पाकिस्तान में आतंकियों की हार कश्मीरी अलगाववादियों को झटका

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इमरान खान को भी अच्छी तरह अंदाजा था कि कश्मीर मुद्दे की आड़ में चुनाव नहीं जीता जा सकता। भारत की तरह विकास का आईना दिखा कर ही मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है।

पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की समर्थित अल्हा हो अकबर तहरीक पार्टी को अवाम ने नकार दिया। इस पार्टी को पाकिस्तानी मतदाताओं ने लाज बचाने लायक भी नहीं छोड़ा। इसका एक भी उम्मीदवार जीत हासिल नहीं कर सका। जिस तरह पाकिस्तान की अवाम ने कट्टरपंथी और आतंक को समर्थन देने वाले राजनीतिक दल को सबक सिखाया है, उससे क्या कश्मीर के अलगाववादी और पत्थरबाज कुछ सीखेंगे। भारत के पर्यटन स्वर्ग कहे जाने कश्मीर को इनकी विकास विरोधी हरकतों ने मुफलिसी के कगार पर खड़ा कर दिया है।

जम्मू−कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने पिछले दिनों केंद्र की भाजपा सरकार पर पीडीपी को तोड़ने पर आतंकी पैदा होने की धमकी भरा मनगढंत बयान दिया था। क्या महबूबा भी पाकिस्तान के चुनाव परिणामों के बाद भी अपने बयान पर कायम रह सकेंगी। महबूबा का बयान जम्मू−कश्मीर में सरकार की विफलता पर पर्दा डालने से ज्यादा कुछ नहीं रहा। भाजपा कश्मीर के मुद्दे पर अन्य राज्यों की तरह सत्ता की जल्दबाजी करने में पहले ही हाथ जला चुकी है। असली सवाल तो कश्मीर में आतंकियों के बूते अलगाव के मंसूबे पाले अलगाववादी नेताओं की हालत का है। 

पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की हार के बाद कश्मीर की खूबसूरत वादियों में अलगाववाद और आतंकवाद का जहर घोल रहे पृथकतावादियों के लिए अब इस रास्ते को पकड़े रहना आसान नहीं होगा। इसके बलबूते अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने के मंसूबे कामयाब नहीं होंगे। जब पाक परस्त इनके आतंकी आकाओं की ही चुनाव में लुटिया डूब गई, तब इन चुनिंदा अलगाववादियों की क्या बिसात जो भारत से अलग होने के इरादों में कामयाब होंगे। पाकिस्तान में तहरीक की हार के बाद अब अलगाववादी कौन-सी राजनीति का रास्ता पकड़ेंगे। जिस रास्ते पर चल कर पृथक होने का वहम पाल रखा था, उसे तो पाक के मतदाताओं ने ही बंद कर दिया। 

पाकिस्तान की अवाम के समझ में आ गया कि यदि आतंकी सईद की समर्थित पार्टी का समर्थन किया तो यह परोक्ष रूप से आतंकवाद का ही समर्थन करना होगा। पिछले दो दशक से पाकिस्तान की अवाम लगातार आतंक का दंश झेल रही है। हजारों लोग घरेलू आतंकवाद में मारे जा चुके हैं। देश की अर्थव्यवस्था चौपट है। आतंकवाद से पाकिस्तान की हालत संप्रभुता को चीन और अमरीका के हाथों गिरवी रखने जैसी हो गई है। वहां के लोगों को समझ में आ गया है कि आतंकी और इनका समर्थन करने वालों के बूते देश में कभी भी सुख−शांति−समृद्धि नहीं आ सकती। 

आतंकी सरगना सईद ने मतदाताओं को बरगलाने के लिए कश्मीर का इस्तेमाल कर भारत के खिलाफ जहर उगलने में कसर बाकी नहीं रखी। इसे भी मतदाताओं ने खारिज कर दिया। आतंकी और उनकी सनकी हरकतों से बुरी तरह से त्रस्त पाकिस्तान के आम लोग कश्मीर की आड़ में की जा रही राजनीति को अब अच्छी तरह समझ गए हैं। इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान की तहरीक ए इंसाफ पर मतदाताओं ने इसलिए भरोसा जताया है कि उन्होंने नए पाकिस्तान का सपना दिखाया है। ऐसा पाकिस्तान जहां आतंकवाद और भ्रष्टाचार से मुक्त हो सके, युवाओं को रोजगार मिल सके और देश की अंदरूनी समस्याओं से निजात मिल सके। 

मतदाताओं ने पिछले बीस साल से राजनीति में संघर्षरत इमरान को पाकिस्तानी लोकतंत्र की नई पारी का कप्तान चुना है। इमरान को भी अच्छी तरह अंदाजा था कि कश्मीर मुद्दे की आड़ में चुनाव नहीं जीता जा सकता। भारत की तरह विकास का आईना दिखा कर ही मतदाताओं का समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। इमरान इस मामले में काफी हद तक मतदाताओं का विश्वास जीतने में सफल रहे। इससे पहले जितनी भी सरकारें पाकिस्तान में आई हैं, सबने कश्मीर या फिर इस्लाम की आड़ में कट्टरपंथ के नाम पर पाकिस्तान के लोगों को भावनात्मक शोषण किया है। 

कश्मीर का अलाप और कट्टरपंथियों के बरगलाने से त्रस्त हो चुकी पाकिस्तानी जनता ने दोनों ही मुद्दों को तरजीह नहीं दी। पाकिस्तान में युवा नायक को नेतृत्व सौंप दिया। सवाल यही है कि क्या इससे कश्मीर के राजनीतिक हालात में कुछ परिवर्तन आएगा। क्या अमन और विकास को दरकिनार करके कश्मीर के पत्थरबाज और पृथकतावादी अपनी सोच बदलेंगे। आतंकियों को घरों में संरक्षण देने वालों के हौसले भी पाकिस्तान की चुनावी तस्वीर के बाद हतोत्साहित होंगे। 

पाकिस्तान ने कश्मीर की आड़ में आतंकियों को पाल कर भारत का तो इतना कुछ नहीं बिगाड़ा जितना अपना घर जलाया है। आतंकियों को पालने−पोसने का परिणाम रहा कि आए दिन होने वाले आतंकी हमलों से पाकिस्तान की जनता का जीना हराम हो गया है। यह हालत कुछ ऐसी ही हो गई कि खुद के चिराग से ही आग लग गई घर को। अब इस जली हुई हालत में ही इमरान को नए घर का निर्माण करना है। कश्मीर ही नहीं दबे−छिपे तरीके से कट्टरपंथियों का समर्थन और सहानुभूति रखने वाले लोगों को पाकिस्तान के चुनाव से सीखने की जरूरत है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया और आजादी का दुरूपयोग अंततः चुनावी हार का सबब बनेगा। चाहे वह जम्मू−कश्मीर हो या पाकिस्तान के चुनाव। तरक्की और अमनपसंद जनप्रतिनिधियों के हाथों में सत्ता सौंपने से ही देश और नागरिकों का भला होगा, इसे पाक मतदाताओं ने साबित कर दिया।

-योगेन्द्र योगी

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