महिलाओं को जागरूक करने में सामुदायिक रेडियो सफल

Community radio being successful in making women aware

सामुदायिक रेडियो के परिणामों से उत्साहित होकर सरकार इनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दे रही है और सरकार दिसम्बर 2016 तक 519 सामुदायिक रेडियो को लाइसेंस प्रदान कर चुकी है।

आधुनिक समाज महिला अधिकारों को लेकर काफी जागरूक है। इसका बड़ा कारण स्वयं महिलाएं हैं जो अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हुई हैं और उनकी जागरूकता को गति देने के लिए कई देशी-विदेशी गैर सरकारी तथा स्वयंसेवी संस्थान काम कर रहे हैं। लेकिन ग्रामीण स्तर पर इस बदलाव का सबसे बड़ा वाहक बन रहा है सामुदायिक रेडियो। यही कारण है कि सामुदायिक रेडियो के परिणामों से उत्साहित होकर सरकार इनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दे रही है और सरकार दिसम्बर 2016 तक 519 सामुदायिक रेडियो को लाइसेंस प्रदान कर चुकी है तथा सरकार का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में इनकी संख्या 2500 तक करने की है। लेकिन इसके बावजूद 31 दिसम्बर 2016 तक केवल 201 सामुदायिक रेडियो स्टेशन ही सुचारू रूप से काम कर रहे हैं। वर्ष 2005 में सरकार ने समुदायों को शिक्षित करने और मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से सामुदायिक रेडियो की परिकल्पना को मूर्तरूप देने के लिए दिशा-निर्देश तय किये थे और वर्ष 2006 से कुछ सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्थानों द्वारा सामुदायिक  रेडियो स्थापित किये गये थे लेकिन 10 वर्ष के बाद भी अभी तक जिस गति से इनकी स्थापना तथा संचालन होना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है।

पिछले साल लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री श्री राज्यवर्धन सिंह रठौर ने बताया था कि पिछले तीन सालों में सरकार को सामुदायिक रेडियो स्थापित करने के लिए 747 आवेदन मिले हैं जिनमें से 62 को "लैटर ऑफ इंटेंट" जारी किये जा चुके हैं, 474 आवेदन विभिन्न कारणों से रद्द किये जा चुके हैं और 201 अभी विचाराधीन हैं। सरकार को लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है।

सामाजिक संगठनों को सामुदायिक रेडियो स्थापित करने तथा उनका सुचारू रूप से संचालन करने के उद्देश्य से अभी जनवरी-फरवरी माह में सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिनमें शर्तों के साथ निजी तथा राज्य सरकारों के विज्ञापन चलाने के साथ ही आकाशवाणी द्वारा प्रसारित समाचार तथा स्थानीय सूचना से संबंधित कुछ अधिसूचित समाचारों के प्रसारण की इज़ाज़त दी गई है। राजधानी दिल्ली और गुड़गांव की चकाचौंध से दूर दिल्ली से मात्र 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरियाणा के नूंह जिले में महिलाओं की सोच और उनको आत्मनिर्भर बनाने में सूचना और नई-नई जानकारियों से लैस संचार का सबसे पुराना, सुलभ साधन सामुदायिक रेडियो अहम भूमिका निभा रहा है। बात सूचना की हो या विकास की, शिक्षा की हो या चिकित्सा की, शिकवा हो या शिकायत, सूचना के अधिकार की हो या कानून की बात, किस्से कहानियों हों या हो मेव इतिहास की बात, साफ-सफाई की बात हो या सरकारी योजनाओं की पात्रता की बात, रोजगार की हो या पेंशन की हर सूचना को जन-जन तक यह रेडियो पहुंचा रहा है।

नूंह जिले के घाघस गांव स्थित इसके केन्द्र से आसपास के लगभग 220 गांवों में बदलाव की बयार बह रही है और इसका साफ असर इन गांवों में साफ नजर आता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जहां पहले लोग सरकार की योजनाओं से अनभिज्ञ रह जाते थे और अपात्र लोग मिलीभगत करके सरकारी योजनाओं का लाभ उठा जाते थे, अब ऐसा कतई नहीं है। लोग जहां अपने कर्तव्यों और अधिकारों को लेकर जागरूक हुए हैं वहीं सरकारी योजनाओं का लाभ अब केवल पात्र लोग ही ले पा रहे हैं। रेडियो कार्यक्रमों के जरिए लोगों में इतनी जागरूकता आ गई है कि यदि कोई गलत ढंग से सरकार की किसी योजना का लाभ उठा रहा हो तो यहां के लोग सूचना के अधिकार से जरिए पूरी जानकारी लेकर शिकायत करते हैं।

वर्ष 2012 में केन्द्रीय कृषि मंत्रालय एवं गैर सरकारी संस्थान सहगल फाउंडेशन के सहयोग से स्थापित अल्फाज़-ए-मेवात सामुदायिक रेडियो के सफर के बारे में निदेशक संचार, पूजा मुरादा ने बताया कि रेडियो से समुदाय को जोड़ने के लिए हमने रिपोर्टिंग एवं कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए स्थानीय समुदाय की लड़कियों एवं महिलाओं को प्रशिक्षित किया और उन्हें जिम्मेदारी सौंपी। इस सब का परिणाम यह हुआ कि समुदाय हमसे जुड़ता चला गया और अब हमने सफलतापूर्वक 5 साल पूरे कर लिए हैं और क्षेत्र में बदलाव साफ दिखाई देता है।

अगर हम नूंह जिले के गांवों की बात करें तो डिजिटल इंडिया के इस दौर में 10 प्रतिशत से कम घरों में टेलीविज़न हैं। ऐसे में जो महिलाएं पढ़ना-लिखना नहीं जानतीं वे रेडियो सुनकर सारी जानकारियाँ पाती हैं। मेवात क्षेत्र जो अब नूंह जिले के नाम से जाना जाता है, यहां साक्षरता दर बहुत कम है। मुस्लिम बहुल मेव समुदाय में साक्षरता दर की कमी के चलते यहां 14-15 साल की आयु में ही लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। लड़कियों को दूर-दराज के स्कूलों में पढ़ने भेजना तो यहां की संस्कृति के खिलाफ माना जाता था लेकिन कई एन.जी.ओ. और स्वयंसेवी संगठनों की पहल का नतीजा यह हुआ है कि अब यहां की लड़कियां न सिर्फ स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने जाने लगी हैं बल्कि रोजगारपरक प्रशिक्षण प्राप्त करके अपना व्यवसाय करने लगी हैं और जहां अवसर मिलता है घर-गांव से बाहर  निकल कर रोज़गार भी प्राप्त कर रही हैं। आज यहां महिलाएं और किशोरियां इतनी सशक्त हुई हैं कि रेडियो कार्यक्रमों की लाइव चर्चाओं में भाग लेती हैं, अपनी राय प्रकट करती हैं, साथ ही गाँव में कुछ महिला समूह ऐसे भी हैं जो रेडियो कार्यक्रमों को बनाने में सहयोग करते हैं। खास बात यह है कि रेडियो की लाइव चर्चाओं में हरियाणा तथा केन्द्र सरकार के अधिकारी खुद सरकारी योजनाओं की जानकारी समुदाय को देते हैं।

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