साक्षात्कारः तीन कानून रद्द होने पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताई बड़ी बातें

Narendra Singh Tomar

''ये सामान्य आंदोलन नहीं, बल्कि राजनीतिक आंदोलन है, इसके पीछे सियासी दलों की अप्रत्यक्ष भूमिकाएं हैं। पूरे देश को पता है आंदोलन तीन बने नए कृषि कानूनों को लेकर खड़ा हुआ था। मुख्य मांग मान ली गयी है लेकिन अब दूसरी मांगें शुरू हो गईं।''

कृषि कानूनों को रद्द करने के ऐलान के बावजूद भी सरकार और किसानों के बीच गतिरोध बरकरार है। किसान रद्द कानूनों का लिखित में सर्टिफिकेट चाहते हैं। साथ ही उनकी जो दूसरी मांगें हैं, उनका भी समाधान उनको चाहिए, जिसमें एमएसपी गारंटी कानून प्रमुख है। कुल मिलाकर यहीं से तनातनी का दूसरा शुरू भी शुरू हो गया है। हालांकि किसान अब आंदोलन करने के आदि हो गए हैं, साल भर किसानों ने डटकर प्रत्येक समस्याओं के लिए जमकर संघर्ष किया, जिसमें सात सौ किसानों ने शहादतें भी दीं। क्या दूसरी मांगों पर भी किसानों और सरकार के बीच सहमति बन पाएगी? इन्हीं सवालों को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य हिस्से-

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प्रश्न- अब पेंच कहां फंस रहा है, कानून को रद्द करने की बात तो सरकार ने कर दी है?

उत्तर- मैं तो शुरू से कहता आया हूं, ये सामान्य आंदोलन नहीं, बल्कि राजनीतिक आंदोलन है, इसके पीछे सियासी दलों की अप्रत्यक्ष भूमिकाएं हैं। पूरे देश को पता है आंदोलन तीन बने नए कृषि कानूनों को लेकर खड़ा हुआ था। मुख्य मांग मान ली गयी है लेकिन अब दूसरी मांगें शुरू हो गईं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होना चाहिए, संवैधानिक तरीके से सभी मुद्दों का हल निकलता है, दूसरे मसलों पर भी सहमति बनेगी। लेकिन अभी जिस मसले पर माहौल गर्म था, कम से कम उसे तो सुलझाना चाहिए।

प्रश्न- किसान नेता कहते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री के बातों पर भरोसा नहीं है?

उत्तर- अब मैं ऐसे लोगों के विषय में क्या बोलूं जिन्हें प्रधानमंत्री और कोर्ट की बातों पर भरोसा नहीं, तो वह किस पर भरोसा करेंगे? प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाते हुए देशवासियों से माफी मांगी है। साथ ही आगामी संसद सत्र में कानूनों को संवैधानिक ढंग से निरस्त करने का भी ऐलान किया है। ये बात उन्होंने राष्ट्र के नाम संबोधन में कही है, कोई चुनावी रैली में नहीं? प्रधानमंत्री जो कहते हैं, उसका वह निर्वाह ईमानदारी से करते हैं, औरों की भांति आज तक उन्होंने किसी तरह का कोई झूठ नहीं बोला।

प्रश्न- लोगों का तर्क है चुनावी फायदा लेने के लिए कानून रद्द किए गए?

उत्तर- हमारे लिए देश सर्वोपरि है। चुनाव तो आते-जाते रहते हैं और चुनावी अखाड़ों में हार-जीत भी लगी रहती है। पर, ऐसा कोई भी प्रधानमंत्री नहीं होगा जो अपने फायदे के लिए देश को गलत दिशा में ले जाएगा। प्रधानमंत्री की पारदर्शिता वाले विजन को किसान भाई समझ नहीं पाए, मैं दावे के साथ अब भी कहता हूं, अगर तीनों कृषि कानून लागू हो जाते तो देश की किसानी की सूरत बदल जाती। मध्यम-सीमांत किसानों को जबरदस्त फायदा होता।

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प्रश्न- एमएसपी गारंटी कानून की मांग भी लंबे समय से हो रही है?

उत्तर- देखिए, सभी मांगों पर सरकार विचार कर रही है। संवैधानिक रूप से इस मसले पर भी विचार-विमर्श होगा। मोदी सरकार ऐसी इकलौती हुकूमत है जिसमें सभी की आवाजें सुनी जा रही हैं। पुराने निष्क्रिय करीब 15 सौ कानूनों को अब तक खत्म किया जा चुका है। हम व्यवस्था में सुधार करने में लगे हैं। सर्वविदित है कि जब किसी व्यवस्था का बदलाव होता है तो उसमें तात्कालिक परेशानियां भी आती हैं। लेकिन उन परेशानियों से मुकाबला किया जाता है ना कि मुंह छिपाकर भागा जाता है। मोदी सरकार हिंदुस्तान की धूमिल हो चुकी छवि को वापस लाना चाहती है।

प्रश्न- कांग्रेस का तर्क है कि रद्द कानूनों की चुनाव बाद फिर वापसी होगी?

उत्तर- विपक्षी दलों ने शुरू से भ्रम फैलाया था, अब भी नया तरीका खोज रहे हैं। दरअसल, जनता ने विपक्षी दलों को पैदल कर दिया है, कहीं का नहीं छोड़ा, तभी वह अपनी खीझ निकाल रहे हैं। आप मुझे बताएं कि प्रधानमंत्री के किस फैसले पर उन्होंने अडंगा नहीं लगाया। जम्मू-कश्मीर के नए उदय के लिए धारा-370, आर्टिकल 35ए में भी उनको खोट नजर आया था। राम मंदिर मसले पर हमारे प्रयास में भी उनको राजनीति दिखाई दी थी। देखिए, जनता को मूर्ख बनाने वाले दलों की दुकानें मोदी जी ने बंद कर दी हैं, अपना गुस्सा वह किसी न किसी रूप में निकाल रहे हैं।

प्रश्न- कदम पीछे खींचने से क्या आगामी चुनावों में आपकी पार्टी को फायदा होगा?

उत्तर- हमने कृषि कानूनों को कभी चुनावों से जोड़ा ही नहीं? हम वैट-एंड-वॉच की स्थिति में थे। इंतजार था किसान बिलों की गंभीरता को समझेंगे, लेकिन वैसा नहीं हो पाया। विपक्षी दलों ने किसानों को अच्छी तरह से गुमराह किया है। देखना उसके दूरगामी परिणाम जल्द दिखेंगे, किसानों को नेता आज गुमराह कर रहे हैं, कल किसान उन्हीं के खिलाफ बिगुल बजाएंगे।

प्रश्न- संसद के शीत सत्र में कानूनों को रद्द करने के साथ क्या व्यापक चर्चाएं भी की जाएंगी?

उत्तर- चर्चाएँ जरूरी होंगी, कानूनों को रद्द किया ही जाएगा अब। हम चाहते हैं कि संसद का आगामी सत्र अच्छे से चले, कई महत्वपूर्ण बिल पारित होने वाले हैं। पिछले सत्र में जिन बिलों पर चर्चा नहीं हुई थी, उन पर विमर्श किया जाएगा। लेकिन मैं चाहता हूं, उससे पहले किसान आंदोलन खत्म करें, अपने घरों को जाएं। उनकी मांग पूरी हो चुकी है। उनके साथ किसी तरह की वादाखिलाफी नहीं होगी।

-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा।

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