गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जल्द संभलना होगा

Glaciers of Ganga basin region are melting rapidly
डॉ. डोभाल । Apr 11 2018 2:43PM

पृथ्वी के तापमान में निरंतर होती वृद्धि से गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री से कुछ किमी पैदल दूरी पर गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर निरंतर पीछे खिसक रहा है।

पृथ्वी के तापमान में निरंतर होती वृद्धि से गंगा बेसिन क्षेत्र के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री से कुछ किमी पैदल दूरी पर गंगा का उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर निरंतर पीछे खिसक रहा है। ताजा आंकड़े के अनुसार वर्ष 1990 से लेकर 2006 तक गोमुख ग्लेशियर 22.8 हेक्टेयर पीछे खिसका है। इंटरनेशनल कमीशन फॉर स्नो एण्ड आइस के एक समूह द्वारा हिमालय स्थित ग्लेशियरों का अध्ययन किया गया। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार आने वाले 50 वर्षों में मध्य हिमालय के तकरीबन 15 हिमखंड पिघल कर समाप्त हो जाएंगे। गोमुख ग्लेशियर पर अध्ययन से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1935 से 1956 तक गोमुख ग्लेशियर 5.25 हेक्टेयर, 1952 से 1965 तक 3.65 हेक्टेयर, 1962 से 1971 तक 12 हेक्टेयर, 1977 से लेकर 1990 तक 19.6 हेक्टेयर पिघल कर समाप्त हुआ है। वर्ष 1962 से 2006 तक गोमुख ग्लेशियर डेढ़ किमी. पिघला है।

भूगर्भीय सर्वे ऑफ इंडिया, रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय आदि संस्थानों के द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट है कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर पिछले 40 सालों में 25 से 30 मीटर पीछे खिसक चुका है। यदि यही स्थिति रही तो 2035 तक ग्लेशियर पिघल कर समाप्त हो जायेगा। समुद्र तल से 12,770 फीट एवं 3770 मीटर ऊंचाई पर स्थित गोमुख ग्लेशियर 2.5 किमी चौड़ा व 27 किमी लम्बा है, जबकि कुछ साल पहले गोमुख ग्लेशियर 32 किमी लम्बा व 4 किमी चौड़ा था। गोमुख ग्लेशियर पिघलने से गंगा बेसिन के क्षेत्र उत्तरांचल, बिहार, उत्तर प्रदेश का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। गोमुख क्षेत्र में लोगों का हजारों की संख्या में पहुंचना भी एक हद तक ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। यदि ग्लेशियर पर पर्वतारोही दलों के अभ्यास को बंद करने के साथ ही ग्लेशियर पर चढ़ने की सख्त पाबंदी लगा दी जाए तो काफी तक गोमुख ग्लेशियर की उम्र बढ़ सकती है।

भागीरथी गंगा का प्रमुख स्रोत है किन्तु जलभराव की दृष्टि से अलकनंदा की हिस्सेदारी अधिक अल्टीट्यूड उद्गम से लेकर समुद्र तक पहुंचने की नदी यात्रायें गम्भीर निगरानी और सुधार चाहती हैं। अलकनंदा के साथ पिंडर, घौलीगंगा, रामगंगा और मंदकिनी जैसी धाराएं भी मिलती हैं। कर्णप्रयाग में ही अलकनंदा पिंडर से मिलती है। अब पिंडर पर अनेक पन बिजली परियोजनायें प्रस्तवित हैं। इस सम्पूर्ण क्षेत्र में वनों की कटाई, निर्माण और भारी भरकम परियोजनाओं से पूरा परिस्थितिक ढांचा बदला और बिगड़ा है इसका परिणाम 2013 में केदारनाथ त्रासदी के रूप में हम देख चुके हैं। पर्यटन, बेतरतीब निर्माण, पनबिजली योजनायें और बांधों के निर्माण से समूचा हिमालय क्षेत्र अति संवेदनशील हो चुका है। नदियों के मार्ग, नदी के तट में अवरोध, पहाड़ियों पर बारूदी विस्फोट और सड़कों, सुरंगों के निर्माण से स्थितियां बद से बदतर हुई हैं। 557 बांध परियोजनायें जो प्रस्तावित हैं यदि क्रियान्वित हुईं तो हिमाचल, गंगा, उत्तराखंड का पर्यावरणीय विनाश तय है। गंगा बहती है, इसलिए नदी है, अविरल है, नदी का बहना बंद होने का अर्थ नदी की मृत्यु है। फिर गंगा की मृत्यु का अर्थ कितना भयावह हो सकता है?  

गंगा पर संकट बेशुमार 

इस समय भारत में गंगा के अस्तित्व और भविष्य पर बेशुमार संकट है। लगातार सरकारी वादों और योजनाओं के बाद भी गंगा की दशा खराब ही होती जा रही है। हमारी नीतियों और करतूतों ने हालात को और भी बदतर बना दिया है। 1979 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने गंगा में प्रदूषण की विकरालता को समझते हुए एक समीक्षा की थी। 1985 में गंगा एक्शन प्लान का प्रारम्भ हुआ, पर गंगा की हालत नहीं बदली। गंगा बेसिन अथॉरिटी की स्थापना 2009 में हुई पर नतीजे नहीं मिले। 2014 में नममि गंगे परियोजना की घोषणा हुई इसके अंतर्गत 2037 करोड़ रुपए खर्च होंगे, किनारों के बड़े नगरों में घाटों के विकास हेतु 100 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अप्रवासी भारतीयों को भी सहयोग हेतु कहा गया है। शहरी विकास मंत्रालय ने निर्मल धारा योजना के अंतर्गत गंगा तट पर बसे 118 नगरों में जल-मल शुद्धिकरण के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास की योजना बनाई है। जिस पर 51000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। गंगा के प्रवाह को जल परिवहन के लिए भी उपयोग करने की योजना है। इलाहाबाद से हल्दिया तक जलमार्ग विकास परियोजना 42000 करोड़ रुपए की है जोकि 2020 तक पूरी होगी। हालांकि इस जलमार्ग योजना पर अनेक प्रश्न उठाए गए हैं। जैवविविधता की क्षति से लेकर नदी की सम्पूर्ण परिस्थितिकी के बिगाड़ तक के खतरों की आशंका जैसे प्रश्न हैं।

गंगा प्रदूषण या गंगा बचाओ

 लोग गंगा के प्रदूषण की बात करते हैं लेकिन मैं कहता हूं कि गंगा को बचाना अधिक महत्वपूर्ण है। टिहरी बांध के बाद गंगा नाले जैसी बहती है। कहां है गंगा? गंगोत्री पीछे जा चुकी है। इतनी गंदगी है। ग्लेशियर को बचाने का कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। जब भूकंप होता है या ऐसी कोई बड़ा कंपन होता है तो ग्लेशियर पर प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तो है ही।

-डॉ. डोभाल, ग्लेशियर विशेषज्ञ

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