उड़ता पंजाब तो सुना होगा लेकिन जरा उड़ता मध्य प्रदेश भी देख लीजिये
स्मैक का डोज यहां टिकिट कोड वर्ड के रूप में मिलता है, परचून की दुकानों से लेकर मेडिकल स्टोर, सरकारी भांग दुकानों सब जगह यह आसानी से उपलब्ध है। 100 से 500 रुपए के टिकिट प्रचलन में हैं।
मध्य प्रदेश के उत्तरी अंचल के पांच जिले शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, राजगढ़, और श्योपुर नशे की ऐसी गिरफ्त में समाते जा रहे हैं जहाँ से इन जिलों की सामाजिक, आर्थिक, व्यवस्था को चुनोतियाँ तो मिलनी ही है साथ ही कानून व्यवस्था के लिये भी गंभीर समस्या भविष्य में खड़ी होने जा रही है। त्रासदी का आलम यह है कि स्मैक और चरस के इस कारोबार में पुलिस महकमा भी शामिल है और पीड़ित वर्ग में 18 साल से कम आयु वर्ग के हजारों बालक हैं। हाल ही में एक 17 साल की बालिका शिवानी शर्मा की मौत स्मैक के ओवरडोज से हुई है। शिवपुरी में बाल अपचारी बालकों द्वारा तीन लोगों की हत्याएं जिला मुख्यालय पर सिर्फ इसलिए की जा चुकी हैं क्योंकि इन बालकों को नशे की लत थी और सामने वाले व्यक्तियों ने उन्हें पैसे देने से इंकार कर दिया।
हाल ही में शिवपुरी जिला मुख्यालय पर आम नागरिकों का सँगठित प्रतिरोध भी इस नशे के कारोबार के विरुद्ध मुखर हुआ है और सांसद, विधायक से लेकर तमाम नागरिक संगठन सड़कों पर उतर कर नशे के विरुद्ध लामबंद हो रहे हैं।
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शिवपुरी, गुना और राजगढ़ जिलों में अनुमान है कि करीब 10 हजार से ज्यादा बच्चे इस समय स्मैक के शिकंजे में फंस चुके हैं। अकेले शिवपुरी जिला मुख्यालय पर ही करीब 100 से ज्यादा ऐसे बालकों को चिन्हित किया गया है जिनका उपचार उनके परिजन इस लत के बाद करा रहे हैं। सामाजिक त्रासदी यह है कि अधिकतर बच्चों की उम्र 18 साल से कम या थोड़ी बहुत ही अधिक है, जाहिर है समस्या सिर्फ नशे तक नहीं है बल्कि समाज के भविष्य से भी जुड़ी है। शिवपुरी जिले में जिस बालिका की मौत स्मैक के ओवरडोज़ से होना बताई गई है उसके छह साथियों को पुलिस ने हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया है उनका जब एचआईवी परीक्षण किया गया तो सभी पोजिटि पाए गए क्योंकि ये सभी समूह में एक ही सिरिंज से स्मैक लेते थे। समझा जा सकता है कि समस्या किस बहुआयामी स्तर पर खड़ी हो रही है। जिस शिवानी शर्मा की मौत हुई है उसके शारीरिक शोषण की बात भी सामने आई है।
शिवपुरी और आसपास के जिलों में हाल ही में पुलिस ने दबाव बढ़ने के बाद करोड़ों की स्मैक, हेरोइन पकड़ी है। शिवपुरी के पुलिस कप्तान विवेक अग्रवाल की सिफारिश पर आईजी राजाबाबू सिंह ने छह पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है। इन सभी पर आरोप है कि ये नशे के कारोबारियों से जुड़े हुए हैं। सवाल यह है कि क्या अचानक मध्य प्रदेश के इन जिलों में नशे का कारोबार जम गया ? ऐसा नहीं है करीब तीन साल से इन जिलों में इस अवैध कारोबार ने जड़ें जमाईं जब कुछ आला पुलिस अफसरों ने इसे अपना संरक्षण दिया। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार आने के बाद वहां जिस बड़े पैमाने पर नशे के नेटवर्क पर सख्ती हुई उसके चलते राजस्थान पर कारोबारियों का फोकस बढ़ा जो पाकिस्तान का सीमावर्ती राज्य है। मध्य प्रदेश के ये सभी जिले राजस्थान से सटे हुए हैं और लोकव्यवहार में भी इन जिलों के लिये अंतरराज्यीय सीमा आड़े नहीं आती है।
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यही कारण है कि राजस्थान से बड़े पैमाने पर स्मैक और चरस जैसे नशीले पदार्थ मध्य प्रदेश के इन जिलों में आ रहे हैं। पुलिस के कुछ आला अफसर जो कुछ समय पूर्व तक इन जिलों में बड़े जिम्मेदार पदों पर रहे उन्होंने न केवल इस अवैध कारोबार से आंखें फेर रखी थीं बल्कि इन गतिविधियों के एवज में बड़ा धन भी कमाया। ऐसा नहीं कि सरकार में बैठे शीर्ष लोगों को जानकारी नहीं थी लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों के नेता मुँह में दही जमाकर बैठे रहे। नतीजतन आज हालात इतने खराब हो चुके हैं हर परिवार अपने बच्चों को सशंकित भाव से देखने को विवश है।
शिवपुरी, गुना बाल कल्याण समितियों के आंकड़े बड़े ही चौकाने वाले हैं। समिति की सदस्य श्रीमती सरला वर्मा के अनुसार दोनों जिलों में बहुत ही भयानक हालात हैं न केवल एलीट क्लास बल्कि मजदूरी करने वाले कचरा पन्नी बीनने वाले परिवारों के बच्चे भी इस नशे की जद में आ चुके हैं। श्रीमती वर्मा बताती हैं कि करीब 100 से ज्यादा बच्चों की काउंसलिंग समिति के आगे कर चुकी हूं। समझा जा सकता है कि समस्या किस व्यापक स्तर पर भविष्य के लिये खड़ी होने जा रही है। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड से जुड़े रहे बाल अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार रंजीत गुप्ता के अनुसार अंचल में बहुत ही त्रासदपूर्ण हालत हैं। पुलिस ने पहले तो इस कारोबार को खुद ही जमने दिया और बाद में बड़ी संख्या में खुद पुलिस कर्मी इस कारोबार में उतर आए। समस्या उन बच्चों को लेकर बढ़ी है जो बहुत ही गरीब घरों से हैं और मजदूरी या भीख मांग कर जी रहे हैं। सर्वाधिक संख्या इसी तबके की है जो स्मैक का आदी हो चुका है। अंचल की कानून व्यवस्था के लिये ये बच्चे खतरा बनेंगे ही और बाल सरंक्षण की हमारी संसदीय वचनबद्धता के लिये भी यह स्थिति बेहद शर्मनाक है।
समाजसेवी औऱ चिकित्सक डॉ. गोविंद सिंह के अनुसार मध्य प्रदेश के इस उत्तरी अंचल में स्मैक के कारोबार ने दबे पांव एड्स की जमीन भी निर्मित कर दी है क्योंकि स्मैक के पाउडर को एविल इंजेक्शन के साथ घोलकर सिरिंज से लिया जाता है और जागरूकता के अभाव में बच्चे एक ही सिरिंज से स्मैक का डोज लेकर इस बीमारी को आमंत्रित कर रहे हैं। शिवानी की मौत के बाद आरोपी बनाए गए शिवपुरी के 6 युवक युवतियों में एचआईवी पॉजिटिव इसीलिए पाया गया कि वे सभी एक या दो सिरिंज से ही स्मैक लेते थे। जाहिर है हजारों की संख्या में ऐसे मामले सामने आ सकते हैं जब ऐसे बच्चों का चिकित्सकीय परीक्षण किया जाएगा। तब ये आंकड़े हमें शर्म से सिर झुकाने के लिये पर्याप्त होंगे।
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इस इलाके में यह नशा राजस्थान से आ रहा है। एक सुगठित रैकेट इसे इस सुनियोजित तरीके से संचालित कर रहा है कि गांव-गांव तक इसके तलबगार पैदा हो गए हैं। कुछ सम्पन्न परिवार तो जानते हुए भी मजबूर हैं, वे खुद नियमित पैसा इन्हें देते है ताकि बाहर जाकर बदनामी भरे कामों से बच्चे को बचाया जा सके। स्मैक का डोज यहां टिकिट कोड वर्ड के रूप में मिलता है, परचून की दुकानों से लेकर मेडिकल स्टोर, सरकारी भांग दुकानों सब जगह यह आसानी से उपलब्ध है। 100 से 500 रुपए के टिकिट प्रचलन में हैं। मेडिकल स्टोर्स पर भी टिकिट के साथ पूरी किट जिसमें एविल का इंजेक्शन निडिल सब उपलब्ध रहती है। अकेले गुना और शिवपुरी जिले में एविल इंजेक्शन की खपत इंदौर, भोपाल जैसे बड़े शहरों से ज्यादा बताई गई है क्योंकि इसी के साथ स्मैक को घोल कर शरीर में इंजेक्शन के साथ लिया जा रहा है।
हाल ही में वैकल्पिक रूप से शिवपुरी के पुलिस कप्तान के रूप में पदस्थ किये गए विवेक अग्रवाल की छानबीन में पता चला है कि तमाम पुलिसकर्मियों की बातचीत स्मैक का नशा करने वाले और मृतका शिवानी के साथ होती थी। इनमें से 6 पुलिसकर्मियों को अभी निलंबित किया गया है। अगर इन सभी प्रभावित जिलों में इसी तर्ज पर गोपनीय जांच सरकार के स्तर पर हो तो इस नेटवर्किंग को ध्वस्त करने में काफी मदद मिल सकती है क्योंकि यह भी तथ्य है कि बगैर पुलिस संरक्षण के कोई भी अवैध कारोबार हिंदुस्तान में सम्भव नहीं है। अगर वाकई मध्य प्रदेश में सरकार में बैठे लोग अपने ही सहोदरों के लिये चिंतित हैं तो उन्हें इन सभी जिलों में तत्काल बड़ी कारवाई बगैर दबाव के सुनिश्चित करनी पड़ेगी। विवेक अग्रवाल जैसे नए आईपीएस अफसरों को फ्री हैंड देकर जिलों में काम कराना होगा नहीं तो आने वाले समय में मध्य प्रदेश का यह उत्तरी अंचल पंजाब की तरह उड़ता नजर आएगा। तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और सत्ता के शिखर पर बैठे लोग सिर्फ मातमपुर्सी के लायक ही रह पाएंगे। बताना होगा कि यह प्रभावित जिले मध्य प्रदेश की सियासत के सबसे ताकतवर लोगों के इलाके में आते हैं।
-डॉ. अजय खेमरिया
(लेखक जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के अधीन गठित चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष हैं)
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