डरा कर सिजेरियन डिलीवरी करते हैं निजी चिकित्सालय, सिर्फ पैसा कमाने की है होड़

caesarean-delivery-cases-increased-in-india

पचास तरह के डर दिखाए जाते हैं, रिस्क नहीं लेने की बात होती है, हो सकता है कुछ मामलों में यह सही भी हो पर जब आंकड़ा अधिक सामने आता है तो दाल में कुछ काला अवश्य नजर आता है, बल्कि यों कहें कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगती है।

अब इसे चिकित्सकीय नैतिकता के दायरे में समझने की कोशिश की जाए या सामान्य नैतिकता के दायरे में, दोनों ही दृष्टि से गैरजरूरी सिजेरियन डिलीवरी को उचित नहीं माना जा सकता। विभिन्न अध्ययनों से प्राप्त आंकड़े हो सकता है अतिशयोक्तिपूर्ण हैं, पर है वास्तव में यह चिंतनीय। टू मच केयर अभियान के तहत आईआईएम अहमदाबाद द्वारा देश भर में प्रसूति पर किए गए अध्ययन ने इस और खासतौर से ध्यान दिलाया है। देखा गया है कि निजी चिकित्सालयों द्वारा सब कुछ ठीक होने के बावजूद प्रायः सी−सेक्शन को प्राथमिकता दी जाने लगी है। इसमें सबसे दुखद बात जो सामने आती है वह यह कि सामान्य डिलीवरी का जो चार्ज होता है सिजेरियन में वह लगभग दो गुणा तक हो जाता है। ऐसे में अधिक आय व सुविधा के हिसाब से चिकित्सालयों द्वारा सिजेरियन डिलीवरी को प्रमुखता दी जाने लगी है।

यह सब तो तब है जब चिकित्सक इस बात को भली भांती जानते हैं कि सी−सेक्शन के कारण मां और बच्चे, दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालांकि यह तथ्य भी उभर कर आया है कि सरकारी चिकित्सा केन्द्रों की तुलना में निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा लगभग उलट है। जहां एक ओर सरकारी अस्पतालों में सिजेरियन प्रसव का आंकड़ा काफी कम है वहीं निजी अस्पतालों में यह आंकड़ा कई गुणा अधिक है। दुखद तथ्य तो यह है कि केवल पैसे कमाने व सुविधा के लिए सिजेरियन डिलीवरी को प्राथमिकता दी जाती है। निजी चिकित्सालयों द्वारा प्रेगनेंसी से लेकर डिलीवरी तक प्रेगनेंट महिला को परीक्षण में रखा जाता है, आए दिन सोनोग्राफी व अन्य जांचें होती हैं और अधिकांश मामलों में डिलीवरी के ठीक पहले तक निजी चिकित्सालयों द्वारा यही कहा जाता है कि सब कुछ सामान्य है और फिर डिलीवरी के लिए चिकित्सालय में लेकर जाते ही पता नहीं कैसे सब कुछ असामान्य हो जाता है।

इसे भी पढ़ें: मानवीय कार्यों को प्रोत्साहन देने का अवसर है विश्व मानवीय दिवस

पचास तरह के डर दिखाए जाते हैं, रिस्क नहीं लेने की बात होती है, हो सकता है कुछ मामलों में यह सही भी हो पर जब आंकड़ा अधिक सामने आता है तो दाल में कुछ काला अवश्य नजर आता है, बल्कि यों कहें कि पूरी दाल ही काली नजर आने लगती है। आखिर इसके निहितार्थ क्या हैं? क्या केवल और केवल पैसा कमाना ही निजी चिकित्सालयों का धर्म रह गया है। हालांकि सरकार ने संस्थागत प्रसव के लिए जनचेतना जागृत की है, अच्छा माहौल बनाया है, सरकारी चिकित्सालयों में डिलीवरी कराने पर प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है, इस सबके बावजूद लोगों का सुविधा के नाम पर निजी चिकित्सालयों की ओर रुख अधिक ही होता जा रहा है। आज लोग पैसा नहीं सुविधा देखते हैं। यही कारण है कि डिलीवरी के लिए अच्छी खासी संख्या में निजी चिकित्सालयों की ओर रुख किया जा रहा है। सामान्य डिलीवरी और सिजेरियन डिलीवरी के चार्जेज में अंतर होने के कारण कहीं पैसे का मोह तो इसका कारण नहीं बनता जा रहा है।

हैरानी की बात है कि आज लोगों को हेल्थ इंश्योरेंस कराने के लिए काफी प्रोत्साहित किया जाता है। यह भी तथ्य है कि महंगे इलाज के चलते लोग हेल्थ इंश्योरेंस को प्राथमिकता भी देने लगे हैं। कैशलेस सुविधाएं दी जाने लगी हैं। यह सब सुविधा होने के बावजूद तस्वीर यह उभर कर आती है कि कैशलेस इंश्योरेंस अस्पतालों के लिए आय का साधन बनता जा रहा है। किसी निजी चिकित्सालय में बिना इंश्योरेंस के कराए जाने वाले इलाज और इंश्योरेंस सुविधा से कराए जाने वाले इलाज में होने वाले खर्चों में रात दिन का यहां तक कि लगभग दोगुना तक खर्चा होने लगा है। प्रश्न यह उठता है कि कैशलेस होते ही इलाज पर होने वाला खर्चा ज्यादा यहां तक कि दो गुणा तक कैसे हो जाता है। आखिर इंश्योरेंस का मतलब चूना लगाना तो नहीं होना चाहिए। यह अपने आप में गंभीर व विचारणीय है।

इसे भी पढ़ें: जिस देश का बचपन भूखा है, उस देश की जवानी क्या होगी ?

यह सब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि आज समाज में नैतिकता की बात की जाती है। पर चिकित्सकीय धर्म को भी कारोबार बना लिया जाए तो इसे कहां तक उचित माना जा सकता है। सुविधा के चलते निजी अस्पताल का रुख करते हैं पर वहां जाते ही जांच के नाम पर और दूसरे डॉक्टरों की विशेषज्ञ राय के नाम पर लूट को उचित नहीं माना जा सकता है। जब डॉक्टर अच्छी तरह से जानते हैं कि सी−सेक्शन से होने वाले प्रसव से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे स्तनपान कराने में देरी, शिशु का वजन कम होना और सांस लेने में तकलीफ जैसी परेशानी चिकित्सकों की जानकारी में होने के  बावजूद सिजेरियन को वरीयता देना कहां की समझदारी मानी जा सकती है। दरअसल निजी अस्पतालों को भी अपनी आचार संहिता बनानी चाहिए और उस आचार संहिता के अनुसार ही नैतिक मानदंडों की पालना होनी चाहिए।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़