क्या पिच की कमी या फिर खराब बल्लेबाजी से हारा इंग्लैंड?

Indian cricket team

अहमदाबाद के मैदान पर पिच को लेकर कई सवाल खड़े हुए। अगर डे-नाइट टेस्ट मैच की बात करें तो पिंक बॉल से खेले जाने वाले इस मैच को लेकर माना जाता है कि यहां तेज गेंदबाजों को मदद मिलती। शाम के समय जब सूरज ढल जाता है तो पिंक बॉल से तेज गेंदबाजों को सीम कराने में मदद मिलती है।

भारत और इंग्लैंड के बीच अहमदाबाद में मैच को लेकर काफी बवाल उठा। नरेंद्र मोदी मैदान पर टीम इंडिया ने इंग्लैंड को दो दिनों में टेस्ट मैच में हरा दिया। इस हार के बाद इंग्लैंड के कप्तान जो रूट ने पिच पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह टेस्ट मैच के लिहाज से सही पिच नहीं थी। इसके बाद कई पूर्व क्रिकेटरों ने पिच को लेकर सवाल खड़े किए। इस पिच पर पीटरसन, युवराज और वॉन जैसे पूर्व खिलाड़ियों ने तंज कसा। वहीं सुनील गावस्कर जैसे दिग्गज क्रिकेटर्स ने पिच पर सवाल उठाने वालों की बोलती भी बंद की। ऐसे में सवाल यह है कि अहमदाबाद की पिच में ऐसी क्या कमी थी जो दो दिन में टेस्ट मैच खत्म हो गया। आखिर क्या मौजूदा दौर में बल्लेबाजों के पास मुश्किल पिच पर खेलने की काबिलियत खत्म हो गई है। आखिर क्यों विदेशी टीमें जब भारत आती है और वो स्पिन फ्रेंडली विकेट पर नहीं खेल पाती तो पिच को दोष दिया जाता है।

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क्या सच में खराब पिच की वजह से हारा इंग्लैंड ?

अहमदाबाद के मैदान पर पिच को लेकर कई सवाल खड़े हुए। अगर डे-नाइट टेस्ट मैच की बात करें तो पिंक बॉल से खेले जाने वाले इस मैच को लेकर माना जाता है कि यहां तेज गेंदबाजों को मदद मिलती। शाम के समय जब सूरज ढल जाता है तो पिंक बॉल से तेज गेंदबाजों को सीम कराने में मदद मिलती है। इसके साथ ही फ्लड लाइट में बल्लेबाजों के लिए तेज आती गेंदों को देखना भी मुश्किल होता है। लेकिन तीसरे टेस्ट मैच में चीजें अलग हुई। इस मैच में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए सिर्फ 112 रन बनाए। जिसके बाद हर किसी को लगा कि यह इंग्लैंड की बल्लेबाजी की कमी है जो वह स्पिन का सामना नहीं कर पाया। लेकिन इसके बाद भारतीय बल्लेबाजी भी लड़खड़ा गई और पहली पारी में महज 145 रन पर आउट हो गई। इंग्लैंड के लिए पहली पारी में उनके कप्तान और इंटरनेशनल क्रिकेट में पार्ट टाइम स्पिनर पहचाने जाने वाले जो रूट ने पांच विकेट झटके। इसके बाद इंग्लैंड की दूसरी पारी 81 रन पर खत्म हुई और भारत ने आसानी से मैच 10 विकेट से जीत लिया। इस जीत के बाद हर तरफ पिच को लेकर बवाल मचा लेकिन भारतीय कप्तान विराट कोहली का कहना था कि बल्लेबाजों के खेलने की स्पिन खेलने की कला सही नहीं थी और 30 में से 21 विकेट सीधे गेंद पर गिरे। ऐसे में सवाल यह है कि क्या बल्लेबाजों ने गेंदबाजों की उंगलियों से पड़ने के बाद गेंद ना पढ़कर टप्पा खाने के बाद अंदाजा लगाया। क्या हर गेंद को बल्लेबाजों ने टर्न समझकर ही खेला और ऐसा है तो यहां बल्लेबाजी में साफ कमी दिखाई पड़ती है। क्योंकि ये जाहिर है कि पिच जरूर सूखी और स्पिन गेंदबाजों को मदद करने वाली थी और पिंक बॉल को देखते हुए पिच पर 6 मि.मी भी घास नहीं छोड़ी गई थी। लेकिन बल्लेबाजों को भारतीय उपमहाद्धीप में स्पिन खेलने की कला सीखनी होगी और जो भी अहमदाबाद में हुआ उसे पिच से ज्यादा बल्लेबाज अपनी नाकामयबी के तौर पर लें।

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क्या खराब पिच की वजह से मैच रद्द भी हो जाते है ?

विश्व क्रिकेट में कई बार ऐसे मौके आए जब खराब पिच की वजह से मैच रद्द कर दिया गया। भारतीय टीम के लिए ऐसा एक मौका 1997 में आया था। जब भारतीय टीम श्रीलंका के खिलाफ सीरीज का दूसरा वनडे मैच खेलने इंदौर आई थी। यहां नेहरू स्टेडियम में मैच खेला जाना था। श्रीलंका ने टॉस जीतकर बल्लेबाजी करना बेहतर समझा लेकिन जब पिच पर खेल शुरू तो यह पूरी सूखी थी और उसपर पानी और रोलर भी नहीं दिया गया था। ऐसे में असीमित उछाल की वजह से चोट लगने का खतरा था और मैच को बीच में रोक दिया गया। इसके साथ ही साल 2009 में श्रीलंका के खिलाफ ही भारतीय टीम दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में खेला गया। यहां भी पिच बेहद ही खराब थी जिसकी वजह से असीमित उछाल था और बल्लेबाजों के शरीर पर गेंद लगी और मैच को बीच में ही रद्द कर दिया गया। वहीं अगर किसी विदेशी टीमों के बीच हुए मैचों की बात करें तो साल 1998 में इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के बीच टेस्ट मैच खेला जा रहा था इंग्लैंड की टीम इस टेस्ट में पहले बल्लेबाजी कर रही थी। शुरुआती ओवरों से ही इंग्लिश बल्लेबाजों के लिए पिच में उछाल और अजीब हरकतें थी और इसकी वजह से मैच बीच में रद्द कर दिया गया।

क्या टेस्ट क्रिकेट में खिलाड़ियों के क्षमता में कमी आई है ?

टेस्ट क्रिकेट हमेशा से खिलाड़ियों के लिए एक परीक्षा की तरह माना जाता है। कहा जाता है कि टेस्ट क्रिकेट में हर खिलाड़ी के असली स्किल्स का प्रमाण होता है लेकिन मौजूदा समय में ज्यादातर टेस्ट मैच 4 दिन में खत्म हो जाते है। 5 दिन का टेस्ट मैच अब बहुत कम अपने आखिरी दिन पहुंच पाता है। मौजूदा दौर में बढ़ते टी-20 क्रिकेट को देखते हुए खिलाड़ियों के खेलने में धैर्य में कमी आई है। तेजी से रन बनाने के चक्कर में कई बार खिलाड़ियों को जबरन विकेट फेंकते हुए देखा जाता है। अगर चेतेश्वर पुजारा के उदाहरण को लेकर समझा जाए तो यह कहा जा सकता है कि इस तरह से खेलने वाले बल्लेबाज अब शायद टेस्ट क्रिकेट में कम ही है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पुजारा ने बताया कि आज के समय में भी बेहतर तकनीक और ढृढ़ संकल्प की वजह से सफेद जर्सी में सफल हुआ जा सकता है। ऐसे में अगर आज के दौर में टेस्ट क्रिकेट को जिंदा रखना है तो इस फार्मेट के लिए भी स्पेशल खिलाड़ी तैयार करने होंगे जो इस प्रारूप में खेलने में सक्षम हो।

- दीपक कुमार मिश्रा

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