दुनिया में सबसे ज्यादा मेहनती हैं भारतीय युवा, कामचोर की छवि तोड़ी

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वैसे तो भारतीय युवा शक्ति का लोहा सारी दुनिया में पहले से ही माना जाता रहा है पर हमारे देश में जब इस पर बात की जाती है तो इसे अतिशयोक्ति या यों कहें कि आत्ममुग्धता कहकर हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी इस धारणा का मजाक उड़ाते रहे हैं।

वैसे तो भारतीय युवा शक्ति का लोहा सारी दुनिया में पहले से ही माना जाता रहा है पर हमारे देश में जब इस पर बात की जाती है तो इसे अतिशयोक्ति या यों कहें कि आत्ममुग्धता कहकर हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी इस धारणा का मजाक उड़ाते रहे हैं। पर अमेरिका के बहुराष्ट्रीय प्रबंधन संस्थान क्रोनोस की हालिया रिपोर्ट ने इस बात की एक बार फिर पुष्टि कर दी है कि विदेशों में काम कर रहे युवाओं में भारतीय युवाओं का कोई सानी नहीं है। क्रोनोस द्वारा कराए गए सर्वे की रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि भारतीय युवा जहां भी काम करते हैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने काम को अंजाम देते हैं। यही नहीं कार्य समय का पूरा उपयोग परिणाम देने में करते हैं और काम से अपनी पहचान बनाने में सफल रहते आए हैं। हालांकि हमारे देश में यह आम धारणा है कि भारतीय कर्मचारी समय पर काम नहीं करते और काम के मामले में आलसी हैं। पर दुनिया के देशों में जहां भी भारतीय युवा जाते हैं वहां पर अपने काम और परिश्रम से अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। अमेरिका में विदेशी युवाओं की नौकरी पर रोक लगाने या प्रतिबंधित या सीमित करने की मांग के पीछे यही कारण है। आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हमलों के पीछे भी यही कारण देखा गया कि वहां पढ़ने जाने वाले युवा पढ़ाई और पढ़ाई के साथ कमाई में आगे रहे हैं। दुनिया के देश भारतीय प्रतिभा की क्षमता से इस कदर घबराते हैं कि वे यह मानने लगते हैं कि उनके रोजगार के अवसर भारतीय सीमित करते जा रहे हैं। क्रोमोस के इस सर्वे में हालांकि दुनिया के देशों में मेहनतकश लोगों की सूची में भारत के बाद दूसरे नंबर पर मैक्सिको के युवा हैं।

यह कोई आत्मुग्धता नहीं है बल्कि दुनिया की सच्चाई है कि भारतीय युवा सबसे अधिक मेहनती और काम के प्रति निष्ठा रखने वाले होते हैं। सर्वे में यह सामने आया है कि अमेरिकी युवा ओवरटाइम करने में अधिक विश्वास रखते हैं वहीं ब्रिटिेश युवाओं में से एक तिहाई युवा अधिक से अधिक अवकाश को महत्व देते हैं। हालांकि काम की अधिकता या यों कहें कि काम के तनाव के कारण पारिवारिक या यों कहें कि निजी जिंदगी प्रभावित होने की बात पर आज की युवा पीढ़ी एक मत है। वैसे यह सर्वे पांच दिवसीय कार्य दिवस के आधार पर किया गया है पर मजे की बात यह है कि काम के लिहाज से पांच दिन पर्याप्त माने गए हैं लेकिन आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के युवा इसे कम मानकर चलते हैं। अमेरिकी युवाओं का तो इकतरफा जोर ओवरटाइम पर रहता है और वे ओवरटाइम को वरियता भी देते हैं।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद अमेरिका की वीजा नीति को लेकर जिस तरह का आक्रामक और नकारात्मक जोर रहा है उससे एक बात साफ निकल कर आई है कि अमेरिकी कंपनियां एक स्वर में भारतीय युवाओं के काम को देखते हुए सख्त वीजा नीति की खिलाफत करते हुए आगे आई हैं। उनका मानना था कि आईटी सेक्टर में भारतीय युवाओं की पहुंच और परिणाम सारी दुनिया के सामने हैं। नए एंटरप्रोन्योरशीप में भी या यों कहें कि स्टार्टअप्स में भी भारतीय युवा आगे आ रहे हैं। भारतीय युवाओं में विदेश जाने की ललक के साथ ही अपनी पहचान बनाने की भी इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियां भारतीयों को प्राथमिकता से अवसर देती हैं।

राष्ट्रपति ट्रंप के आने के बाद अमेरिका में और इससे पहले के वर्षों में आस्ट्रेलिया में खासतौर से भारतीय युवाओं को निशाना बनाकर किए गए हमले जगजाहिर हैं। इन हमलों के पीछे जो कारण रहे हैं उनमें से एक प्रमुख कारण इन देशों के युवाओं की कुंठा, अकुशलता, लथारजीपन और बेरोजगारी रहा है। इसके साथ ही कई मुल्कों में युवाओं को बेरोजगारी भत्ते का झुनझुना देकर उनकी क्षमता को प्रभावित किया गया है। देखा जाए तो सरकारों द्वारा युवाओं को रेवड़ियां बांटना उनकी क्षमता को बाधित करने का कारण रही है। हमारे देश में भी इस तरह के लालीपॉप चुनावी हथकंडे के रूप में दिेये जाने लगे हैं जो आने वाले समय के लिए गंभीर चेतावनी है। मनरेगाा इसका जीता-जागता उदाहरण है। हालांकि अब सोची समझी रणनीति के तहत मनरेगा को सीमित किया जा रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में भी युवाओं ने अपनी पहचान बनाई है। युवा पीढ़ी की इस सक्रियता और काम के प्रति लगन को सकारात्मक दिशा में प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। जिस तरह से विदेशों में युवा भारतीयता का परचम फहरा रहे हैं उसी तरह की सोच और समझ देश में भी अभी विकसित होने की आवश्यकता है। देश में भी लोगों की इस मानसिकता को तोड़ना होगा कि कार्मिक आलसी और काम नहीं करने की प्रवृति रखते हैं। हालांकि आज की नई पीढ़ी की सोच में बदलाव आया है, होमसिकनेस अब लगभग नहीं के बराबर रह गई है ऐसे में भारतीय युवाओं का भविष्य निश्चित रूप से उज्ज्वलता की ओर है।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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