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लापरवाही बरतने का परिणाम है देश में कोरोना की नयी लहर का उभरना
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
- फरवरी 23, 2021 13:39
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इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने सब कुछ थाम के रख दिया। उद्योग धंधों से लेकर सभी तरह की गतिविधियां ठप्प हो गई। यही कारण है कि एक ओर तेजी से उद्योग धंधों को पटरी पर लाया जा रहा है तो लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेजी हो रही है।
कोरोना वैक्सीन के आते ही जिस तरह से देश में लापरवाही का दौर चला है उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। आज देश के चार राज्यों में कोरोना की वापसी के जो संकेत मिल रहे हैं वह बेहद चिंताजनक होने के साथ ही गंभीर भी हैं। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने त्वरित कदम उठाते हुए अमरावती, अकोला, बुलढ़ाना, वासिम और यवतमाल में सात दिनों के लिए लॉकडाउन लगा दिया है वहीं पुणे-नासिक में रात्रि कालीन कर्फ्यू लगाकर सख्ती कर दी है। इसके साथ ही शादी-विवाह, रैली, धार्मिक आयोजनों, सामाजिक सभाओं पर सख्ती के साथ ही स्कूल-कालेज भी फरवरी तक बंद करने के आदेश दे दिए हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिस तरह से महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को आगाह किया है उससे कोरोना की वापसी के मिल रहे संकेतों की गंभीरता को समझा जा सकता है। हालांकि इन राज्यों की सरकारें सचेत तो होने लगी हैं पर सख्ती करने में देरी किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए।
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दरअसल ज्यों ज्यों कोरोना के मामले कम आने के समाचार मिलने लगे त्यों त्यों ही कोरोना के प्रति लापरवाही में भी तेजी से इजाफा देखने को मिलने लगा है। कोरोना के खिलाफ सारा करा धरा लापरवाही की भेंट चढ़ता जा रहा है। बड़े-बड़े आयोजन हो रहे हैं तो बाजार में सामान्य आवाजाही होने लगी है। उद्योग धंधे पटरी पर आने लगे हैं तो जनजीवन भी सामान्य होने लगा है। ऐसे में यदि कोई चीज छूटी है तो वह है कोरोना स्वास्थ्य प्रोटोकाल। देश के किसी भी कोने के किसी भी आयोजन को देख लीजिए चाहे बाजारों की स्थिति, बसों में आवाजाही या पैदल जाते हुए नागरिक। सब्जी की दुकान हो या फिर मॉल्स इनमें से अधिकांश स्थानों पर बहुतायत में लोगों को बिना मास्क के देखा जा सकता है तो दो गज दूरी की बात करना तो बेमानी ही होगा। कोरोना संक्रमण के दौर में एक माहौल बना था और सेनेटाइजर व मास्क घर घर की जरूरत बन गया था। आज हम इनके प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं। डर नाम की बात तो देखने को ही नहीं मिल रही। कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन में जिस तरह से स्थिति को सामान्य करने के प्रयास किए गए उसी तरह से कोरोना प्रोटोकाल की अवहेलना भी आम होती गई है। आखिर हमारी मानसिकता डंडे के डर से ही कानून की पालना करने की आखिर क्यों हो गई है? जिस तरह से यातायात नियमों की पालना ट्रैफिक पुलिस वाले को देखकर चालान होने के डर से होती है, ठीक उसी तरह से कोरोना प्रोटोकाल की पालना हो रही है। पुलिस वाला दिखाई देगा तो मास्क पहन लेंगे, नहीं तो जेब में पड़ा रहेगा तो दूसरी ओर सार्वजनिक या आम आवाजाही वाले स्थानों पर थर्मल स्कैनिंग, ऑक्सीमीटर से चैकिंग, सेनेटाइजर की उपलब्धता, दो गज दूरी की पालना आदि तो अब नहीं के बराबर हो रही है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना ने सब कुछ थाम के रख दिया। उद्योग धंधों से लेकर सभी तरह की गतिविधियां ठप्प हो गई। यही कारण है कि एक ओर तेजी से उद्योग धंधों को पटरी पर लाया जा रहा है तो लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयासों में तेजी हो रही है। अब लोग रोजगार व धंधे के प्रति गंभीर हुए हैं और जन-जीवन सामान्य होते जा रहे हैं। पर इसके साथ ही जो असामान्य हो रहा है वह है सुरक्षा मानकों की अवहेलना। जब यह साफ हो गया कि सावधानी ही सुरक्षा है यानी कि मास्क और दो गज की दूरी तो कम से कम जरूरी है तो इसकी पालना तो हमें करनी ही होगी। हालांकि अब स्टे होम स्टे सेफ की बात करना तो बेमानी होगा पर फिर भी हमें सामान्य स्वास्थ्य सुरक्षा मानकों की पालना तो करनी ही होगी।
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कोरोना के दूसरे दौर को देखते हुए समय रहते कदम उठाए जाते हैं तो हालात काबू में रह सकते हैं। अब कुंभ महापर्व आने वाला है तो सामाजिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं। स्कूल कालेज व कोचिंग संस्थान खुलने लगे हैं। पर तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि बड़ी-बड़ी रैलियां निकलना और सभाएं होना आम होता जा रहा है। राज्यों में स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के चुनाव चल रहे हैं तो विधान सभाओं के बजट सत्रों के कारण धरने प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो रहा है। आंदोलन के कारण जो हालात बन रहे हैं वह सामने हैं। ऐसे में धरने प्रदर्शनों पर भी सख्ती से कोरोना प्रोटोकाल को लागू कराना होगा। कोरोना प्रोटोकाल की पालना नहीं करने पर सजा व दण्ड के प्रावधान हैं। पर कोरोना की भयावहता को देखने के बाद भी यदि हम गंभीर नहीं होते हैं तो हमें सभ्य कहलाने का अधिकार नहीं हो सकता। सवाल सभ्य होने या नहीं होने का नहीं अपितु हमारे गंभीर होने का है। कोरोना चेन की तरह कड़ी से कड़ी जोड़ता आगे बढ़ता है और एक से दूसरे को अपने लपेटे में ले लेता है। ऐसे में हमारी समझदारी ही इससे बचने और बचाने का उपाय हो सकती है। आखिर डंडे के भय या लॉकडाउन जैसे कठोर निर्णयों के स्थान पर हमें हमारे छोटे से दायित्व और सजगता केवल मास्क पहनने और दो गज की दूरी की पालना से ही कोरोना की चेन को तोड़ सकते हैं तो फिर हमें ऐसा करने में शर्म किस बात की है। सरकार को भी सार्वजनिक आयोजनों पर चाहे व धरना प्रदर्शन हों या सामाजिक धार्मिक आयोजन, सख्ती से पेश आना चाहिए क्योंकि आज की पहली आवश्यकता कोरोना के दूसरे दौर से बचाने की है। यदि हम अपने आप पर अंकुश लगा सकते हैं या अपने आप साधारण-सी पालना करने का संकल्प लेकर पालना करते हैं तो स्वयं के साथ ही दूसरों को भी बचा सकते हैं। हमें कोरोना की भयावहता को नहीं भूलना चाहिए। कोरोना को जिन्होंने भुगता है और जिन्होंने अपनों को खोया है वे इसका दर्द जानते हैं। ऐसे में सतर्कता ही एकमात्र उपाय है और उसकी पालना का हमें संकल्प लेना होगा।
-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा
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- प्रहलाद सबनानी
- फरवरी 27, 2021 14:42
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भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 5 फ़रवरी 2021 को घोषित की गई मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था।
मुद्रास्फीति का तेज़ी से बढ़ना, समाज के हर वर्ग, विशेष रूप से समाज के ग़रीब एवं निचले तबके तथा मध्यम वर्ग के लोगों को आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक विपरीत रूप में प्रभावित करता है। क्योंकि, इस वर्ग की आय, जोकि एक निश्चित सीमा में ही रहती है, का एक बहुत बड़ा भाग उनके खान-पान पर ही ख़र्च हो जाता है और यदि मुद्रास्फीति की बढ़ती दर तेज़ बनी रहे तो इस वर्ग के खान-पान पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने लगता है। अतः, मुद्रास्फीति की दर को क़ाबू में रखना देश की सरकार का प्रमुख कर्तव्य है।
सामान्य बोलचाल की भाषा में, मुद्रास्फीति से आश्य वस्तुओं की क़ीमतों में हो रही वृद्धि से है। इसे कई तरह से आंका जाता है जैसे- थोक मूल्य सूचकांक आधारित; उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित; खाद्य पदार्थ आधारित; ग्रामीण श्रमिक की मज़दूरी आधारित; ईंधन की क़ीमत आधारित; आदि। मुद्रास्फीति का आश्य मुद्रा की क्रय शक्ति में कमी होने से भी है, जिससे वस्तुओं के दामों में वृद्धि महसूस की जाती है।
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मुद्रास्फीति की तेज़ बढ़ती दर, दीर्घकाल में देश के आर्थिक विकास की दर को भी धीमा कर देती है। इसी कारण से कई देशों में मौद्रिक नीति का मुख्य ध्येय ही मुद्रास्फीति लक्ष्य पर आधारित कर दिया गया है।
मुद्रास्फीति लक्ष्य की शुरुआत सबसे पहले 1990 के दशक में न्यूज़ीलैंड (1990), कनाडा (फ़रवरी 1991) एवं इंग्लैंड (अक्टोबर 1992) में हुई थी। इस नीति के अन्तर्गत केंद्र सरकार द्वारा, देश के केंद्रीय बैंक को यह अधिकार दिया जाता है कि देश में मुद्रास्फीति की दर को एक निर्धारित स्तर पर बनाए रखने हेतु मौद्रिक नीति के माध्यम से आवश्यक क़दम उठाए जाएं। अतः मुद्रास्फीति की दर को इस निर्धारित स्तर पर बनाए रखने की ज़िम्मेदारी देश के केंद्रीय बैंक की होती है।
वर्ष 2014 में केंद्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के आने के बाद, देश की जनता को उच्च मुद्रास्फीति की दर से निजात दिलाने के उद्देश्य से, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिज़र्व बैंक ने दिनांक 20 फ़रवरी 2015 को एक मौद्रिक नीति ढांचा करार पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अंतर्गत यह तय किया गया था कि देश में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर को जनवरी 2016 तक 6 प्रतिशत के नीचे तथा इसके बाद 4 प्रतिशत के नीचे (+/- 2 प्रतिशत के उतार चड़ाव के साथ) रखा जाएगा। उक्त समझौते के पूर्व, देश में मुद्रास्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 10 प्रतिशत बनी हुई थी। उक्त समझौते के लागू होने के बाद से देश में, मुद्रास्फीति की वार्षिक औसत दर लगभग 4/5 प्रतिशत के आसपास आ गई है। जिसके लिए केंद्र सरकार एवं भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रशंसा की जानी चाहिए। अब तो मुद्रास्फीति लक्ष्य की नीति को विश्व के 30 से अधिक देश लागू कर चुके हैं।
उक्त क़रार पर हस्ताक्षर करने के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक सामान्यतः उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर के 6 प्रतिशत (टॉलरन्स रेट) के पास आते ही रेपो रेट (ब्याज दर) में वृद्धि के बारे में सोचना शुरू कर देता हैं क्योंकि इससे आम नागरिकों के हाथों में मुद्रा कम होने लगती है एवं उत्पादों की मांग कम होने से महंगाई पर अंकुश लगने लगता है। इसके ठीक विपरीत यदि देश में महंगाई दर नियंत्रण में बनी रहती है तो भारतीय रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कमी करने लगता है ताकि आम नागरिकों के हाथों में मुद्रा की उपलब्धता बढ़े एवं देश के आर्थिक को बल मिल सके। परंतु, देश में यदि मुद्रास्फीति सब्ज़ियों, फलों, आयातित तेल आदि के दामों में बढ़ोतरी के कारण बढ़ती है तो रेपो रेट बढ़ाने का कोई फ़ायदा भी नहीं होता है क्योंकि रेपो रेट बढ़ने का इन कारणों से बढ़ी क़ीमतों को कम करने पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः यदि देश में मुद्रास्फीति उक्त कारणों से बढ़ रही है तो रेपो रेट को बढ़ाने की कोई ज़रूरत भी नहीं होना चाहिए। इस प्रकार देश में मुद्रास्फीति की दर को भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में बदलाव कर नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।
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भारतीय रिजर्व बैंक ने दिनांक 5 फ़रवरी 2021 को घोषित की गई मौद्रिक नीति में लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने रुख को नरम रखा है। दिसंबर 2020 में भी आरबीआई ने नीतिगत दरों को यथावत रखा था। मार्च और मई 2020 में रेपो रेट में लगातार दो बार कटौती की गई थी। भारतीय रिजर्व बैंक के इस एलान के बाद रेपो रेट 4 फीसदी और रिवर्स रेपो रेट 3.35 फीसदी पर बनी रहेगी। रेपो रेट वह दर है, जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को ऋण प्रदान करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मौद्रिक नीति का ऐलान करते हुए कहा है कि मौद्रिक नीति समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट को बरकरार रखने का फैसला किया है क्योंकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर के 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे रहने की सम्भावना है। वित्त वर्ष 2021-22 का बजट पेश होने के बाद यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित की गई पहली मौद्रिक नीति है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने हालांकि फरवरी 2020 से अब तक, महंगाई दर के नियंत्रण में रहने के चलते रेपो रेट में 1.15 फीसदी की कटौती की है। साथ ही, चालू वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही जनवरी-मार्च 2021 में खुदरा महंगाई दर का लक्ष्य संशोधित कर 5.2 प्रतिशत कर दिया है और अप्रेल-सितम्बर 2021 में यह 5 से 5.2 प्रतिशत के बीच रह सकता है तथा वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान यह 4.3 प्रतिशत तक नीचे रहने की सम्भावना व्यक्त की गई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई की दर जून 2020 में 6 प्रतिशत से भी अधिक हो गई थी एवं नवम्बर 2020 में 6.9 प्रतिशत के स्तर को छूते हुए दिसम्बर 2020 में घटकर 4.6 प्रतिशत तक नीचे आ गई है।
इस प्रकार इस मौद्रिक नीति में यह भी बताया गया है कि महंगाई दर में कमी आई है और आगे आने वाले समय में इसके 6 प्रतिशत के सह्यता स्तर (टॉलरेंस लेवल) से नीचे बने रहने की प्रबल सम्भावनाएं नज़र आ रही हैं क्योंकि खरीफ एवं रबी के मौसम में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी होने जा रही है। हां, हाल ही के समय में पेट्रोल की क़ीमतों एवं सब्ज़ियों की क़ीमतों पर ज़रूर कुछ दबाव देखने में आ रहा है। फिर भी, चूंकि इंडेक्स में शामिल अन्य वस्तुओं की क़ीमतों पर अंकुश बना रह सकता है अतः कुल मिलाकर देश में आगे आने वाले समय में भी मुद्रा स्फीति के नियंत्रण में बने रहने की सम्भावनाएं व्यक्त की जा रही हैं, जो केंद्र सरकार की नीतियों की सफलता ही कहा जाना चाहिए।
-प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
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- प्रहलाद सबनानी
- फरवरी 27, 2021 11:27
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संत श्री रविदास जी महाराज ने बचपन से ही साधु संतो की संगति में पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। वे जूते बनाने का काम किया करते थे और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर विशेष ध्यान देते थे।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”, ये कहावत आपने जरूर सुनी होगी। क्या आप जानते हैं ये कहां से आई, इसके पीछे एक दिलचस्प घटना है, जिसका संबंध मिलजुल कर रहने, भेदभाव मिटाने और सबके भले की सीख देने वाले सामाजिक समरसता के महान संत शिरोमणी श्री रविदास जी महाराज से है। प्रति वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी महाराज की जयंती मनाई जाती है। आपका जन्म सम्वत् 1433 में माघ पूर्णिमा रविवार के दिन वाराणसी के पास गोवरधनपुर गांव में हुआ था। इस स्थान को आज श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है। आपके माता का नाम श्रीमती कलसा माता एवं पिता का नाम श्री संतोखदासजी था।
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संत श्री रविदास जी महाराज ने बचपन से ही साधु संतो की संगति में पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया। वे जूते बनाने का काम किया करते थे और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर विशेष ध्यान देते थे। संत श्री रामानन्द जी महाराज के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत श्री रविदास जी महाराज ने स्वामी श्री रामानन्द जी महाराज को, श्री कबीर साहब जी के कहने पर, अपना गुरु बनाया था, जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु श्री कबीर साहब जी ही थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृत्ती तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग उनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही संत श्री रविदास जी महाराज बहुत परोपकारी तथा दयालू थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-संतों की सहायता करने में उनको विशेष आनंद मिलता था। वे उन्हें प्रायः मूल्य लिए बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके इस स्वभाव के कारण उनके माता-पिता अक्सर उनसे अप्रसन्न रहते थे।
संत श्री रविदास जी महाराज भारत के उन चुनिंदा महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने अपने वचनों से सारे संसार की एकता और समरसता पर ज़ोर दिया। असमानता की भावना और समाज में जाति पंथ और सम्प्रदाय की मुश्किल परिस्थितियों में अपने अनुयायियों को और समाज बंधुओं को हिन्दू बनाए रखना उनके लिए बड़ी चुनौती थी। वह भारत में इस्लाम के आक्रमण का काल था साथ ही हिन्दू समाज को प्रताड़ित करने का भी वह कालखंड था ऐसे समय में महान संत श्री रामानन्द जी महाराज की प्रेरणा व आशीर्वाद प्राप्त कर समाज में समरसता की बहार लाने का काम संत श्री रविदास जी महाराज ने बख़ूबी किया। आपने समाज में फैली कुरीतियों जैसे जात-पात के अंत के लिए जीवन भर काम किया। संत श्री रविदास जी महाराज की अनूप महिमा को देख कई राजा और रानियां आपकी शरण में आकर भक्ति मार्ग से जुड़े। संत श्री रविदास जी महाराज के भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ते हुए निर्गुण धारा के उपासक होने के बाद भी सगुण धारा की उपासक मीराबाई ने आपको अपना गुरु मानकर अपनी आध्यात्मिक उन्नति की एवं मोक्ष प्राप्त किया।
संत श्री रविदास जी महाराज को लेकर कई कहानियां मशहूर हैं। एक कथा के अनुसार, एक बार उनके एक मित्र की मौत हो गई थी। जब ये बात उनको पता चली तो वे बहुत दुखी हो गए उन्होंने अपने दोस्त के शव के पास आकर कहा उठो मित्र ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलने चलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी उठकर खड़ा हो गया। बताया जाता है कि संत श्री रविदास जी महाराज के पास बचपन से ही कई अलौकिक शक्तियां थीं। इसी प्रकार, एक और प्रचिलित कथा के अनुसार एक बार एक सदना कसाई उनकी हत्या करने के उद्देश्य से उनके पास आया था परंतु संत श्री रविदास जी महाराज के पद और वाणी सुनकर उस कसाई का हृदय परिवर्तन हो गया और वह उनका शिष्य बन गया और उसने अपना मुस्लिम धर्म छोड़कर रविदास जी का अनुयायी बनना स्वीकार कर लिया और जीवन भर इसका पालन भी किया। संत श्री रविदास जी महाराज के निर्मल मन और वाणी का इतना व्यापक प्रभाव था कि सभी अनुयायी उसे बड़े भक्ति के साथ सुनकर अपने को कृत कृत धन्य मानते थे।
भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की भक्ति में लीन संत श्री रविदास जी महाराज धीरे धीरे लोगों की भलाई करते गए और संत बन गए। आपको विद्वानों की संगत में रहने एवं साधुओं के साथ वक़्त बिताने में बड़ा आनंद आता था। एक बार आस पास के लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो किसी ने आपको भी गंगा स्नान के लिए चलने को कहा। अपने काम में मग्न संत श्री रविदास जी महाराज ने उन्हें एक सुपारी दी और कहा कि मेरी तरफ से ये मां गंगा को अर्पित कर देना। जैसे ही उस शख़्स ने वह सुपारी मां गंगा को अर्पित की उसे सोने का एक कंगन मिल गया। उस व्यक्ति के मन में लालच आ गया उसने कंगन संत श्री रविदास जी महाराज के बजाय, इनाम की लालसा में, राजा को दे दिया। रानी ने उस शख़्स से वैसा ही एक और कंगन लाने को कह दिया। राजा ने आदेश दिया कि यदि ये इच्छा पूरी नहीं हुई तो उसे दंड मिलेगा। परेशान व्यक्ति ने जब पूरी कहानी संत श्री रविदास जी महाराज को बताई तो उन्होंने नाराज़ होने के बजाय पूरे मन और शक्ति से मां गंगा को याद किया, अपनी कठौती में हाथ डाला और एक कंगन उसमें से नकालकर उस व्यक्ति को दे दिया और कहा कि मन चंगा तो कठौती में गंगा।
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संत श्री रविदास जी महाराज का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित भावना तथा सदव्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर आपने बहुत बल दिया। आपके मत के अनुसार, ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की चींटी इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार, अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्यागकर विनम्रता पूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है। संत श्री रविदास जी महाराज की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत प्रोत होती थी। इसलिए आपके वचनों का श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। आपके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का संतोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे। उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके श्रद्धालु बन गए।
आज भी संत श्री रविदास जी महाराज के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। आपने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सदव्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण संत श्री रविदास जी महाराज को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं। संत श्री रविदास जी महाराज के 40 पद गुरु ग्रंथ साहब में भी मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु श्री अर्जुनसिंह देव जी महाराज ने 16वीं सदी में किया था।
संत श्री रविदास जी महाराज का जीवन प्रेरणा का एक बेमिसाल स्त्रोत है। उनका जीवन प्यार, सच्चाई और सद्भाव की सीख देता है। संत रविदास जयंती पर उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान कर उन्हें याद करते हैं। प्रति वर्ष उनके जन्म स्थान पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन होता है। जिसमें लाखों लोग अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, उनके द्वारा रचित दोहों का गान करते हैं और भजन कीर्तन करते हैं। आज आपके करोड़ों अनुयायी भारत के साथ साथ विदेशों में भी निवासरत हैं। आपके विचारों ने लोगों के दिलों में आपको हमेशा हमेशा के लिए अमर कर दिया है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत उप-महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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- प्रह्लाद सबनानी
- फरवरी 26, 2021 14:24
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जल शक्ति अभियान की शुरुआत दो चरणों में की गई है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है। पहले चरण में बरसात के पानी का संग्रहण करने हेतु प्रयास किए गए थे।
भारत के नियंत्रक और लेखा महानिरीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बाल्टी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पायी हैं। आज़ादी के 70 वर्षों के पश्चात, देश की आबादी के एक बड़े भाग के घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है। साथ ही, “वाटर एड” नामक संस्था द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में पानी की कमी से जूझती सबसे अधिक आबादी भारत वर्ष में ही है, जो वर्ष भर के किसी न किसी समय पर, पानी की कमी से जूझती नज़र आती है।
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आइए निम्न लिखित कुछ अन्य आंकड़ों पर भी ज़रा एक नज़र डालें, जो देश में जल की कमी के बारे में कैसी भयावह स्थिति दर्शाते हैं-
(1) पिछले 70 सालों में देश में 20 लाख कुएं, पोखर एवं झीलें ख़त्म हो चुके हैं।
(2) पिछले 10 सालों में देश की 30 प्रतिशत नदियां सूख गई हैं।
(3) देश के 54 प्रतिशत हिस्से का भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है।
(4) नई दिल्ली सहित देश के 21 शहरों में पानी ख़त्म होने की कगार पर है।
(5) पिछले वर्ष, देश के कुल 91 जलाशयों में से 62 जलाशयों में 80 प्रतिशत अथवा इससे कम पानी बच गया था। किसी भी जलाशय में यदि लम्बी अवधि औसत के 90 प्रतिशत से कम पानी रह जाता है तो इस जलाशय को पानी की कमी वाले जलाशय में शामिल कर लिया जाता है, एवं यहां से पानी की निकासी कम कर दी जाती है।
(6) एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2030 तक देश के 40 प्रतिशत लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा।
देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटी मीटर बारिश होती है एवं बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है, बाक़ी 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है कि आज देश के कई भागों में हालात इतने ख़राब हो चुके हैं कि 500 फ़ुट तक ज़मीन खोदने के बाद भी ज़मीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है। इसी कारण से भारत के भूजल स्तर में तेज़ी से कमी आ रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपने दूसरे कार्यकाल में केंद्र सरकार ने, भारतवर्ष में पानी की कमी की उपरोक्त वर्णित भयावह स्थिति को देखते हुए तथा इस स्थिति से निपटने के लिए कमर कस ली है एवं इसके लिए एक नए “जल शक्ति मंत्रालय” का गठन किया गया है। साथ ही, भारतवर्ष में जल शक्ति अभियान की शुरुआत दिनांक 1 जुलाई 2019 से की जा चुकी है। यह अभियान देश में स्वच्छ भारत अभियान की तर्ज़ पर जन भागीदारी के साथ चलाया जा रहा है।
जल शक्ति अभियान की शुरुआत दो चरणों में की गई है। इस अभियान के अंतर्गत बारिश के पानी का संग्रहण, जल संरक्षण एवं पानी का प्रबंधन आदि कार्यों पर ध्यान दिया जा रहा है। पहले चरण में बरसात के पानी का संग्रहण करने हेतु प्रयास किए गए थे। इस हेतु देश के उन 256 जिलों पर फ़ोकस किया गया था, जहां स्थिति अत्यंत गंभीर एवं भयावह थी। जल शक्ति अभियान को सफलता पूर्वक चलाने की पूरी ज़िम्मेदारी इस नए मंत्रालय पर डाली गई है। अतः जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल शक्ति अभियान को, विशेष रूप से उक्त 256 जिलों में सफल बनाने के उद्देश्य से इन जिलों को 256 अधिकारियों को आवंटित किया गया है, जो इन जिलों का दौरा करने के बाद स्थानीय स्तर पर आवश्यकता अनुरूप कई कार्यक्रमों को लागू कर इन जिलों के भूजल स्तर में वृद्धि करने हेतु प्रयास कर रहे हैं। पानी के संचय हेतु विभिन्न संरचनाएं यथा तालाब, चेकडेम, रोबियन स्ट्रक्चर, स्टॉप डेम, पेरकोलेशन टैंक ज़मीन के ऊपर या नीचे बड़ी मात्रा में बनाए जा रहे हैं।
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देश में प्रति वर्ष पानी के कुल उपयोग का 89 प्रतिशत हिस्सा कृषि की सिंचाई के लिए ख़र्च होता है, 9 प्रतिशत हिस्सा घरेलू कामों में ख़र्च होता है तथा शेष 2 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा ख़र्च किया जाता है। देश में हर घर में ख़र्च होने वाले पानी का 75 प्रतिशत हिस्सा बाथरूम में ख़र्च होता है। इस लिहाज से देश के ग्रामीण इलाक़ों में पानी के संचय की आज आवश्यकता अधिक है। क्योंकि ग्रामीण इलाक़ों में हमारी माताएं एवं बहनें तो कई इलाक़ों में 2-3 किलोमीटर पैदल चल कर केवल एक घड़ा भर पानी लाती देखी जाती हैं। अतः खेत में उपयोग होने हेतु पानी का संचय खेत में ही किया जाना चाहिए एवं गांव में उपयोग होने हेतु पानी का संचय गांव में ही किया जाना चाहिए। जल के संचय एवं जल के नियंत्रित उपयोग हेतु निम्न वर्णित कई प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं।
(1) देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना, सबसे महत्वपूर्ण सुझाव हो सकता है। क्योंकि, यह 85 प्रतिशत भूजल का उपयोग करता है। ड्रिप एवं स्प्रिंक्लर तकनीक को प्रभावी ढंग से लागू करके प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है। सरकार द्वारा किसानों के लिए घरेलू स्तर पर निर्मित एवं ड्रिप तथा स्प्रिंक्लर जैसे कुशल पानी के उपयोग वाले उत्पादों और सेंसर-टैप एक्सेसरीज़, आटोमेटिक मोटर कंट्रोलर आदि उत्पादों पर सब्सिडी देकर इस तरह के उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
(2) ऐसी फ़सलें, जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ने एवं अंगूर की खेती, आदि फ़सलों को पानी की कमी वाले इलाक़ों में धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए। अथवा, इस प्रकार की फ़सलों को देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहां हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है। उदाहरण के तौर पर गन्ने की फ़सल को महाराष्ट्र एवं उत्तर प्रदेश से बिहार की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है।
(3) भूजल के अत्यधिक बेदर्दी से उपयोग पर भी रोक लगायी जानी चाहिए ताकि भूजल के तेज़ी से कम हो रहे भंडारण को बनाए रखा जा सके।
(4) देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके।
(5) विभिन्न स्तरों पर पाइप लाइन में रिसाव से बहुत सारे पानी का अपव्यय हो जाता है, इस तरह के रिसाव को रोकने हेतु भी सरकार को गम्भीर प्रयास करने चाहिए।
(6) देश में लोगों को पानी का मूल्य नहीं पता है, वे समझते हैं जैसे पानी आसानी से उपलब्ध है। लोगों में पानी के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से सरकार को 24 घंटे 7 दिन की पानी की आपूर्ति की बजाय, एक निश्चित किए गए समय पर, रिसाव-प्रूफ़ और सुरक्षित पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।
(7) आज आवश्यकता इस बात की है कि हम घर में कई छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत करें। जैसे, (i) दांतों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, (ii) शेव करते समय चालू नल के इस्तेमाल की जगह एक डब्बे में पानी भरकर शेव करें, (iii) स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बाल्टी में पानी भरकर स्नान करें, (iv) घर में कपड़े धोते समय नल के पानी को चालू रखते हुए कपड़े धोने के स्थान पर बालटी में पान भरकर कपड़े धोएं, एवं (v) टोईलेट में फ़्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें। एक अनुमान के अनुसार, इन सभी छोटे-छोटे कार्यों पर ध्यान देकर प्रति परिवार प्रतिदिन 300 लीटर से अधिक पानी की बचत की जा सकती है।
(8) अब समय आ गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर जल साक्षरता पर प्राथमिक ध्यान दिया जाये। अतः प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पानी की बचत एवं संरक्षण, आदि विषयों पर विशेष अध्याय जोड़े जाने चाहिए।
केंद्र एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा तो पानी की कमी से जूझने हेतु कई प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु, इस कार्य हेतु जन भागीदारी की आज अधिक आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि सामाजिक संस्थाएं भी आगे आएं एवं जल संग्रहण एवं जल प्रबंधन हेतु समाज में लोगों को जागरूक करना प्रारम्भ करें। शहरी एवं ग्रामीण इलाक़ों में इस सम्बंध में अलख जगाने की आज महती आवश्यकता है। तभी हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए उनकी आवश्यकता पूर्ति हेतु जल छोड़कर जा पाएंगे अन्यथा तो हमारे स्वयं के जीवन में ही जल की उपलब्धता शून्य की स्थिति पर पहुंच जाने वाली है।
-प्रह्लाद सबनानी
सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक
भारतीय स्टेट बैंक
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