सभी राजनीतिक दल सोशल मीडिया से चुनाव जीतने की जुगत में

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दरअसल एक रणनीति के तहत सोशल मीडिया को एक हथियार के रुप में उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही डिजिटल मीडिया की हैडलाइन्स जिस तरह से सोशल मीडिया पर परोसी जा रही है वह भी अपने आपमें गंभीर है। इससे यह साफ लगने लगा है कि मतदाताओं में भ्रम की स्थिति जितनी संभव हो उतनी पैदा की जाए।

ज्यों-ज्यों मतदान के चरण आगे बढ़ते जा रहे हैं सोशल मीडिया और अधिक सक्रिय होता जा रहा है। मजे की बात यह है कि एक दूसरे को जोड़ने, नजदीक लाने, सूचनाओं के तत्काल आदान−प्रदान का क्रांतिकारी माध्यम सोशल मीडिया मतदाताओं में भ्रम की स्थिति पैदा करने का माध्यम बनता जा रहा है। तकनीक के दुरुपयोग का ही परिणाम है कि सत्य से कोसों दूर बातों को सोशल मीडिया पर इस तरह से परोसा जा रहा है कि सही और झूठ का पता ही नहीं चल पाता। आम मतदाता पूरी तरह से भ्रमित होता जा रहा है। आज चुनाव आयोग भी सोशल मीडिया के इस तरह के दुरुपयोग से चिंतित है। फेक न्यूज के माध्यम से लोगों को भ्रमित करना आम होता जा रहा है। सोशल मीडिया के फेक एकाउंट और अंध फोलोवर्स द्वारा सोशल मीडिया खासतौर से वाट्सएप, टि्वटर, फेसबुक आदि का इस कदर दुरुपयोग हो रहा है कि सही गलत का पता लगाना आम आदमी के लिए मुश्किल भरा हो रहा है। फोटोशॉप या दूसरे अन्य तकनीकों से फोटों, पत्रों, वीडियों−आडियों आदि से छेड़छाड़ कर इस तरह से प्रस्तुत किया जा रहा है कि जब तक सही स्थिति सामने आती है तब तक वह पोस्ट अपना असर डाल चुकी होती है। हालिया कुछ पोस्टे इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें डॉ. मुरली मनोहर जोशी का लाल कृष्ण अड़वानी को पत्र सोशल मीडिया पर तेजी से वाइरल हुआ और मजबूरन डॉ. जोशी को मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखना पड़ा कि उनके द्वारा इस तरह का कोई पत्र नहीं लिखा गया व इसकी जांच करवाई जाए। इसी तरह से सेना के दिग्गजों द्वारा राष्ट्रपति को लिखी गई चिट्टी पर भी विवाद उभर कर सामने आया। यह किसी पार्टी विशेष से जुड़ी वाइरल खबरों की बात नहीं है अपितु लगभग सभी दल इससे कमोबेस प्रभावित हो रहे हैं।

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राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया हैण्डल करने वाली टीमों में से कुछ का काम तो इस तरह की वाइरल खबरों का सच सामने लाने में लग जाता है वहीं माने या माने पर इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती की इस तरह की वाइरल खबरें जो सत्य से परे या भ्रम पैदा करने वाली होती है वे एक रणनीति के तहत भी जारी हो रही है। यही कारण है कि जिस तरह से एक समय पेड न्यूज चुनावों को प्रभावित करने में आगे थी लगभग वैसे ही अैर उससे भी ज्यादा सोशल मीडिया के दुरुपयोग करती यह वाइरल फेक पोस्टें है। हो यह रहा है कि प्रमुख समाचार पत्रों और चैनलों द्वारा इस तरह की पोस्टों का वाइरल टेस्ट कर सच झूठ सामने लाने का काम करना पड़ रहा है। मजे की बात यह है कि इस तरह की वाइरल पोस्टे इस तेजी से वाइरल होती है कि वाइरल टेस्ट या स्पष्टीकरण की खबरों का असर लगभग नहीं के बराबर रह जाता है।

दरअसल एक रणनीति के तहत सोशल मीडिया को एक हथियार के रुप में उपयोग किया जा रहा है। इसके साथ ही डिजिटल मीडिया की हैडलाइन्स जिस तरह से सोशल मीडिया पर परोसी जा रही है वह भी अपने आपमें गंभीर है। इससे यह साफ लगने लगा है कि मतदाताओं में भ्रम की स्थिति जितनी संभव हो उतनी पैदा की जाए। हांलाकि चुनाव आयोग इसे लेकर गंभीर है। पिछले दिनों ही सोशियल मीडिया के संचालकों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे अपने प्लेटफार्म का दुरुपयोग होने से रोकने के हरसंभव कदम उठाए। पिछले दिनों वाट्सएप से कांग्रेस और बीजेपी की सैकड़ों इस तरह की पोस्टों को हटाया गया है। दरअसल राजनीतिक दलों को यह समझ तो हो गई है कि मतदाताओं को प्रभावित करने में सोशल मीडिया की प्रमुख भूमिका हो चुकी है। सोशल मीडिया को लेकर चुनाव आयोग ने दिशा−निर्देश भी जारी किए हैं। इन सबके बावजूद कोई ना कोई शरारती फेक न्यूज पोस्ट कर देता है और वह इस तेजी से वाइरल होती है कि सच सामने आने तक वह पोस्ट इतनी फैल जाती है कि सच दबा रह जाता है।

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दुनिया में हमारे लोकतंत्र की अपनी अहमियत रही है। हमारी निर्वाचन प्रक्रिया की सारी दुनिया कायल है। जिस तरह से चुनाव आयोग ने निष्पक्ष व साफ सुथरा चुनाव की व्यवस्था सुनिश्चित की है वह तारिफें काबिल है। राजनीतिक दलों या यों कहे कि पेड न्यूज के माध्यम से चुनावों को प्रभावित करने के प्रयासों को काफी हद तक चुनाव आयोग ने कम कर दिया है। इसी तरह से चुनाव आयोग ने मतदाताओं में विश्वास पैदा करने के हर संभव प्रयास किए हैं। लगभग 99 प्रतिशत मतदाताओं के फोटो पहचान पत्र बन गए हैं। मतदान परचियों के लिए अब प्रत्याशियों या राजनीतिक दलों की भूमिका लगभग खत्म हो गई है। मतदान केन्द्र निकटतम स्थान पर बनाए जा रहे हैं वहीं चुनाव में बाहुबल या धनबल पर रोक के सार्थक प्रयास किए गए हैं। पुलिस प्रशासन और सुरक्षा बलों की तैनाती से लोगों में विश्वास पैदा हुआ है। वीडियोग्राफी भी आवश्यकतानुसार होने लगी है। इन चुनावों में सभी मतदान केन्द्रों पर वीवीपैट मशीनों लगाई जा रही है। सर्वोच्च अदालत के निर्देशों से अब एक की जगह पांच वीवीपैट से मिलान करने का निर्णय किया गया है। आखिर इन सब सुधारों के बाद तू डाल डाल मैं पात पात के की तर्ज पर सोशल मीडिया क दुरुपयोग को रोकने की बड़ी चुनौती सामने आई है। ऐसे में लोगों को गंभीर होना ही होगा।

हांलाकि यह थोड़ा ज्यादा अवश्य लगे पर सोशल मीडिया की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए फेक न्यूज पोस्ट करने वाले तत्वों पर यदि संकेतमात्र के लिए भी उन्हें चिन्हित कर सख्त कार्यवाही की जाती है तो आने वाले समय में सोशियल मीडिया के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा। यह तो खैर मतदाताओं को प्रभावित करने वाली बात है पर इससे अधिक दुर्भाग्य क्या होगा कि कहीं भी अप्रिय घटना होते ही आज प्रशासन इंटरनेट सेवाओं को बाधित करता है, इससे अधिक शर्मनाक क्या होगा हमारे लिए। सही तो यह हो कि सोशल मीडिया पर आप अपनी बात प्रभावी तरीके से पहुंचाए पर भ्रमित करने वाली या फेक या आडियों−वीडियों को तकनीक से तोड़−मरोड़ कर प्रस्तुत करने का घिनोना काम नहीं होना चाहिए। आखिर चुनाव लोकतंत्र का महाउत्सव है और उत्सव की पवित्रता बनाए रखने का दायित्व चुनाव आयोग या प्रशासन का ही नहीं अपितु देश के प्रत्येक नागरिक का हो जाता है।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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