बैंकों और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के साथ अन्याय कर दिया सरकार ने

Government has done injustice to banks and private sector employees
दीपक गिरकर । Apr 19 2018 10:25AM

केंद्र सरकार ने बैंकों एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और पेंशनर्स के साथ सौतेलेपन का व्यवहार करते हुए ग्रेच्युटी एक्ट में संशोधन पारित कर उन्हें यह बढ़ी हुई ग्रेच्युटी की सुविधा 29 मार्च, 2018 से लागू कर दी।

हमारे देश में बुजुर्गों के योगदान को समाज और सरकार द्वारा स्वीकार किया गया है। पिछले एक दशक में बुजुर्गों की संख्या में लगभग 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हमारे देश में लगभग छह करोड़ ऐसे वरिष्ठ नागरिक हैं जो सरकारी और निजी क्षेत्र की कंपनियों से सेवानिवृत्त हुए हैं और जो पेंशन पर ही अपनी जीविका चलाते हैं। इन वरिष्ठ नागरिकों ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। देश का इनके ऊपर कर्ज़ है। इनमें से अधिकांश वरिष्ठ नागरिक कई सामाजिक एवं सेवा संस्थानों से जुड़े हुए हैं जहाँ ये अपनी निःशुल्क सेवाएँ देते हैं। कई वरिष्ठ नागरिक नई पीढ़ी का निःशुल्क मार्गदर्शन करते हैं।

सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने मुद्रास्फीति में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कर्मचारियों और केंद्र सरकार के पेंशनर्स को दिनांक 1 जनवरी, 2016 से ग्रेच्युटी की सीमा को रुपये 10 लाख से बढ़ाकर रुपये 20 लाख (आयकर मुक्त) कर दिया था। किंतु केंद्र सरकार ने बैंकों एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और पेंशनर्स के साथ सौतेलेपन का व्यवहार करते हुए ग्रेच्युटी एक्ट में संशोधन पारित कर उन्हें यह बढ़ी हुई ग्रेच्युटी की सुविधा 29 मार्च, 2018 से लागू कर दी। केंद्र सरकार के इस संशोधन से भविष्य में सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी लाभान्वित होंगे लेकिन जो कर्मचारी 1 जनवरी, 2016 और 29 मार्च, 2018 के मध्य सेवानिवृत्त हुए हैं उन्हें वास्तव में आर्थिक नुकसान हुआ है।

केंद्र सरकार का यह निर्णय संविधान में प्रदत्त समानता के अधिकार के खिलाफ है। सरकार के इस सौतेलेपन से बैंक एवं निजी क्षेत्र के वे पेंशनर्स जोकि 1 जनवरी, 2016 और 29 मार्च, 2018 के मध्य सेवानिवृत्त हुए हैं उनको आर्थिक नुकसान तो हुआ ही है वे निराश एवं हताश भी हो गये हैं। महँगाई दिनों दिन बढ़ती जा रही है लेकिन पेंशन में बढ़ोतरी नहीं होती है। सेवानिवृत्ति के समय जो पेंशन फ़िक्स हो जाती है वह ही राशि पेंशनर के जीवित रहने तक मिलती रहती है। बहुत से परिवार सिर्फ़ वरिष्ठ नागरिक की पेंशन और जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज की राशि पर ही टिके रहते हैं। हमारे देश में कई छोटे-छोटे व्यापारियों की मासिक आय पेंशनधारी वरिष्ठ नागरिकों की पेंशन से कई गुना अधिक है लेकिन वे आयकर नहीं भरते हैं क्योंकि वे अपना टर्नओवर कम बताते हैं।

ग्रेच्युटी भुगतान एक्ट, 1972 में साफ-साफ लिखा हुआ है कि 'सेवानिवृत्ति के पश्चात कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा मिले। ग्रेच्युटी की सुविधा सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा है।' लगातार बढ़ती हुई मुद्रास्फीति और घटती हुई रूपये की कीमत के आधार पर देश की सभी ट्रेड यूनियनों ने समय-समय पर ग्रेच्युटी में वृद्धि के लिए केद्र सरकार के सामने अपनी माँग रखी थी। इस कारण समय-समय पर ग्रेच्युटी की सीमा रूपये 1 लाख से रूपये 2.50 लाख, रूपये 2.50 लाख से रूपये 3.50 लाख और मई 2010 में रूपये 3.50 लाख से रूपये 10 लाख हो गयी थी और अब यह रूपये 10 लाख से बढ़कर रूपये 20 लाख हो गयी है। संसद में जितने भी बिल पारित होते हैं वे बिना चर्चा के पारित नहीं होने चाहिए। यदि विपक्षी सांसद शोरगुल करते हुए संसद का बहिष्कार भी कर दें तब भी सत्ता पक्ष के सांसदों को हर बिल पर भरपूर चर्चा करनी चाहिए उसके बाद ही वह बिल पारित होना चाहिए क्योंकि संसद में चर्चा करना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र में शासन की सारी व्यवस्था जनता के सामूहिक हित को ध्यान में रखकर की जाती है। लोकतंत्र में सरकार को लोक-कल्याणकारी सरकार कहा जाता है जोकि सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करती है। सरकार को चाहिए कि वह संविधान में दिए गये समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए ग्रेच्युटी भुगतान एक्ट 1972 में संशोधन करने के लिए एक बार पुन: संसद में व्यवस्थित चर्चा करे जिससे कि बैंक एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारियों, पेंशनर्स को रूपये 20 लाख (आयकर मुक्त) ग्रेच्युटी की सीमा दिनांक 1, जनवरी, 2016 से लागू हो सके।

-दीपक गिरकर

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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