पृथ्वी दिवस मना कर ही ना समझें अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री

पृथ्वी दिवस विश्व भर में 22 अप्रैल को पर्यावरण चेतना जाग्रत करने के लिए मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस को पहली बार सन् 1970 में मनाया गया था। वैसे पृथ्वी दिवस अब महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं बचा।

भारत दिवसों का देश है। यहाँ प्रतिदिन कोई न कोई दिवस मनाया जाता है। हमारा देश ऋषि मुनियों और संतों का देश है जिन्होंने लोगों को कल्याण का मार्ग दिखाया। विश्व बंधुत्व का सन्देश सबसे पहले दुनिया को हमने ही दिया था। होली हो या दिवाली अथवा महापुरुषों की जयंती या कोई अंतर्राष्ट्रीय दिवस सब का निचोड़ एक ही है जिओ और जीने दो। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस है। यह दिवस हम इसलिए मनाते हैं कि पृथ्वी साफ सुथरी हो ताकि मानव सुखपूर्वक पृथ्वी पर अपना जीवन यापन कर सके। लगभग हर दिवस के पीछे मानव कल्याण की भावना रहती है। पृथ्वी दिवस भी इससे अछूता नहीं है। कहते हैं पृथ्वी संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। सुरक्षा की इसी भावना के साथ हम दिवस मानते हैं चाहे वह पृथ्वी दिवस ही क्यों नहीं हो।

पृथ्वी दिवस विश्व भर में 22 अप्रैल को पर्यावरण चेतना जाग्रत करने के लिए मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस को पहली बार सन् 1970 में मनाया गया था। पृथ्वी के पर्यावरण के बारे में प्रशंसा और जागरूकता को प्रेरित करने के लिए पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। पृथ्वी दिवस अब महज औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं बचा। ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जो आज हमारे सामने हैं। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव−जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। जीव−जन्तु अंधे हो जाएंगे। लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी और कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ जाएगी। समुद्र का जलस्तर बढ़ने से तटवर्ती इलाके चपेट में आ जाएंगे। पृथ्वी बहुत व्यापक शब्द है जिसमें जल, हरियाली, वन्यप्राणी, प्रदूषण और इससे जुड़े अन्य कारक भी हैं। धरती को बचाने का आशय है इसकी रक्षा के लिए पहल करना। हमारी भारत भूमि सांस्कृतिक एवं भौतिक दृष्टि से असीम विशेषताएं एवं विविधताएं समेटे है। अकूत प्राकृतिक संसाधन सुलभ कराने, मनमोहक छटा प्रस्तुत करने, पर्वत पहाड़ नदी झील हरे भरे विशाल मैदान की खान से भारत दुनिया में बेजोड़ है। तभी तो विश्व के कोने कोने से विश्व सैलानी यहां पहुंच जाते हैं।

लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से प्रथमतः पूरे विश्व में 22 अप्रैल 1970 को पृथ्वी दिवस मनाया गया। प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने की अवश्यकता है। जनम से मरण तक हम पृथ्वी की गोद में रहते हैं। यह धरती हमें क्या नहीं देती। वर्तमान समय में पृथ्वी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बढ़ती जनसंख्या की है। धरती की कुल आबादी आज आठ अरब के इर्द−गिर्द पहुंच चुकी है। बढ़ती आबादी, उपलब्ध संसाधनों पर नकारात्मक दबाव डालती है, जिससे वसुंधरा की नैसर्गिकता प्रभावित होती है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पृथ्वी के शोषण की सीमा आज चरम पर पहुंच चुकी है। जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम से कम करना दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है। आज हमारी धरती अपना प्राकृतिक रूप खोती जा रही है। जहाँ देखों वहाँ कूड़े के ढेर व बेतरतीब फैले कचरे ने इसके सौंदर्य को नष्ट कर दिया है। विश्व में बढ़ती जनसंख्या तथा औद्योगीकरण एवं शहरीकरण में तेजी से वृद्धि के साथ−साथ ठोस अपशिष्ट पदार्थों द्वारा उत्पन्न पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी विकराल होती जा रही है।

आज विश्व भर में हर जगह प्रकृति का दोहन जारी है कहीं फैक्ट्रियों का गन्दा जल हमारे पीने के पानी में मिलाया जा रहा है तो कहीं गाड़ियों से निकलता धुआं हमारे जीवन में जहर घोल रहा है और घूम फिर कर यह हमारी पृथ्वी को दूषित बनाता है जिस पृथ्वी को हम माँ का दर्जा देते हैं उसे हम खुद अपने ही हाथों दूषित करने में कैसे लगे रहते हैं। पृथ्वी पर बढ़ते प्राकृतिक स्रोत का दोहन और प्रदूषण की वजह से विश्व स्तर पर लोगों को चिंता होनी शुरू हुई है। आज जल वायु परिवर्तन पृथ्वी के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। अब हमें जागरूक होना पड़ेगा। हर शहर, कस्बों और गाँवों में जाना होगा और कैसे बचाएं इस पृथ्वी को ये दुनिया को सिखाना होगा। क्षिति, जल पावक, गगन, समीरा इन पांच तत्वों से मिलकर सृष्टि की रचना हुई है। और हम इस पृथ्वी पर रहने वाले प्राणी हैं। अगर पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाए तो इन तत्वों का कोई महत्व रह जाएगा क्या। पृथ्वी है तो सारे तत्व हैं। अतः पृथ्वी अनमोल तत्व है। इसी पर आकाश है, जल, अग्नि, और हवा है। इन सबके मेल से सुंदर प्रकृति है। आज हमारी पृथ्वी पर जो इतना बड़ा संकट आ खड़ा हुआ है यदि समय रहते इसका निदान−निराकरण नहीं हुआ तो हमें बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। अपने−अपने स्वार्थ के लिए पृथ्वी पर अत्याचार किया जाता है और उनके परिणामों के बारे में कोई नहीं सोचता। अगर हमें पृथ्वी को बचाना है तो हमें कार्बन उत्सर्जन में कटौती पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके लिए उद्योग जगत को साथ लेकर चलना होगा। उन्हीं के कारण कार्बन उत्सर्जन और दूसरी तरह के प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है। जलवायु संकट के प्रभावों से निपटने के लिए तैयार की गई कार्य योजना को सही मायनों में लागू करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हम दिवस मना लेते हैं। कहते हैं इससे जागरूकता बढ़ती है। पर सिर्फ जागरूकता से काम नहीं चलेगा। हमें इस विश्व पृथ्वी दिवस पर संकल्प लेना चाहिए कि हम पृथ्वी और उसके वातावरण को बचाने का प्रयास करेंगे। हम पर्यावरण के प्रति न सिर्फ जागरूक हों, बल्कि उसके लिए कुछ करें भी। पृथ्वी को संकट से बचाने के लिए स्वयं अपनी ओर से हमें शुरूआत करनी चाहिए। पानी को नष्ट होने से बचाना चाहिए। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए। अपने परिवेश को साफ−स्वच्छ रखना चाहिए। पृथ्वी के सभी तत्वों को संरक्षण देने का संकल्प लेना चाहिए।

- बाल मुकुन्द ओझा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़