूप से प्रचलित हैं। विशेषकर राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और पं. बंगाल में इसका बोलबाला है। शिक्षित और अशिक्षित दोनों समाज इसमें शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, भारत बाल विवाह के मामले में दूसरे स्थान पर है। बाल विवाह केरल राज्य, जो सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य है, में अब भी प्रचलन में है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में नगरीय क्षेत्रों से अधिक बाल विवाह होते है। आँकड़ो के अनुसार, बिहार में सबसे अधिक 68 प्रतिशत बाल विवाह की घटनाएं होती हैं जबकि हिमाचल प्रदेश में सबसे कम 9 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। भारत में दुनिया के ४० प्रतिशत बाल विवाह होते हैं। देश में 49 प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में ही हो जाता है लिंगभेद और अशिक्षा का ये सबसे बड़ा कारण है। राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा खराब स्थिति है। यूनिसेफ के अनुसार राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाते हैं। भारत में लंबे समय से बाल विवाह पर अंकुश लगाने के प्रयास होते रहे हैं। बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किए गए।
छोटी आयु में विवाह का मुख्य कारण अशिक्षा और गरीबी है। अभिभावक गरीबी के कारण अपनी बेटी का जल्दी विवाह कर एक सामाजिक दायित्व से निवृत्त होना चाहते हैं। नासमझी और अशिक्षित होने के कारण उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि वे अपनी बेटी को एक अंधे कुंए की ओर धकेल रहे हैं जिसमें से वह ताउम्र नहीं निकल पायेगी। छोटी आयु में विवाह के कारण लड़की को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ता है। खेलने−कूदने के दिनों में वह सेक्स की शुरूआती एवं प्रारम्भिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहती है। इसके अलावा बालिका वधु को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ता है। शारीरिक रूप से अपरिपक्वता के साथ−साथ उसे शिक्षा से भी वंचित होना पड़ता है।
बाल विवाह को सख्ती से रोकने के लिए अनेक स्तरों पर प्रभावी प्रयास किये गये। हमारे देश में बाल विवाह की प्रथा कोई नई नहीं है। यह सदियों पुरानी प्रथा है जिसे जाने अनजाने हम आज भी ढोते चले आ रहे हैं। सन् 1928−29 में शारदा एक्ट बना जिसमें नाबालिग बच्चों के विवाह को निषिद्ध किया गया। भारत सरकार ने इस कानून की पालना के लिए लड़के की आयु 21 वर्ष और लड़की की आयु 18 वर्ष निर्धारित की थी। इससे कम आयु के बच्चों का विवाह कानूनी रूप से निषिद्ध एवं दंडनीय अपराध स्वीकारा गया।
बाल विवाह आज भी ज्वलन्त समस्या के रूप में हमारे सामने है। यह अनादिकाल से चली आ रही है। सामाजिक मान्यता मिलने के कारण इसे बढ़ावा मिला। इसी कारण इस कुप्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया। अशिक्षा एवं अंधविश्वासी समाज ने इस कुप्रथा को अपना लिया। बाल विवाह को बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन भी माना गया है। जब तक बच्चे बालिग या समझदार न हो जायें और अपने भले−बुरे की पहचान के योग्य नहीं हो जायें तब तक बाल विवाह किसी भी स्थिति में नहीं किये जाने चाहिये। यह भी वैज्ञानिक परिणामों से स्पष्ट है कि बाल विवाह से अच्छे स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा का अधिकार, खेलने−कूदने के अवसर हासिल नहीं होते। कच्ची उम्र में शादी होने से स्वास्थ्य एवं जननांगों पर खराब असर पड़ता है जिसे बच्चों को ताउम्र झेलना पड़ता है।
यह भी सही है कि छोटी उम्र में विवाह से लड़कियों को लड़कों की अपेक्षा अधिक हानि उठानी पड़ती है। असुरक्षित यौन सम्बन्धों से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप अनेक भीषण बीमारियों से ग्रस्त होना आम बात हो गई है। बाल विवाह के कारण बार−बार गर्भधारण और असमय गर्भपात का सामना करना पड़ता है। नवजात शिशु के भी अकाल मौत का शिकार होने का अन्देशा बना रहता है। कुपोषण एवं खून की कमी से मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
बाल विवाह के समर्थक इसके पक्ष में अनेक कुतर्कों का सहारा लेकर समाज को गुमराह करने का कुत्सित प्रयास करते हैं। अनेक अभिभावक यह मानते हैं कि जल्दी विवाह से लड़कियों को यौन हिंसा से बचाया जा सकता है। सामाजिक चेतना के अभाव और कानून की शिथिलता के कारण निश्चय ही बाल विवाह की सामाजिक कुरीति को बढ़ावा मिलता है। बाल विवाह को रोकने के लिए समाज में जन चेतना के प्रयास आवश्यक हैं। पिछले कुछ दशकों से इस दिशा में किये गये प्रयासों का असर देखने को मिला है। शिक्षित समाज ने इस सामाजिक बुराई को समझा है। मगर ग्रामीण तबका आज भी बाल विवाह का पक्षधर है। इस नासमझ तबके को समझाने के लिए सभी तरह के साम, दाम, दण्ड और भेद के जरिये बाल विवाह को रोकने के सभी सम्भव प्रयास करने होंगे। इसके लिए बुजुर्गों का सहयोग जरूरी है। आखातीज पर बड़े स्तर पर बाल विवाह होते हैं जिन्हें रोकने के लिए समाज की सामूहिक सहभागिता जरूरी है।
- बाल मुकुन्द ओझा
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