इमरान जीते नहीं जिताए गये हैं, कश्मीर समस्या का समाधान मुश्किल

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सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के साथ ही इमरान खान के कश्मीर को लेकर आए वक्तव्यों से साफ हो गया है कि कश्मीर की समस्या के समाधान में पाकिस्तान के सहयोग की अपेक्षा करना बेमानी होगा।

पाकिस्तान के चुनाव नतीजों में इमरान की पाकिस्तान तहरीर ए इंसाफ पार्टी के सबसे बड़े दल के रुप में उभरना राजनीतिक विश्लेषकों और पाकिस्तान की राजनीति को समझने वाले विशेषज्ञों के लिए कोई चौंकाने वाला परिणाम नहीं है। साफ है इमरान सेना के सहयोग से चुनाव लड़ रहे थे। आश्चर्य की बात यह अवश्य है कि सेना के सहयोग के बावजूद इमरान पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में विफल रहे। हालांकि विश्लेषकों का कयास है कि इमरान पर लगाम कसे रखने के लिए ही सेना ने इस तरह की रणनीति तय की जिससे इमरान की पार्टी भी बहुमत से दूर रह गई। ऐसे में अब पाकिस्तान में इमरान प्रधानमंत्री तो बनेंगे पर वह गठबंधन की सरकार का ही नेतृत्व करेंगे। इससे साफ है कि इमरान की पार्टी पीटीआई के साथ ही अन्य दलों की नकेल भी सेना के हाथ में रहेगी और इसका साफ साफ मतलब सेना की कठपुतली बनकर शासन करना होगा। आतंकवादी हाफिज सईद की पार्टी का सफाया भी कहीं ना कहीं पाकिस्तानी सेना की रणनीति का हिस्सा ही लगता है क्योंकि हाफिज की पार्टी के जीतने के मायने होते हाफिज की तानाशाही।

हालांकि हाफिज भारत विरोध और कश्मीर के अलाप के साथ मैदान में उतरा था पर उसे कहीं भी समर्थन नहीं मिला। इसका साफ-साफ संकेत है कि कश्मीर मुद्दे को सेना अपने हथियार के रूप में रखना चाहती है। हाफिज की पार्टी या अन्य किसी दल की सरकार के मायने होते सेना की पकड़ में कमी। हालांकि पाकिस्तान के चुनाव नतीजों से एक बात और साफ हो गई है कि प्रांतीय सरकारों में इमरान की पार्टी कहीं नजर नहीं आ रही। पंजाब प्रांत में नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग और सिंध प्रांत में बिलावल की पार्टी और ब्लूचिस्तान में स्थानीय पार्टियों ने बढ़त बनाई है। 

क्रिकेट से राजनीति में आये इमरान की 22 साल की राजनीतिक यात्रा विवादों भरी रही है। इमरान को भारत विरोधी माना जाता रहा है। एक समय था जब यही इमरान पाकिस्तानी फोज की खिलाफत करते रहे हैं पर आखिर इमरान की समझ में यह आ ही गया कि पाकिस्तान में सत्ता की सीढ़ी चढ़नी है तो सेना का हाथ थामना ही होगा। पाकिस्तान के इन चुनावों को जहां अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक और योरोपीय यूनियन ने नकारते हुए साफ कहा है कि पाकिस्तान में निष्पक्ष चुनाव नहीं हुए हैं। इससे पाकिस्तान की अन्य पार्टियों द्वारा चुनावों में धांधली के आरोपों को बल मिला है। सेना के दखल व इमरान को खुले समर्थन के चलते किसी को भी इमरान के अलावा किसी और की जीत की संभावना नहीं दिख रही थी। हुआ भी यही। हां वायरल मैसेजों में इमरान द्वारा यह कहते सुना जाना कि मुझे जिताओगे तो मोदी की तरह काम करुंगा, भले ही यह मैसेज वायरल हो सकता है पर यदि इसमें अंशमात्र भी सच्चाई है तो मोदी की विदेशों में भी जिताउ होने की क्षमता व कार्यशैली को देखने का नजरिया स्पष्ट हो जाता है।

सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के साथ ही इमरान के कश्मीर को लेकर आए वक्तव्यों से साफ हो गया है कि कश्मीर की समस्या के समाधान में पाकिस्तान के सहयोग की अपेक्षा करना बेमानी होगा। दो बात बड़ी साफ-सी हैं कि पाकिस्तानी सेना का वजूद भारत विरोध पर टिका हुआ है और वहां के राजनीतिक दल भी सत्ता के गलियारें में जाने के लिए भारत विरोध या यों कहें कि पीओके राग अलापने में ही भला समझते हैं। हालांकि इंटरनेशनल मंचों पर पाकिस्तान को इसके लिए मात भी खानी पड़ी है। जहां तक इमरान का प्रश्न है उनकी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी तो बनी है और यह भी साफ होता जा रहा है कि इमरान ही प्रधानमंत्री बनेंगे पर इमरान की जहां तक छवि का प्रश्न है वह किसी गंभीर या राजनीति के मर्मज्ञ विशेषज्ञ की छवि नहीं रही है। अपितु सार्वजनिक जीवन में आने के बाद भी आशिक मिजाजी व अटपटे वक्तव्यों के चलते गंभीरता से नहीं लिया जाता रहा है। खासतौर से महिलाओं के मामले में तो इमरान अधिक ही चर्चित रहते आ रहे हैं। हालांकि सेना के साथ ही कट्टर पंथियों का कितना दबाव इमरान पर रहेगा यह आने वाले समय में साफ हो पाएगा।

पाकिस्तान के नतीजे अंतरराष्ट्रीय राजनीति और भारत के लिए सकारात्मक नहीं माने जा सकते। एक तो इमरान की छवि पहले से ही भारत विरोधी रही है दूसरी सेना कभी नहीं चाहेगी कि कश्मीर की समस्या का समाधान हो जाए। ऐसे में कश्मीर को लेकर समाधान होना या कश्मीर में पाकिस्तानी सहयोग से शांति कायम होना लगभग असंभव है। भारत के सामने कश्मीर को लेकर अब कठोर निर्णय करने का समय आ गया है और यह भी साफ हो गया है कि पाकिस्तान की बेजा हरकतों को समय रहते कुचलने से ही इमरान सरकार को संदेश जा पाएगा। विश्लेषकों का तो यह तक मानना है कि इमरान के वक्तव्यों की गंभीरता इस मायने में नहीं रहेगी कि उनकी मानसिकता ही अगम्भीर व विवादों में घिरे रहने वाले नेता के रूप में रही है। ऐसे में भारत सरकार को पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर और अधिक गंभीर व सचेत रहना होगा।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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