वाजपेयी से रिक्त हुए शून्य को भर पाने का माद्दा आज के नेताओं में नहीं

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वाजपेयी ऐसा शून्य पैदा कर गए हैं, जिसका भर पाना मौजूदा राजनीति में संभव नजर नहीं आता। राष्ट्रीय राजनीतिक दल हों या क्षेत्रीय दल हों, इनमें एक भी नेता वाजपेयी जैसे व्यक्तित्व, कृतित्व का धनी और उनके जैसा दिलदार नहीं दिखता है।

अटल बिहारी वाजपेयी ऐसा शून्य पैदा कर गए हैं, जिसका भर पाना मौजूदा राजनीति में संभव नजर नहीं आता। राष्ट्रीय राजनीतिक दल हों या क्षेत्रीय दल हों, इनमें एक भी नेता वाजपेयी जैसे व्यक्तित्व, कृतित्व का धनी और उनके जैसा दिलदार नहीं दिखता है। किसी नेता में वाजेपयी जैसा माद्दा नहीं है। सभी दलों के नेता अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ साधन में लगे हैं। सभी पर किसी न किसी तरह के दाग लगे हैं, चाहे वह भ्रष्टाचार के हों या हिंसा के। 

दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचने वाले नेताओं की जमात का शायद वाजपेयी आखिरी प्रतिनिधित्व करते थे। इसके बाद राजनीति में हर तरफ दलदल ही नजर आता है। लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता दोमुंही बात करते दिखाई देते हैं। जब विपक्ष में होते हैं तब उनके स्वर कुछ और होते हैं और सत्ता में आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल जाते हैं। मौजूदा राजनीति में जिस तरह से क्षेत्रवाद, कट्टरता, अंधभक्ति, जातिवाद और भ्रष्टाचार व्याप्त है, उसे देखकर देश के लोगों को वाजेपयी का नेतृत्व हमेशा याद आता रहेगा। 

मौजूदा दौर में सत्ता के लालच में बेलगाम जुबान और इंसानियत शर्मसार होती दिखाई देती है। सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों का व्यवहार ऐसा हो चला है, मानो दो शत्रु राष्ट्र संवाद कर रहे हैं। जबकि सत्तापक्ष और विपक्ष लोकतंत्र में एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। राजनीतिक दलों की कटुता और एक−दूसरे के खिलाफ विषवमन यहां तक की हिंसा की वारदातें लोकतंत्र के साथ देश को कलंकित कर रही हैं। विगत विधान सभा चुनावों में चाहे भाजपा हो, कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दल, सबने अपनी गरिमा−गिराकर हास्यादपद माहौल बनाने में कसर नहीं छोड़ी। सोशल मीडिया पर सभी पर खूब कटाक्ष हुए। 

यही वजह भी है कि देश के लोगों का दलों और नेताओं से विश्वास लगातार उठता जा रहा है। चुनावी प्रचार के दौरान जिस तरह की भाषा शब्दावलियों के प्रयोग किए गए, उससे राजनीति की स्तरहीनता का पता चलता है। नैतिकता लगातार लुप्त होती जा रही है। इसमें कोई भी दल एक−दूसरे से पीछे नहीं रहा। आरोप−प्रत्यारोप राजनीतिक दलों तक ही सीमित नहीं रहा, व्यक्तिगत निचले स्तर तक गिर गया। ज्यादा से ज्यादा राज्यों में सत्ता मिल सके इसके लिए बहुमत नहीं होने के बावजूद होर्स ट्रेडिंग का खेल खूब खेला गया। 

आपसी मेल−मिलाप तो दूर की कौड़ी हो गई है। बेशक मुद्दा चाहे सद्भाव और समरसता बढ़ाने का हो या कोई राष्ट्रीय विषय हो। गले मिलना तो दूर हाथ मिलाने से भी परहेज हो रहा है। हाल में पश्चिम बंगाल में हुए पंचायत चुनाव इसका उदाहरण हैं। लोकतंत्र की इस पहली सीढ़ी पर ही जमकर खून−खराबा हुआ। चुनाव के बाद तक हत्या की वारदातें होती रहीं। लग यह रहा था कि चुनाव न होकर राजनीतिक दल युद्ध लड़ रहे हैं। जमकर हथियारों और गोला−बारूद का इस्तेमाल किया गया। दलों के नेता और कार्यकर्ता एक−दूसरे को मरने−मारने पर उतारू रहे। 

इस चुनाव में डराने−धमकाने और हिंसा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। केंद्र के साथ राज्यों में सत्तारूढ़ विपक्षी राजनीतिक दलों के कटुतापूर्ण संबंधों से इस बात का आभास होता है कि एक ही देश के दो सीमावर्ती राज्य न होकर पड़ौसी देश हैं। राज्यों के संबंध एलओसी की तरह हो गए हैं। मुद्दा चाहे नदियों के पानी के बंटवारे का हो या सीमा संबंधी दूसरे विवादों का। 

वोटों की राजनीति की खातिर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की परवाह भी नहीं रही। सत्ता प्राप्ति के लिए इस हद तक राष्ट्रवाद से खिलवाड़ हो गया है कि आतंकवाद जैसे मुद्दे को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक जैसे चश्मे से देखा जा रहा है। धार्मिक वैमनस्यता इस हद तक बढ़ गई है कि मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं सिर उठा रही हैं। कभी गाय की रक्षा के तो कभी बच्चा चोरी के शक में भीड़तंत्र हावी हो रहा है। 

जबकि देश में चुनी हुई सरकारों का शासन है। नेता वोटों की फसल काटने के लिए इसे रोकने के बजाए आपस में आरोप−प्रत्यारोपों में ही उलझे हुए हैं। ऐसा नहीं है कि राजनीतिक दलों को सत्ता नहीं मिलेगी। आपसी रंजिश जैसे हालात में दलों को सत्ता तो मिलेगी, लोकतंत्र का चक्र चलता रहेगा किन्तु जितनी सादगी, गौरव और सम्मान से वाजपेयी सत्ता में हासिल कर सके, ऐसा आदर शायद ही किसी को नसीब हो। सभी दलों के नेताओं ने वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी है। उनके सम्मान में कसीदे पढ़े गए हैं। उनको सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि नेता क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर वाजपेयी द्वारा स्थापित किए मेल−मिलाप, मृदु−भाषा, शुचिता और नैतिकता के मानदंडों का पालन करें।

-योगेन्द्र योगी 

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