मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं
श्रम मंत्रालय का श्रम ब्यूरो हर तिमाही में सर्वे कर आंकड़े जारी करता है। पिछली कई तिमाहियों में यह आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में रोजगार सृजन लगातार कम हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा नीत केन्द्र सरकार ने तीन साल पूरे कर लिये हैं, जिसे देखते हुए अच्छे दिन के अपने वादों को पूरा करने पर उनका जोर है। 2013-14 में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने युवाओं को प्रतिवर्ष 1 करोड़ रोजगार के अवसर देने का वादा किया था। हालांकि बीते तीन सालों में रोजगार देने के मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है।
संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 और 2018 के बीच भारत में बेरोजगारी बढ़ सकती है और रोजगार के नए अवसर सृजित होने में बाधा आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने 2017 में वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक दृष्टिकोण पर अपनी रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है। इसमें वर्ष 2017 के दौरान बेरोजगारी बढ़ने तथा सामाजिक असमानता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई है। वर्ष 2017 और 2018 में भारत में रोजगार सृजन की गतिविधियों के गति पकड़ने की संभावना नहीं है क्योंकि इस दौरान धीरे-धीरे बेरोजगारी बढ़ेगी। रिपोर्ट में ऐसी आशंका जताई गई है कि पिछले साल के 1.77 करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल 1.8 करोड़ हो सकती है।
वर्ष 2016 में रोजगार सृजन के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन थोड़ा अच्छा था। रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि 2016 में भारत की 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर ने पिछले साल दक्षिण एशिया के लिए 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने में मदद की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक बेरोजगारी दर और स्तर अल्पकालिक तौर पर उच्च बने रह सकते हैं क्योंकि वैश्विक श्रम बल में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। विशेषकर वैश्विक बेरोजगारी दर में 2016 के 5.7 प्रतिशत की तुलना में 2017 में 5.8 प्रतिशत की मामूली बढ़त की संभावना है।
संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन के महानिदेशक गाइ राइडर ने कहा कि इस वक्त हम लोग वैश्विक अर्थव्यवस्था के कारण उत्पन्न क्षति एवं सामाजिक संकट में सुधार लाने और हर साल श्रम बाजार में आने वाले लाखों नवआगंतुकों के लिए गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के निर्माण की दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के मुख्य लेखक स्टीवेन टॉबिन ने कहा कि उभरते देशों में हर दो श्रमिकों में से एक जबकि विकासशील देशों में हर पांच में से चार श्रमिकों को रोजगार की बेहतर स्थितियों की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने निर्देश दिया है कि कैबिनेट को भेजे जाने वाले सभी प्रस्तावों में यह जानकारी जरूर दी जाए कि उन प्रस्तावों पर अमल करने से रोजगार के कितने मौके बनेंगे। सरकार ज्यादा रोजगार पैदा करना चाहती है ताकि लोगों की आमदनी बढ़े और लाखों लोग गरीबी के जाल से बाहर निकलें। सरकार अपनी निर्माण नीति की समीक्षा भी कर रही है ताकि उसे रोजगार सृजन के उद्देश्य के मुताबिक बदला जा सके। वहीं कौशल बढ़ाने के कार्यक्रम को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण 2017 में कहा गया है कि आबादी में युवाओं की अधिक संख्या से ग्रोथ में होने वाली बढ़ोतरी अगले पांच वर्षों में उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगी, क्योंकि तब तक कामकाजी उम्र वाले लोगों की संख्या में ठहराव आ चुका होगा। ऐसे में कौशल और उद्यमिता को बढ़ावा देना जरूरी हो गया है। ग्रोथ के साथ रोजगार के मौके बनने की रफ्तार बढ़ाने के लिए नीति आयोग ने तीन साल का ऐक्शन प्लान पेश किया है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन के कदम उठाने की बात की गई है।
मोदी अपने हर भाषण में कहते हैं कि हमारा देश युवाओं का देश है। हमारी आबादी में 65 प्रतिशत हिस्सा 35 साल से कम उम्र के लोगों का है। भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र है। किसी भी देश के पास रोजगार के मौके पैदा करने का भारत जितना अवसर नहीं है। सीआईआई के अनुसार वित्तीय वर्ष 2012 से 2016 के बीच भारत में रोजगार के 1.46 करोड़ मौके बने थे। यानी हर साल 36.5 लाख अवसर। कामकाजी उम्र वाले लोगों की संख्या में 8.41 करोड़ का इजाफा हुआ, लेकिन वास्तिक श्रम शक्ति में बढ़ोतरी केवल 2.01 करोड़ रही। कामकाजी उम्र वाली आबादी का 24 फीसदी हिस्सा श्रम शक्ति में जुड़ा, जबकि 76 फीसदी हिस्सा इससे बाहर रहा।
देश में रोजगार की दशा और दिशा पर केंद्र सरकार के श्रम मंत्रालय का श्रम ब्यूरो हर तिमाही में सर्वे कर आंकड़े जारी करता है। पिछली कई तिमाहियों में यह आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद देश में रोजगार सृजन लगातार कम हो रहा है। श्रम ब्यूरो के ताजा सर्वे के अनुसार वर्ष 2015 और 2016 में 1.55 और 2.13 लाख नए रोजगार सृजित हुए जो पिछले आठ साल का सबसे निचला स्तर है। मनमोहन सिंह काल के आखिरी सबसे खराब दो सालों 2012 और 2013 में कुल 7.41 लाख नए रोजगार सृजित हुए पर मोदी राज के दो सालों 2015 और 2016 में कुल 3.86 लाख रोजगार ही सृजित हुए हैं। यूपीए-2 के शुरू के दो साल यानी 2009 और 2010 में 10.06 और 8.65 लाख नए रोजगार सृजित हुए थे। यदि इसकी तुलना 2015 और 2016 से की जाए तो मोदी राज के इन दो सालों में तकरीबन 74 फीसदी रोजगार के अवसर कम हो गए हैं।
मोदी सरकार ने सत्ता पर काबिज होते ही रोजगार बढ़ाने के लिए बड़े तामझाम के साथ अनेक घोषणाएं कीं जिनसे युवाओं में रोजगार पाने की उम्मीद जगना स्वाभाविक थी। इनमें मेक इन इंडिया से सरकार को ही नहीं युवाओं को भी नौकरियों की बड़ी उम्मीद थी। इसके लिए अनेक क्षेत्रों को विदेशी निवेश के लिए खोला गया उनमें विदेशी निवेश की सीमा भी बढ़ायी गयी। स्टार्ट अप इंडिया से काफी उम्मीदें बनी थीं। पर जमीन पर मेक इन इंडिया बेअसर ही रही।
स्टैंड अप इंडिया में अनुसूचित जाति, जनजातियों और महिलाओं में उद्यमिता के माध्यम से रोजगार बढ़ाने की मुहिम थी। इससे एक करोड़ रुपए तक कर्ज की सुविधा थी। लक्ष्य था कि कम से कम राष्ट्रीयकृत बैंकों की हर शाखा ऐसा एक कर्ज अवश्य बांटेगी। लेकिन जमीन पर इसका भी कोई असर नहीं दिखाई देता है। स्किल इंडिया भी रोजगार मूलक योजना है जिसमें 2022 तक 40 करोड़ युवाओं को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य है। पर यह योजना भी अपने लक्ष्य से काफी पीछे है। इस योजना के कितने प्रशिक्षित युवाओं को रोजगार मिला, यह बताने में मोदी सरकार के मंत्री कतराते हैं। सरकार की यह तमाम कोशिशें अब तक खंडहर ही साबित हुई हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों से आईटी सेक्टर में छंटनी का खतरा पैदा हो गया है जो मोदी सरकार के लिए अच्छी खबर नहीं है। रोजगार कारोबार से जुड़ी विख्यात कंपनी हेड हंटर्स के मुताबिक आने वाले तीन सालों में आईटी सेक्टर में सालाना 1.75 लाख से दो लाख लोग रोजगार खो सकते हैं। मैकंजी एंड कंपनी ने नॉसकॉम इंडिया लीडरशिप फोरम को 17 फरवरी 2017 को एक रिर्पोट सौंपी हैं। इसके अनुसार आईटी सेक्टर में तकरीबन आधे से ज्यादा श्रम बल अपनी उपयोगिता खो देगा। अभी इस सेक्टर में 39 लाख लोग काम करते हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार दोबारा ट्रेनिंग के बाद ही मौजूदा श्रम बल का 30-40 फीसदी श्रम बल बाजार में टिक पायेगा। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार ऑटोमेशन में भारत के 69 फीसदी रोजगार के समक्ष छंटनी का खतरा बना हुआ है।
परन्तु यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब मोदी सरकार का राजस्व बढ़ा है, व्यय घटा है, प्रत्यक्ष लाभ ट्रांसफर से सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपए सालाना बचत करने का दावा किया है। सार्वजनिक निवेश में खासी बढ़ोतरी हुई है। विदेश निवेश में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। फिर रोजगार कहां गये ? यह सवाल मोदी सरकार को स्वयं से पूछना चाहिए तभी रोजगार बढ़ने की राहें निकालनी आसान होंगी। केवल केंद्रीय मंत्रियों के वक्तव्यों से लाखों-करोड़ों रोजगार अवसर पैदा नहीं होंगे। आज की तारीख में मोदी सरकार अपनी उपलब्धियों के लाख कसीदें पढ़ ले पर रोजगार के मोर्चे पर प्रधानमंत्री मोदी विफल ही साबित हो रहे हैं।
- रमेश सर्राफ धमोरा
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