साल भर में सिर्फ एक दिन ही महिलाओं को सम्मानित करने का ढोंग होता है

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वर्ष के सिर्फ एक दिन ही हम महिलाओं को सम्मान, प्यार, सत्कार का हकदार समझते हैं। आदिकाल हो या वर्तमान, नारी को सिर्फ श्लोकों, किताबों या फिर एक तारीख तक सम्मानित करने का ढोंग होता है।

"यस्य पुज्यते नर्यस्तू तत्र रमंते देवता" अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं, हमारे समाज में नारी को पूज्यनीय और वंदनीय माना जाता है। कहा जाता है नारी प्रेम, स्नेह, करुणा और मातृत्व की प्रतिमूर्ति है। जिस प्रकार मनुष्य को जीने के लिए ऑक्सीजन चाहिए, बिना पंख पक्षी उड़ नहीं सकते उसी प्रकार बिना नारी के सृष्टि की कल्पना भी नहीं कर सकते। क्या ये भावनाएं, ये परम्परा, ये मान, ये सम्मान, ये पूजा, पौराणिक कथाओं, वेदों, शास्त्रों और मंत्रों के उपदेश तक ही रह जाएगा। वर्तमान में भी वर्ष के सिर्फ एक दिन ही हम महिलाओं को सम्मान, प्यार, सत्कार का हकदार समझते हैं, हर 8 मार्च को ये सवाल सभी के जेहन में आता है।

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आदिकाल हो या वर्तमान, नारी को सिर्फ श्लोकों, किताबों या फिर एक तारीख तक सम्मानित करने का ढोंग होता है क्योंकि अगले दिन या अगले पल तो नारी से एक उपेक्षित वस्तु की तरह ही बर्ताव होने लगता है। भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान समाज रहा है, आज भी हमारे बहुतायत समाज में एक महिला जन्म से मृत्यु तक पुरुष के हाथों की कठपुतली बनी रहती है। हमारे समाज में "महिलाओं की हमेशा उपेक्षा हुई है और महिलाओं से ही अति अपेक्षा भी की जाती है।'' पर इक्कीसवीं सदी में महिलाओं की स्थिति में बदलाव की बयार चल पड़ी है किन्तु फिर भी एक तरफ जहां नारी हर पथ पर प्रगति कर रही है, हर क्षेत्र में तरक्की कर रही है वहीं नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। नारी को भोग की वस्तु समझ आदमी अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहा है और आजकल तो महिलाओं के साथ अभद्रता की अति हो रही है। हर रोज़ अखबार, न्यूज चैनल्स छेड़छाड़, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, मारने, जलाने आदि की खबरों से भरे मिलते हैं।

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जहां तक कन्या भ्रूण हत्या की बात करें तो इस कुकृत्य में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के ही बराबर है। आज भी हम कन्या भ्रूण हत्या रोक नहीं पाए हैं जो कि हमारे समाज के लिए एक अभिशाप है इसलिए पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी महिलाओं के लिए अपनी सोच बदलने की जरूरत है। हमारे देश में में महिलाओं का अनुपात पुरुषों से हमेशा बहुत कम रहा है, 2001 में 1000 पुरुष 933 महिलाएं और 2011 में थोड़ा ऊपर खिसक कर 943 महिलाएं हुई हैं, फिर भी महिलाओं कि स्थिति जस की तस है। हम महिलाओं के अधिकार की बात तो करते हैं पर उन्हें अधिकार ना देते हैं ना किसी अधिकार का हकदार समझते हैं। आज भी हमारे समाज में महिलाएं चूल्हा चौका, बच्चे पैदा करना, घर वालों की जिम्मेदारियों को ही अपनी ज़िंदगी समझ अपना जीवन ख़तम कर देती हैं, अपनी हर इच्छाओं को मारकर पूरी उम्र उनके लिए ही जिए जाती हैं, अपने लिए 2 पल भी नहीं निकाल पातीं। परिवार के लिए अपनी इच्छाओं, सपनों और अधिकारों का बलिदान देने में भारतीय महिलाएं सबसे आगे हैं, जबकि नारी एक बेटी, बहन, बहू, भाभी, ननद, मां, मामी, चाची, बुआ अपनी हर ज़िम्मेदारी बखूबी निभाते हुए अपने कार्यक्षेत्र में भी सफलता प्राप्त करती हैं। पुरुष हमेशा से महिलाओं पर अपनी इच्छाएं थोपते आया है और ये आज भी समाज के हर वर्ग में होता है। जहां महिलाओं को अपना अधिकार मिलने का इंतजार करना पड़े या अधिकार मांगने की जरूरत पड़े तो वहां महिलाओं को खुद आगे बढ़ जाना चाहिए। महिलाओं को मौका मिले तो आज वो पुरुषों को हर क्षेत्र में बहुत पीछे छोड़ने की हिम्मत, ताकत और काबिलियत रखती हैं, देश की हर महिला अपना घर भी सम्भाल सकती है और बाहर निकल कर अपने सपने को भी पूरा कर सकती है जबकि पुरुषों के लिए दोनों कार्य एक साथ करना असंभव होता है।

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पूरे विश्व में 8 मार्च को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की तैयारियां हो चुकी हैं, इसकी शुरुआत 1908 से न्यूयार्क में हुई। 1911 में जब इसे कई देशों में मनाया गया था अगर हम तब से देखें तो 8 मार्च 2019 को ये 108वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। इस दिन को पूरा विश्व इसे अपने अपने स्तर और अपने अपने तरीके से मनाता है। चीन के ज्यादातर दफ्तरों में महिलाओं को आधे दिन की छुट्टी दी जाती है। कई देशों में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा भी की जाती है, अमेरिका में मार्च का महीना "विमेन्स हिस्ट्री मंथ" के रूप में मनाया जाता है।

विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है फिर भी हम सिर्फ 108 बार ही इनको सम्मान देने का सोच सके हैं। जी हां सिर्फ सोचे ही हैं अभी तक महिलाओं को वो सम्मान और अधिकार हम दे नहीं पाए जिसकी वो सच में हकदार हैं। साल 1996 से हर वर्ष महिला दिवस किसी निश्चित थीम के साथ ही मनाया जाता है। साल 2019 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम इक्वल, विल्ड, स्मार्ट, इनोवेट फॉर चेंज है। इस थीम का उद्देश्य नई सोच के साथ लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण, महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक सेवा, इंफ्रास्ट्रक्चर में उनकी उपस्थिति पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। क्या हर वर्ष ये थीम्स सिर्फ 8 मार्च के लिए ही हैं या कभी यह पूरी तरह सामाजिक स्तर पर कार्यरत भी होंगी।

-प्रतिभा तिवारी

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