मीडिया का काम सरकार का गुणगान करते रहना नहीं है

फ़िरदौस ख़ान । Jun 10 2017 1:10PM

यह बात समझनी होगी कि मीडिया का काम ’सरकार’ या ’वर्ग’ विशेष का गुणगान करना नहीं है। जहां सरकार सही है, वहां सरकार की सराहना की जानी चाहिए। मीडिया को जनता की आवाज़ बनना चाहिए, न कि सरकार का भोंपू।

ख़बरों और विचारों को जन मानस तक पहुंचाना ही पत्रकारिता है। किसी ज़माने में मुनादी के ज़रिये हुकमरान अपनी बात अवाम तक पहुंचाते थे। लोकगीतों के ज़रिये भी हुकुमत के फ़ैसलों की ख़बरें अवाम तक पहुंचाई जाती थीं। वक़्त के साथ-साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान के तरीक़ों में भी बदलाव आया। पहले जो काम मुनादी के ज़रिये हुआ करते थे, अब उन्हें अख़बार, पत्रिकाएं, रेडियो, दूरदर्शन और वेब साइट्स अंजाम दे रही हैं। पत्रकारिता का मक़सद जनमानस को न सिर्फ़ नित नई सूचनाओं से अवगत कराना है, बल्कि देश-दुनिया में घट रही घटनाओं से उन पर क्या असर होगा, यह बताना भी है। 

आज का अख़बार कल का साहित्य है, इतिहास है। अख़बार दुनिया और समाज का आईना हैं। देश-दुनिया में में जो घट रहा है, वह सब सूचना माध्यमों के ज़रिये जन-जन तक पहुंच रहा है। आज के अख़बार-पत्रिकाएं भविष्य में महत्वपूर्ण दस्तावेज़ साहिब होंगे, क्योंकि इनके ज़रिये ही आने वाली पीढ़ियां आज के हालात के बारे में जान पाएंगी। इसके ज़रिये ही लोगों को समाज की उस सच्चाई का पता चलता है, जिसका अनुभव उसे ख़ुद नहीं हुआ है। साथ ही उस समाज की संस्कृति और सभ्यता का भी पता चलता है। पत्रकारिता सरकार और जनता के बीच सेतु का काम करती है। अख़बारों के ज़रिये अवाम को सरकार की नीतियों और उसके कार्यों का पता चलता है। ठीक इसी तरह अख़बार जनमानस की बुनियादी ज़रूरतों, समस्याओं और उनकी आवाज़ को सरकार तक पहुंचाने का काम करते हैं। 

आज राष्ट्रवादी पत्रकारिता की बात हो रही है। पत्रकारिता तो होती ही राष्ट्रवादी है। ऐसे में राष्ट्रवादी पत्रकारिता की बात समझ से परे है। हालांकि पत्रकारिता की शुरुआत सूचना देने से हुई थी, लेकिन बदलते वक़्त के साथ इसका दायरा बढ़ता गया। इसमें विचार भी शामिल हो गए। पत्रकारिता के इतिहास पर नज़र डालें, तो ये बात साफ़ हो जाती है। माना जाता है कि पत्रकारिता 131 ईस्वीं पूर्व रोम में शुरू हुई। उस वक़्त Acta Diurna नामक दैनिक अख़बार शुरू किया गया। इसमें उस दिन होने वाली घटनाओं का लेखा-जोखा होता था। ख़ास बात यह थी कि यह अख़बार काग़ज़ का न होकर पत्थर या धातु की पट्टी का था। इस पर उस दिन की ख़ास ख़बरें अंकित होती थीं। इन पट्टियों को शहर की ख़ास जगहों पर रखा जाता था, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इन्हें पढ़ सकें। इनके ज़रिये लोगों को आला अफ़सरों की तैनाती, शासन के फ़ैसलों और दूसरी ख़ास ख़बरों की जानकारी मिलती थी। फिर मध्यकाल में यूरोप के कारोबारी केंद्र सूचना-पत्र निकालने लगे, जिनमें कारोबार से जुड़ी ख़बरें होती थीं। इनके ज़रिये व्यापारियों को वस्तुओं, ख़रीद-बिक्री और मुद्रा की क़ीमत में उतार-चढ़ाव की ख़बरें मिल जाती थीं। ये सूचना-पत्र हाथ से लिखे जाते थे। पंद्रहवीं सदी के बीच 1439 में जर्मन के मेंज में रहने वाले योहन गूटनबर्ग ने छपाई मशीन का आविष्कार किया। उन्होंने धातु के अक्षरों का आविष्कार किया। इसके ज़रिये छपाई का काम आसान हो गया। सोलहवीं सदी के आख़िर तक यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में सूचना-पत्र मशीन से छपने लगे। उस वक़्त यह काम योहन कारोलूस नाम के एक कारोबारी ने शुरू किया। उसने 1605 में ‘रिलेशन’ नामक समाचार-पत्र का प्रकाशन शुरू किया, जो दुनिया का पहला मुद्रित समाचार-पत्र माना जाता है।

भारत में साल 1674 में छपाई मशीन आई। लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। देश का पहला अख़बार शुरू होने में सौ साल से ज़्यादा का वक़्त लगा, यानी साल 1776 में अख़बार का प्रकाशन शुरू हो सका। ईस्ट इंडिया कंपनी के पूर्व अधिकारी विलियम वोल्ट्स ने अंग्रेज़ी भाषा के अख़बार का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें कंपनी और सरकार की ख़बरें होती थीं। यह एक तरह का सूचना-पत्र थी, जिसमें विचार नहीं थे। इसके बाद साल 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गज़ट’ नाम का अख़बार शुरू किया, जिसमें ख़बरों के साथ विचार भी थे। हक़ीक़त में यही देश का सबसे पहला अख़बार था। इस अख़बार में ईस्ट इंडिया कंपनी के आला अफ़सरों की ज़िन्दगी पर आधारित लेख प्रकाशित होते थे। मगर जब अख़बार ने गवर्नर की पत्नी के बारे में टिप्पणी की, तो अख़बार के संपादक जेम्स ऑगस्टस हिक्की को चार महीने की क़ैद और 500 रुपये का जुर्माने की सज़ा भुगतनी पड़ी। सज़ा के बावजूद जेम्स ऑगस्टस हिक्की हुकूमत के आगे झुके नहीं और बदस्तूर लिखते रहे। गवर्नर और सर्वोच्च न्यायाधीश की आलोचना करने पर उन्हें एक साल की क़ैद और पांच हज़ार रुपये जुर्माने की सज़ा दी गई। नतीजतन, अख़बार बंद हो गया। साल 1790 के बाद देश में अंग्रेज़ी भाषा के कई अख़बार शुरू हुए, जिनमें से ज़्यादातर सरकार का गुणगान ही करते थे। मगर इनकी उम्र ज़्यादा नहीं थी। रफ़्ता-रफ़्ता ये बंद हो गए। 

साल 1818 में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने ’कलकत्ता जनरल’ का प्रकाशन किया। इसमें जनता की ज़रूरत को ध्यान में रखकर प्रकाशन सामग्री प्रकाशित की जाती थी। आधुनिक पत्रकारिता का यह रूप जेम्स सिल्क बर्किघम का ही दिया हुआ है। ग़ौरतलब है कि पहला भारतीय अंग्रेज़ी अख़बार साल 1816 में कलकत्ता में गंगाधर भट्टाचार्य ने शुरू किया। 'बंगाल गज़ट' नाम का यह अख़बार साप्ताहिक था। साल 1818 में बंगाली भाषा में 'दिग्दर्शन' मासिक पत्रिका और साप्ताहिक समाचार पत्र 'समाचार दर्पण’ का प्रकाशन शुरू हुआ। साल 1821 में राजा राममोहन राय ने बंगाली भाषा का अख़बार शुरू किया, जिसका नाम था- संवाद कौमुदी’ यानी बुद्धि का चांद। भारतीय भाषा का यह पहला समाचार-पत्र था। उन्होंने साल 1822 में 'समाचार चंद्रिका' भी शुरू की। उन्होंने साल 1822 में फ़ारसी भाषा में 'मिरातुल' अख़बार और अंग्रेज़ी भाषा में 'ब्राह्मनिकल मैगज़ीन' का प्रकाशन शुरू किया। साल 1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक ‘मुंबईना समाचार’ प्रकाशन शुरू हुआ, जो आज भी छप रहा है। यह भारतीय भाषा का सबसे पुराना अख़बार है।

हिन्दी भाषा का पहला अख़बार ‘उदंत मार्तंड’ साल 1826 में शुरू हुआ, लेकिन माली हालत ठीक न होने की वजह से यह बंद हो गया। साल 1830 में राजा राममोहन राय ने बंगाली भाषा में 'बंगदूत' का प्रकाशन शुरू किया। साल 1831 में मुंबई में गुजराती भाषा में 'जामे जमशेद' और 1851 में 'रास्त गोफ़्तार' और 'अख़बारे-सौदागार' का प्रकाशन शुरू हुआ। साल 1846 में राजा शिव प्रसाद ने हिंदी पत्र ‘बनारस अख़बार’ शुरू किया। साल 1868 में भरतेंदु हरिशचंद्र ने साहित्यिक पत्रिका ‘कविवच सुधा’ शुरू की। साल 1854 में हिंदी का पहला दैनिक ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन शुरू हुआ। साल 1868 में मोतीलाल घोष ने आनंद बाज़ार पत्रिका निकाली। इनके अलावा इस दौरान बंगवासी, संजीवनी, हिन्दू, केसरी, बंगाली, भारत मित्र, हिन्दुस्तान, हिन्द-ए-स्थान, बम्बई दर्पण, कविवचन सुधा, हरिश्चन्द्र मैगजीन, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, ज्ञान प्रदायिनी, हिन्दी प्रदीप, इंडियन रिव्यू, मॉडर्न रिव्यू, इनडिपेंडेस, द ट्रिब्यून, आज, हिन्दुस्तान टाइम्स, प्रताप पत्र, गदर, हिन्दू पैट्रियाट, मद्रास स्टैंडर्ड, कॉमन वील, न्यू इंडिया और सोशलिस्ट आदि अख़बारों का प्रकाशन शुरू हुआ। महात्मा गांधी ने यंग इंडिया, नव जीवन और हरिजन अख़बार शुरू किए। जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड और अबुल कलाम आज़ाद ने अल बिलाग का प्रकशन शुरू किया। मौलाना मुहम्मद अली ने कामरेड और हमदर्द नाम से अख़बार निकाले। 

इन अख़बारों ने अवाम को ख़बरें देने के साथ-साथ सामाजिक उत्थान के लिए काम किया। अख़बारों के ज़रिये समाज में फैली कुरीतियों के प्रति जनमानस को जागरूक करने की कोशिश की गई। देश को आज़ाद कराने में भी इन अख़बारों ने अपना अहम किरदान अदा किया। शुरू से आज तक अख़बार समाज और जीवन के हर क्षेत्र में अपना दात्यित बख़ूबी निभाते आए हैं। विभिन्न संस्कृतियों और अलग-अलग धर्मों वाले इस देश में अख़बार सबको एकता के सूत्र में पिरोये हुए हैं। गंगा-जमुनी तहज़ीब को बढ़ावा देने में अख़बार भी आगे रहे हैं। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह स्तंभ बाक़ी तीन स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्‍यायपालिका की कार्यशैली पर भी नज़र रखता है। 

अफ़सोस की बात यह है कि जिस तरह पिछले चंद सालों में कुछ मीडिया घरानों ने पत्रकारिता के तमाम क़ायदों को ताख़ पर रखकर ’कारोबारी’ राह अपना ली है, उससे मीडिया के प्रति जनमानस का भरोसा कम हुआ है। ऐसा नहीं है कि सभी अख़बार या ख़बरिया चैनल बिकाऊ हैं। कुछ अपवाद भी हैं। जिस देश का मीडिया बिकाऊ होगा, उस देश के लोगों की ज़िन्दगी आसान नहीं होगी। पिछले कई साल से देश में अराजकता का माहौल बढ़ा है। जिस तरह से सरेआम लोगों पर हमला करके उनकी हत्याएं की जा रही हैं, अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाले दलितों, किसानों पर गोलियां बरसाई जा रही हैं, ऐसे में मीडिया की ख़ामोशी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है। 

यह बात समझनी होगी कि मीडिया का काम ’सरकार’ या ’वर्ग’ विशेष का गुणगान करना नहीं है। जहां सरकार सही है, वहां सरकार की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन जब सत्ताधारी लोग तानाशाही रवैया अपनाते हुए जनता पर क़हर बरपाने लगें, तो उसका पुरज़ोर विरोध होना ही चाहिए। मीडिया को जनता की आवाज़ बनना चाहिए, न कि सरकार का भोंपू।

फ़िरदौस ख़ान

(लेखिका स्टार न्यूज़ एजेंसी में संपादक हैं)

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