जेसिका लाल के हत्यारे मनु शर्मा को माफ करने का फैसला साहसिक

Jessica Lall''s killer Manu Sharma decides to forgive the adventure
ललित गर्ग । Apr 26 2018 3:07PM

क्षमा लेना और देना भारतीय संस्कृति की स्वस्थ परम्परा है। इसी माटी में ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब किसी अपने या परिजन के हत्यारे को भी माफ कर दिया जाता है। ये बड़े दिल वाले और उनसे जुड़ी बड़ी बातें सुनना और देखना सुखद आश्चर्य का सबब है।

क्षमा लेना और देना भारतीय संस्कृति की स्वस्थ परम्परा है। इसी माटी में ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं जब किसी अपने या परिजन के हत्यारे को भी माफ कर दिया जाता है। ये बड़े दिल वाले और उनसे जुड़ी बड़ी बातें सुनना और देखना सुखद आश्चर्य का सबब है। ऐसा ही एक अनुकरणीय एवं प्रेरक उदाहरण सामने आया है सबरीना लाल का। वह प्रसिद्ध मॉडल जेसिका लाल की बहन हैं। जिनकी 19 वर्ष पूर्व मनु शर्मा ने निर्मम हत्या कर दी थी। सबरीना आज उसी को क्षमा करने की बात कर रही हैं। इस तरह का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिये सचमुच बहुत बड़ा दिल चाहिए। वे क्षमा करने की सिर्फ बात ही नहीं कर रही हैं, बल्कि उन्होंने इस बाबत दिल्ली की तिहाड़ जेल के अधिकारियों को एक चिट्ठी भी लिखी है कि अगर मनु शर्मा को रिहा कर दिया जाता है, तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। यह क्षमा का एक आदर्श उदाहरण है। 

क्षमा मांगने वाला अपनी कृत भूलों को स्वीकृति देता है। भविष्य में पुनः न दोहराने का संकल्प लेता है। यह उपक्रम व्यक्ति के अहं को झुकाकर उसे ऊंचा उठा देता है, अपराध मुक्त जीवन की ओर अग्रसर कर देता है। लेकिन सबरीना ने अपने मन की आवाज को सुनकर बिना मांगे क्षमा देने की मिसाल कायम की है। उसने आग्रहमुक्त होकर उदारता के साथ बिना किसी स्पष्टीकरण के सभी निमित्तों को सहते हुए मृत्यु-दंड के मुहाने पर खड़े अपराधी को क्षमा करके मानवीयता का उदाहरण रखा है। उसका यह निर्णय उसकी विवेकशीलता, पवित्रता, गंभीरता और क्षमाशीलता का प्रतीक बना है। ऐसा व्यक्ति किसी को मिटाता नहीं, सुधरने का मौका देता है। जबकि मनु शर्मा ने उनके पूरे परिवार को तबाह कर दिया था, लेकिन सबरीना का मानना है कि अब अच्छा यही है कि इन सबको भूलकर आगे बढ़ा जाए। निस्संदेह, सबरीना की यह सोच तारीफ के काबिल है। ऐसा नहीं है कि उनको वह कठिन दौर याद नहीं होगा, जो जेसिका की हत्या के बाद कहर बनकर उनके परिवार पर टूटा था। एक बड़े राजनीतिक और उद्योगपति परिवार के बिगड़ैल लड़के को सजा दिलवाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, यह सब भी सबरीना को अच्छी तरह याद होगा। निचली अदालत ने तो मनु शर्मा को तकरीबन रिहा ही कर दिया था। बाद में किसी तरह उसे शीर्ष अदालत से सजा दिलाई जा सकी।

अपराध तय हो जाने एवं सजा भी सुना देने के बाद क्षमा की बात होना- क्षमा का वास्तविक हार्द उद्घाटित करता है। क्योंकि उस परिवेश और परिस्थिति में क्षमा का उदाहरण कभी नहीं विकसित हो सकता जहां स्वार्थों एवं संकीर्णता की दीवारें समझ से भी ज्यादा ऊंची उठ जाएं। विश्वास संदेहों के घेरे में घुटकर रह जाए। समन्वय और समझौते के बीच अहं आकर खड़ा हो जाए, क्योंकि अहं की उपस्थिति में आग्रह की पकड़ ढीली नहीं होती और बिना आग्रह टूटे क्षमा तक पहुंचा नहीं जा सकता। लेकिन सबरीना ने सारी सच्चाइयों के बावजूद अपनी बहन के हत्यारे को क्षमा करके एक नयी सोच को पल्लवित होने का अवसर दिया है। जबकि मनु शर्मा अभी भी सुधरने की तैयारी में नहीं दिखाई दे रहा है। गत एक दशक का उसका आचरण अभी भी विववादास्पद है। जब-जब वह पेरोल पर बाहर निकला तो रिहाई के दौरान भी वह कई बार विवादों में रहा। एक बार मां की बीमारी के नाम पर पेरोल पर आया, तब भी वह एक नाइट क्लब में घूम रहा था, जबकि उसकी मां एक सम्मेलन में भाग ले रही थीं।

एक पेरोल के दौरान उसने किसी पब में हंगामा ही बरपा दिया था। एक बार तो उसकी एक पेरोल की सिफारिश के लिए दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी थी। और भी किस्से चर्चित रहे हैं। इन सब घटनाक्रम की जानकारी सबरीना को पता न हो, ऐसा नहीं हो सकता, फिर भी अगर वह सब कुछ भूलकर मनु शर्मा को माफ करने की बात करती हैं, तो उनकी तारीफ होनी चाहिए। हालांकि उनकी चिट्ठी का इसके अलावा कोई बड़ा अर्थ नहीं है। भारत की न्याय व्यवस्था में पीड़ित या पीड़ित के परिवार वालों के पास अपराधी को माफ करने का कोई अधिकार नहीं होता। यह अधिकार सिर्फ सरकार के पास होता है। और वहां भी माफी की बाकायदा एक प्रक्रिया है। लेकिन इस इस दिशा में अग्रसर होने की भूमिका तैयार करना भी आदर्श की स्थिति है।

सबरीना ने यह चिट्ठी उस वक्त लिखी है, जब तिहाड़ जेल से 90 कैदियों की रिहाई पर विचार चल रहा है। इनमें से ज्यादातर कैदी वे हैं, जिन्होंने लंबा समय जेल में गुजार लिया है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिनके ‘आचरण’ के कारण उनकी रिहाई की सिफारिश की गई है। इस सूची में दिल्ली के तंदूर कांड के अभियुक्त सुशील शर्मा का नाम भी है। सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी को न सिर्फ गोली मारी थी, बल्कि उनके शरीर को एक होटल के तंदूर में जला दिया था। इन दो नामों से यह सूची विवादों में आ गई है।

बात सबरीना की नहीं है, बात कानून की भी नहीं है, यहां बात भारतीय संस्कृति के मूल्यों की है। सबरीना के क्षमा करने से मनु की सजा पर कोई फर्क पड़ेगा या नहीं, लेकिन दुनिया में भारतीय संस्कृति और उसके उच्च मूल्य मानकों का सम्मान जरूर होगा। हमें एक सन्देश जरूर मिलेगा कि यदि हमारे व्यवहार से औरों को कुछ कष्ट होता है तो उसके लिए विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना कर लेनी चाहिए। यदि हम दूसरों को क्षमा नहीं कर सकते तो परमात्मा कैसे हमारी अनंत भूलों, पापों को माफ करेगा। यह मान के चलिये कि मनुष्य गलतियों का पुतला है। फिर भी दूसरों की त्रुटियां क्षम्य हैं, लेकिन अपनी स्वयं की गलती के लिए प्रायश्चित करना चाहिए। अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित कर अपनी गलती के लिए सदैव सजग व जागरूक रहना चाहिए। यही गुणों को जीवन में विकसित करने का रास्ता है। गौतम बुद्ध ने प्रेरक कहा है कि पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सद्गुण की महक सब ओर फैलती है। ईसा ने अपने हत्यारों के लिए भी प्रभु से प्रार्थना की कि प्रभु इन्हें क्षमा करना, इन्हें नहीं पता कि ये क्या कर रहे हैं। ऐसा कर उन्होंने परार्थ-चेतना यानी परोपकार का संदेश दिया। इन आदर्श एवं प्रेरक उदाहरणों से वातावरण को सुवासित करना- वर्तमान की बड़ी जरूरत है, इसी से कानून के मन्दिरों पर बढ़ते बोझ को कुछ कम किया जा सकता है। 

सह-जीवन एवं आपसी संबंधों की सुरक्षा में आवश्यक है सहिष्णुता। प्रतिकूल वस्तु, व्यक्ति, वातावरण या विचार के प्रति प्रतिक्रिया न करना। जो सहना नहीं जानता वह कलह, विवाद, निरर्थक तर्कों में उलझकर सुख और आनंद की पकड़ ढीली कर देता है। सच तो यह है कि दुश्मन से भी ज्यादा दोस्त को सहना जरूरी है, क्योंकि अपनों के बीच टूटता विश्वास, उठता विरोध, पनपता मनभेद ज्यादा घातक होता है। इसलिए अपराध एवं बुराइयों पर नियंत्रण महत्वपूर्ण प्रयोग है- गलती बताओ, पर छिद्रान्वेषी बनकर नहीं, हितैषी बनकर। अंतिम क्षण तक व्यक्ति को सुधरने का मौका दो, उसे टूटने मत दो, क्योंकि बदलना धर्म का शाश्वत सत्य है। मार्टिन लूथर किंग, जूनियर ने बहुत सटीक कहा है कि हमारे जीवन का उस दिन अंत होना शुरू हो जाता है जिस दिन हम उन विषयों के बारे में चुप रहना शुरू कर देते हैं जो मायने रखते हैं। इसलिये अपराधी से ज्यादा जरूरी है अपराध को समाप्त करने की स्थितियां खड़ी करना। इसके लिये सबरीना एक नयी सुबह लेकर आयी है।

-ललित गर्ग

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