कोरोना के चलते प्रवासी मजदूर एक बार फिर हो रहे पलायन को मजबूर

Migrant workers
अजय कुमार । Apr 12 2021 12:04PM

बड़े शहरों में काम कर रहे प्रवासी मजदूर गांवों का रूख करने लगे हैं, लेकिन अभी हालात उतने खराब होते नहीं दिख रहे हैं जितने पिछले वर्ष देखने को मिले थे। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जैसी स्थिति अभी नहीं दिख रही है, न ही ऐसे हालात बन ही पाएंगे।

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के खतरों से मुम्बई, पुणे दिल्ली आदि बड़े शहरों में रह कर रोजी-रोटी कमा रहे उत्तर प्रदेश-बिहार के मजदूरों के ऊपर एक बार फिर जीवनयापन का खतरा मंडराने लगा है। महाराष्ट्र में कोरोना के चलते काम-धंधे बंद हो रहे हैं तो उद्धव सरकार अपने यहां काम करने वाले प्रवासी मजदूरों को विश्वास नहीं दिला पा रही है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, जिसके चलते प्रवासी मजबूर अपने गांव-घर को पलायन को मजबूर हो गए हैं। मुम्बई से यूपी-बिहार की ओर आनी वाली ट्रेनों में जर्बदस्त भीड़ दिखाई पड़ रही है, तो मुम्बई जाने वाली गाड़ियों में आसानी से टिकट मिल रहा है। दरअसल, कोरोना महामारी के चलते मुम्बई में काफी उद्योग-धंधों पर ‘ताला’ लग गया है। लॉकडाउन जैसे कदमों की आशंका ने एक बार फिर मजदूरों के पलायन का खतरा पैदा कर दिया है। विभिन्न क्षेत्रों से मिल रही सूचनाओं के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर लॉकडाउन जैसे कदमों की आशंका ने एक बार फिर मजदूरों के पलायन का खतरा पैदा कर दिया है। 

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बड़े शहरों में काम कर रहे प्रवासी मजदूर गांवों का रूख करने लगे हैं, लेकिन अभी हालात उतने खराब होते नहीं दिख रहे हैं जितने पिछले वर्ष देखने को मिले थे। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जैसी स्थिति अभी नहीं दिख रही है, न ही ऐसे हालात बन ही पाएंगे। यूपी-बिहार जैसे राज्यों में ट्रेनों, बसों और हवाई जहाजों से दिल्ली, मुबंई, पुणे और बेंगुलरू जैसे शहरों से प्रवासी मजदूरों का सपरिवार लौटना बताता है कि उनमें भविष्य को लेकर आशंका गहरा रही है। अगर यह चलन बढ़ता है तो पिछले कुछ माह के कामकाज के आधार के बाद से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ने से जो रौनक लौटने लगी थी, वह फीकी पड़ सकती है। वैसे प्रधानमंत्री ने कहा है कि कोरोना की पहली लहर के मुकाबले आज महामारी से निपटने के कहीं अधिक संसाधन हैं। उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन इसे रोकने का पसंदीदा उपाय नहीं है। लेकिन नाइट कर्फ्यू और अन्य आंशिक पाबंदियों की प्रभावित इकाइयों ने मजदूरों, कर्मचारियों को औपचारिक या अनौपाचिरक रूप से घर भेजना शुरू किया है ताकि उन्हें बैठाकर खिलाने की मजबूरी न आन पड़े।

बहरहाल, इससे फर्क नहीं पड़ता कि मजदूर कोरोना हो जाने के डर से गांव जा रहे हैं या काम बंद होने की आशंका से या मालिक के आदेश पर। वजह चाहे जो भी हो, नतीजा अगर इस रूप में सामने आता है कि कारखाने और कारोबार लेबर की कमी से बैठने लग जाएं तो यह सबके लिए चिंता की बात है। इस बीच कई राज्यों ने वैक्सीन की कमी बताते हुए केंद्र पर भेदभाव का आरोप लगाना शुरू किया है, जिसका जवाब केंद्र की ओर से इस आरोप की शक्ल में दिया गया कि राज्यों को ऐसे मामले में राजनीति नहीं करनी चाहिए। इस विवाद का इससे बुरा समय नही हो सकता। अगर किसी क्षेत्र में किसी वजह से वैक्सीन की सप्लाई में तात्कालिक कमी आई है तो उसका निदान जरूर किया जाना चाहिए, लेकिन उस पर हाय-तौबा मचाने या एक दूसरे पर दोषारोपण शुरू करने से आम लोगों में और घबराहट फैलेगी, जिससे नई समस्याएं पैदा होंगी। इस लिहाज से देखा जाए तो प्रधानमंत्री की यह सलाह उपयुक्त है कि वैक्सिनेशन के साथ टेस्ट, ट्रेस एंड ट्रीट का आजमाया हुआ तरीका अपनाया जाए। इसके साथ ही यह जरूर ध्यान रखा जाना चाहिए कि कोरोना से लड़ाई के क्रम में आर्थिक गतिविधियां बाधित या बंद न की जाएं, उन्हें जारी रखने का सुरक्षित तरीका बताया जाए। 

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कोरोना के कारण जब पिछले साल लॉकडाऊन की घोषणा हुई तो यातायात अचानक बंद होने से सबसे ज्यादा परेशानी प्रवासी मजदूरों को झेलनी पड़ी थी। मजदूरों के लिए जब खाने की परेशानी हुई तो वह पैदल ही घर को निकल पड़े और सैंकड़ों किमी पैदल चलकर किसी तरह अपने घर पहुंचे थे। जिसके बाद फैक्टरी शुरू हुई तो मजदूर काफी मशक्कत के बाद वापस लौटे थे। लेकिन अब दोबारा से कोरोना के मामले बढ़ने पर सख्ती शुरू हुई तो प्रवासी मजदूरों ने लॉकडाउन के भय से पलायन शुरू कर दिया है। यहां कुंडली, राई, नाथूपुर औद्योगिक क्षेत्र से करीब तीन हजार मजदूर पलायन कर चुके हैं। वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग पर केजीपी-केएमपी गोल चक्कर के पास मजदूरों की लाइन लगी रहती है। बहरहाल, प्रवासी मजदूरों के पलायन से उद्यमियों की परेशानी भी बढ़नी शुरू हो गई है। क्योंकि पहले कोरोना के कारण फैक्टरी बंद रही तो उसके बाद किसान आंदोलन ने परेशानी बढ़ा दी। अब दोबारा से स्थिति सामान्य होती जा रही थी तो अब फिर से मजदूरों ने पलायन शुरू कर दिया। ऐसे में उद्यमियों के लिए मजदूरों का संकट खड़ा हो सकता है और उससे उद्योग प्रभावित होने का डर सताने लगा है।

-अजय कुमार

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