भारत में बढ़ती जा रही है सड़क हादसों की संख्या, सिर्फ कानून कड़े करने से काम नहीं चलेगा

road accident

शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है, जिनमें ज्यादातर बसें पुरानी हो चुकी हैं। शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हमें इस समय सड़कों पर चल रही बसों के मुकाबले कई गुना अधिक बसों की जरूरत है।

भारत में आज कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता है, जिस दिन देश के किसी ना किसी भाग में सड़क हादसा न हुआ हो। इन हादसों में कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ता है। विकास की प्रतीक मानी जाने वाली सड़कें विनाश का पर्याय बनती जा रही हैं। विश्व बैंक की सड़क दुर्घटना रिपोर्ट 2019 के मुताबिक भारत में 2019 में 4 लाख 49 हजार 02 सड़क हादसे हुए, जिनमें 1 लाख 51 हजार 113 लोगों की मौतें हुईं और 4 लाख 51 हजार 361 लोग घायल हुए थे। सड़क हादसों में 70 फीसदी मौतें 18 से 45 वर्ष की आयु वर्ग में होती हैं। भारतीय सड़कों पर हादसों में प्रतिदिन 415 मौतें होती हैं।

दुनिया में वाहनों का सिर्फ एक प्रतिशत भारत में है, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में 10 प्रतिशत मौतें इस देश में होती है। भारत को इस बात पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। दुर्भाग्य से सड़क हादसों की संख्या में कमी नहीं आ रही है। देश में सड़क दुर्घटनाओं का शिकार दरअसल गरीब और सबसे कमजोर तबका होता है। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों पर इसका कहीं अधिक प्रभाव पड़ता है। दक्षिण एशिया के लिए विश्व बैंक के उपाध्यक्ष हार्टविग साफर ने कहा कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में सड़क सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के हल के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उनके मुताबिक भारत सड़क सुरक्षा के मामले में कुछ अच्छे प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले साल भारत ने अपने मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में विश्व बैंक सड़क सुरक्षा मानकों और संस्थागत पहलुओं में मदद कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमें सुनिश्चित करना होगा कि समुचित मात्रा में ‘रोडसाइड बैरियर’ हों। सड़कें सुरक्षित हों, वाहन भी सुरक्षित हों और वाहनों की जांच की उपयुक्त प्रणाली बनानी होगी।

इसे भी पढ़ें: साल 2025 तक सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या में 50 प्रतिशत कमी लाने की योजना है: नितिन गडकरी

देश में मोटर व्हीकल एक्ट में किया गया संशोधन 1 सितंबर 2019 से लागू हुआ था। इसका मकसद देश में सड़क पर यातायात को सुरक्षित बनाना और सड़क हादसों में लोगों की मौत की संख्या को कम करना था। लेकिन अब जैसे-जैसे देश में अनलॉक की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है तो देश उसी पुरानी अवस्था की ओर बढ़ रहा है। परिवहन और यातायात दोबारा तेज होने के साथ ही सड़क हादसों की संख्या और उनसे होने वाली मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं।

भारत में होने वाले सड़क हादसों में करीब 26 फीसदी खतरनाक या लापरवाह ड्राइविंग या ओवरटेकिंग की वजह से होते हैं। 2019 में इनकी वजह से 42 हजार 500 लोगों की जान चली गई और एक लाख से अधिक लोग घायल हो गए। कोविड-19 महामारी की रोकथाम के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया था। उससे सड़क हादसों में लगभग बीस हजार लोगों की जान जाने से बचायी गई। अप्रैल से लेकर जून 2020 तक सड़क हादसों में 20 हजार 732 लोगों की मौत हुई। जबकि 2019 में अप्रैल से जून के बीच 41 हजार 32 लोगों की सड़क हादसों में जान चली गई थी।

शहरों में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से नगरीय बस सेवाओं के भरोसे है, जिनमें ज्यादातर बसें पुरानी हो चुकी हैं। कई अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि शहरों की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए हमें इस समय सड़कों पर चल रही बसों के मुकाबले कई गुना अधिक बसों की जरूरत है। बसों की कम संख्या व बढ़ती भीड़ के चलते कोविड-19 के दौर में भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन नहीं हो पा रहा है। इससे कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने का खतरा मंडराता रहता है।

सड़क हादसों के कारण अक्सर परिवारों की आमदनी के स्रोत को नुकसान होता है व उनकी रोजी रोजगार छिन जाता है। संबंधित परिवार को आर्थिक दिक्कतें होती हैं। जो लोग सड़क दुर्घटनाओं में बच भी जाते हैं उनके इलाज में भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। हालांकि 2019 का मोटर व्हीकल एक्ट सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को बीमा के जरिए आर्थिक मदद उपलब्ध कराता है। लेकिन इस कानून से सड़क हादसों के शिकार लोगों को होने वाली मानसिक क्षति की भरपाई नहीं होती।

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि देश में सड़कों के निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है और मार्च 2021 तक प्रतिदिन 40 किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा। इसके लिए कवायद तेज कर दी गई है। हमने प्रतिदिन 30 किलोमीटर से ज्यादा सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। गडकरी ने उम्मीद जतायी कि 2025 तक सड़क दुर्घटनाएं और इसके कारण होने वाली मौतें 50 प्रतिशत तक कम हो जाएंगी।

सरकार सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने के लिए तेजी से काम कर रही है। इसके लिए नीतिगत सुधारों और सुरक्षित प्रणालियों को अपनाया जा रहा है। 2030 तक भारतीय सड़कों पर जीरो एक्सीडेंट की दृष्टिगत करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। गडकरी ने बताया कि तमिलनाडु में हादसों और मृत्यु संख्या में 53 प्रतिशत की गिरावट आयी है। गडकरी के अनुसार सरकार सड़क पर दुर्घटना संभावित क्षेत्र की पहचान करने और इसके समाधान के लिए 14 हजार करोड़ रुपये खर्च करेगी।

इसे भी पढ़ें: पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों से बचने के लिए वैकल्पिक ईंधन अपनाने का यह सही समय है

गडकरी का कहना है कि जान लेने वाले सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिये राज्यों को केन्द्रीय सड़क कोष के एक हिस्से का इस्तेमाल करना चाहिये और दुर्घटनावाली जगहों को दुरुस्त करना चाहिये। गडकरी ने कहा कि हम न सिर्फ राष्ट्रीय राजमार्गों पर बल्कि राज्य राजमार्गों पर भी हादसों की संख्या कम करने की कोशिश कर रहे हैं। जिलों में सड़क सुरक्षा समितियां गठित की जानी चाहिये, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ सांसदों को करनी चाहिये और जिलाधिकारियों को इनका सचिव बनाया जाना चाहिये। यह समिति जिला स्तर पर दुर्घटना के सभी पहलुओं को देखे।

सड़कों पर बने मोड़ों जैसे टी जंक्शन और टी वाई पर सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं। देश भर में हुए कुल हादसों में से 37 फीसदी हादसे उन्हीं चौराहों और मोड़ों पर होते हैं। उनमें से तकरीबन 60 फीसदी हादसे टी और टी वाई जंक्शन पर रिकॉर्ड किए गए। इन हादसों की सबसे बड़ी वजह ड्राइवरों की गलती रहती है। स्पीड सीमा को पार करना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, ओवरटेकिंग और मोबाइल पर बात करते हुए गाड़ी चलाना कुछ ऐसी गलतियां हैं, जिनसे बड़ी संख्या में सड़क हादसे हो रहे हैं। कुल सड़क हादसों में से 84 फीसदी हादसों के पीछे ड्राइवरों की गलती होती है। इंटरनेशनल रोड फेडरेशन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में सालाना करीब 20 अरब डॉलर का नुकसान होता है।

देश की सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ता जा रहा है, इस पर नियंत्रण के उचित कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही वाहनों की सुरक्षा के मानकों की समय-समय पर जांच होनी चाहिए। स्कूलों में सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरूकता अभियान चलाए जाएं। भारी वाहन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को परमिट दिए जाने की प्रक्रिया में कड़ाई बरती जाए। ड्राइविंग लाइसेंस के लिए योग्यता भी तय की जाए। साथ ही छोटे बच्चे और किशोरों के वाहन चलाने पर कड़ाई से रोक लगे। तेज रफ्तार, सुरक्षा बेल्ट का प्रयोग न करने वालों और शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो, तभी देश में सड़कों पर लगातार हो रही दुर्घटनाओं पर रोक लग पायेगी।

-रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं।)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़