बच्चों की मोबाइल की जिद पूरी करते रहे तो वह मानसिक रोगी बन जाएंगे

Keep childrens away from mobile phone
डॉ. संजीव राय । May 29 2018 4:32PM

अगर आपका छोटा बच्चा मोबाइल के लिए ज़िद करता है और उसके बिना खाना नहीं खाता है तो आप के लिए ये एक चिंताजनक संकेत है। धीरे-धीरे आप अपने बच्चे को मोबाइल का व्यसनी बना रहे हैं।

अगर आपका छोटा बच्चा मोबाइल के लिए ज़िद करता है और उसके बिना खाना नहीं खाता है तो आप के लिए ये एक चिंताजनक संकेत है। धीरे-धीरे आप अपने बच्चे को मोबाइल का व्यसनी बना रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि छोटा बच्चा अगर एक स्क्रीन वाला फ़ोन एक घंटा इस्तेमाल करता है तो उसकी नींद 16 मिनट कम हो जाती है। माता-पिता को मोबाइल से होने वाले नुकसान की जानकारी कम है। बच्चों की ज़िद के आगे, मोबाइल देकर उनको चुप कराने का आसान तरीका, बाद के दिनों में एक गम्भीर समस्या बन सकता है। अभी 24 मई को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर में फ्लेयर संस्था द्वारा मोबाइल और इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग और बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। इस बैठक में यह बात भी उठी कि इन्फोर्मशन टेक्नोलॉजी के कानून, बच्चों और किशोर वय से संबन्धित कानून, भारतीय दण्ड संहिता और अंतर्राष्ट्रीय कानून की जानकारी के अभाव में बच्चे अनजाने में ही अपराधी साबित हो सकतें हैं।

मामले की गंभीरता के चलते, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मानसिक रोग विभाग में इंटरनेट व्यसन के रोगियों के लिए पिछले दो साल से एक केंद्र चलाया जा रहा है। डॉ. यतन बल्हारा इस केंद्र में ऐसे रोगियों का इलाज करते हैं जो ऑनलाइन गेम और घंटों-घंटों इंटरनेट का उपयोग करते हैं और उसके बिना रह नहीं पाते हैं। ज़्यादातर व्यसनी 15-22 साल की उम्र के बीच के आ रहे हैं। ऐसे किशोर-किशोरी, युवक-युवती धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई से और सामाजिक हकीकतों से दूर होकर, आभासी दुनिया में चले जाते हैं और अवसाद का शिकार बन जाते हैं। यहाँ तक कि बच्चे ऑनलाइन गेम के नशे में खाना, नहाना, शौच तक करने में आलस्य करने लग जाते हैं। कुछ ऐसे भी मामले आये कि स्कूल में अव्वल रहने वाले बच्चे, इंटरनेट की लत के चलते धीरे-धीरे कक्षा में फेल होने की कगार पर आ गए।

आज कल, दिल्ली-मुंबई-पटना-जयपुर-श्रीनगर-चेन्नई-बेंगलुरु-हैदराबाद जैसे शहरों में किशोर उम्र के बच्चे, दोस्तों से मिलना-जुलना, बाहर खेलना छोड़ कर घर में मोबाइल और इंटरनेट के इस्तेमाल में लगे रहते हैं। कुछ मामलों में उनकी ऑनलाइन व्यस्तता 10-15 घंटे तक होने लगी है। अगर इंटरनेट-मोबाइल से उनका साथ, औसतन एक घंटे से अधिक है तो उनके व्यवहार में उग्रता, भाषा में आक्रामकता, घर के खाने में अरुचि, अनिद्रा जैसे लक्षण देखे जा सकते हैं। आज के समय में हम बच्चों को इंटरनेट और मोबाइल से अलग नहीं कर सकते हैं क्योंकि बहुत सी जानकारी, होमवर्क और एक दूसरे से संपर्क में रहने की ज़रूरत, मोबाइल को अनिवार्य करती है। लेकिन अभिभावकों को उनकी निगरानी करने की ज़रूरत है क्योंकि स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी आसानी से सोशल मीडिया, इंटरनेट और मोबाइल के अतिशय उपयोग का शिकार हो सकते हैं और मानसिक रोगी बन सकते हैं।

तकनीकी का विकास इतनी तेजी से हो रहा है कि सामाजिक मूल्य, ताना-बाना, आपसी सम्बन्ध और संवाद सब कुछ बदल रहा है। शहरी परिवारों में आपसी संवाद और सामूहिकता की कमी देखी जा रही है क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट ने अकेले व्यक्ति को पूरी दुनिया से जुड़ने का मौका दे दिया है। मोबाइल संचालन में बच्चे, अपने अभिभावक और शिक्षकों से ज़्यादा दक्ष हैं और ये दक्षता बच्चों और अभिभावकों के लिए एक चुनौती के रूप में उभर रही है। इंटरनेट के ज़रिए, अनजान व्यक्तियों से मिलना और बाद में बलात्कार, धन उगाही का शिकार होने के कई मामले सामने आये हैं। संगीत के नाम पर अनजान व्यक्ति द्वारा भेजी गई वीडियो क्लिप्स, अश्लील वीडियो या फिर किसी आतंकवादी संगठन द्वारा प्रायोजित आपत्तिजनक सामग्री हो सकती है। हिंसा को प्रोत्साहित करने वाले ऑनलाइन गेम (ब्लू व्हेल्स, पब्ज़ी) बच्चों की दुनिया के  नए आयाम हैं और अभिभावक उनके दुष्परिणाम से वाकिफ़ नहीं हैं। ब्लू व्हेल्स जैसे गेम के चलते, बच्चों के आत्महत्या तक कर लेने की घटनाएं अपने देश में हो चुकी हैं।

अपने देश में मोबाइल का विस्तार तेजी से हुआ है और सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले भी बढ़ रहे हैं और इनसे जुड़े अपराध भी। इंटरनेट और सोशल मीडिया से सम्बन्धित कानून में अभी सुधार की आवश्यकता है लेकिन सामाजिक जागरूकता उससे भी ज्यादा ज़रूरी है। नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स और नेशनल कॉउन्सिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग जैसी संस्थाओं ने माता-पिता, स्कूल के कर्मचारियों और बच्चों की जागरूकता के लिए कुछ सामग्री तैयार की है जिसमें बताया गया है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस्तेमाल करते समय, क्या करें और क्या न करें। इन सामग्रियों को ज़यादा से ज़यादा लोगों तक पहुँचाने की ज़रूरत है जिससे बच्चों को ऑनलाइन और सोशल मीडिया के ज़रिए होने वाले नुकसान और अपराध से बचाया जा सके। माता-पिता को सजग और सतर्क रहने की ज़रूरत है, मोबाइल का सयंमित उपयोग उनको भी करना होगा और बच्चों को भी।

-डॉ. संजीव राय 

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